एक बार जब मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 202 के तहत पुलिस से रिपोर्ट मांगता है तो पुलिस रिपोर्ट प्राप्त होने तक आरोपी को समन स्थगित कर दिया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एक बार जब मजिस्ट्रेट ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 202 के तहत पुलिस रिपोर्ट मांगी है तो मजिस्ट्रेट तब तक समन जारी नहीं कर सकता, जब तक कि पुलिस द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की जाती।
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए कहा कि मजिस्ट्रेट बिना विवेक लगाए आरोपी को प्रक्रिया जारी नहीं कर सकता है और उसे ऐसा करना चाहिए। पुलिस से रिपोर्ट मिलने तक आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई जारी होने का इंतजार किया।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में मजिस्ट्रेट द्वारा जारी समन रद्द करने से इनकार कर दिया था।
जस्टिस ओक द्वारा लिखित फैसले में कहा गया,
“तीन गवाहों के साक्ष्य दर्ज करने और रिकॉर्ड पर दस्तावेजों का अवलोकन करने के बाद मजिस्ट्रेट ने सीआरपीसी की धारा 202 के तहत रिपोर्ट मंगाने का आदेश पारित किया। उन्होंने प्रक्रिया की बात टाल दी। मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट प्राप्त होने तक इंतजार करना चाहिए था।''
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट तब तक समन जारी नहीं कर सकता, जब तक इस बात की संतुष्टि न हो जाए कि समन आदेश पारित करने के लिए सामग्री पर्याप्त है।
कोर्ट ने कहा,
“सम्मन का आदेश जारी करने के लिए मजिस्ट्रेट उसी सामग्री पर भरोसा नहीं कर सकते, जो 15 दिसंबर, 2011 को उनके सामने है, जब उन्होंने सीआरपीसी की धारा 202 के तहत रिपोर्ट मांगने का आदेश पारित किया। इसका कारण यह है कि जाहिर है, वह संतुष्ट नहीं है कि सामग्री सम्मन आदेश पारित करने के लिए पर्याप्त है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपी के खिलाफ समन जारी करने की प्रक्रिया के गंभीर परिणाम होते हैं। इसलिए इसे बिना सोचे समझे जारी नहीं किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने इस संबंध में कहा,
“आदेश जारी करने की प्रक्रिया के गंभीर परिणाम होते हैं। ऐसे आदेशों के लिए विवेक लगाने की आवश्यकता होती है। ऐसे आदेश यूं ही पारित नहीं किये जा सकते। इसलिए हमारे विचार में मजिस्ट्रेट द्वारा समन जारी करने का आदेश पारित करना उचित नहीं है।
केस टाइटल: शिव जटिया बनाम ज्ञान चंद मलिक और अन्य, आपराधिक अपील नंबर 776, 2024