"कोई धर्म इस तरह की क्रूर पेड़ कटाई की इजाजत नहीं देता, मुआवजा उत्सव के चढ़ावे से दो": सुप्रीम कोर्ट ने केरल की मंदिर समिति से कहा

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Update: 2025-04-06 08:18 GMT
"कोई धर्म इस तरह की क्रूर पेड़ कटाई की इजाजत नहीं देता, मुआवजा उत्सव के चढ़ावे से दो": सुप्रीम कोर्ट ने केरल की मंदिर समिति से कहा

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (4 अप्रैल) को केरल के पेरूर गांव में स्थित थिरु केरळपुरम श्रीकृष्णस्वामी मंदिर की समिति को मंदिर परिसर में तीन जंगली कटहल (जैकफ्रूट) के पेड़ों को काटे जाने को लेकर फटकार लगाई। इन पेड़ों का व्यास लगभग 1.5 से 2 मीटर था।

जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की खंडपीठ मंदिर से संबंधित संपत्ति विवाद में दायर एक अंतरिम आवेदन पर सुनवाई कर रही थी।

कोट्टायम के जिला कलेक्टर द्वारा दाखिल एक रिपोर्ट के अनुसार, ये पेड़ मंदिर की प्रशासनिक समिति के निर्देश पर काटे गए थे।

सुनवाई के दौरान जस्टिस ओक ने टिप्पणी की, "कोई भी धर्म इस तरह क्रूर तरीके से पेड़ काटने की इजाजत नहीं देता है।"

उन्होंने मंदिर समिति के वकील से पूछा, "आप प्रति पेड़ वन विभाग को कितना मुआवजा देंगे और कितने पेड़ लगाएंगे?"

इस पर वकील ने बताया कि यह पेड़ पूर्व समिति द्वारा काटे गए थे और वर्तमान समिति ने कोर्ट के पहले दिए गए यथास्थिति आदेश के बाद 100 पेड़ पहले ही लगाए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि समिति अतिरिक्त 100 पेड़ लगाने को भी तैयार है।

कोर्ट ने मंदिर समिति से हलफनामा दाखिल कर यह स्पष्ट करने को कहा कि अब तक कितने पेड़ लगाए गए हैं और काटे गए पेड़ों के लिए कितना मुआवजा देने को तैयार हैं।

जब मंदिर समिति के वकील ने यह दलील दी कि यह एक बहुत ही छोटा और गरीब मंदिर है, और खासकर इसलिए भी पैसे नहीं हैं क्योंकि सालाना उत्सव चल रहा है, तब कोर्ट ने कहा कि उत्सव के दौरान भक्तों से जो चढ़ावा एकत्रित होगा, उसे वन विभाग को मुआवजे के रूप में दिया जा सकता है।

जस्टिस ओक ने कहा, "इस उत्सव में लोग भगवान को कुछ न कुछ चढ़ाते ही हैं, है ना? तो जो कुछ भी इस उत्सव में चढ़ाया जाएगा, वह वन विभाग को दिया जा सकता है। बात इतनी ही सीधी है।""आप एक अंडरटेकिंग दें कि आमतौर पर इस उत्सव में चढ़ावे से कितनी राशि प्राप्त होती है। वही राशि आप मुआवजे के रूप में वन विभाग को देंगे। इससे समस्या का समाधान हो जाएगा। कोई तो पेड़ लगाएगा, कोई तो मुआवजा देगा, और कोई तो जिम्मेदारी लेगा।"

कोर्ट ने मंदिर समिति को हलफनामा दाखिल करने के लिए समय देते हुए मामले को 9 अप्रैल, 2025 के लिए सूचीबद्ध किया है।

वर्तमान विशेष अनुमति याचिका में प्रतिवादी, जो संपत्ति का स्वामी होने का दावा करता है, ने अपीलकर्ता को संपत्ति पर अतिक्रमण करने से रोकने की मांग की थी। प्रतिवादी को हाईकोर्ट में सफलता मिली, जिसके परिणामस्वरूप अपीलकर्ता द्वारा वर्तमान SLP दायर की गई। प्रतिवादी ने मंदिर में पेड़ों की कटाई को लेकर वर्तमान अंतरिम आवेदन दायर किया।

सुप्रीम कोर्ट ने 4 नवंबर, 2024 को यह अवलोकन किया कि प्राथमिक दृष्टया मंदिर परिसर में बड़ी संख्या में पेड़ों की कटाई हुई है और कुछ निर्माण कार्य भी चल रहा है।

इसलिए कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को मंदिर की संपत्ति को लेकर यथास्थिति बनाए रखने का अंतरिम राहत आदेश जारी किया और उन्हें मंदिर की भूमि पर किसी भी प्रकार के निर्माण कार्य या पेड़ काटने से रोक दिया।

कोर्ट ने जिला कलेक्टर/जिला मजिस्ट्रेट, कोट्टायम को निर्देश दिया कि वे उपयुक्त राजस्व अधिकारियों को मंदिर परिसर में भेजें ताकि यह पता लगाया जा सके कि कितने पेड़ काटे गए, क्या इसके लिए सक्षम प्राधिकारी से अनुमति ली गई थी, और मंदिर के अभिलेखों की जांच की जा सके। अधिकारियों को पेड़ कटाई से संबंधित बयान दर्ज करने की शक्ति भी दी गई।

6 दिसंबर, 2024 को जिला कलेक्टर, कोट्टायम द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, तीन जंगली कटहल के पेड़, जिनका अनुमानित व्यास 1.5 से 2 मीटर था, मंदिर की प्रशासनिक समिति के निर्देश पर काटे गए थे।

कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि कटे हुए पेड़ों की लकड़ी के संबंध में उस दिन की स्थिति को बनाए रखा जाए।

24 मार्च, 2025 को, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि 27 जनवरी, 2025 को पारित अंतरिम आदेश तब तक लागू रहेगा जब तक मुख्य विशेष अनुमति याचिका की सुनवाई नहीं हो जाती।

इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने यह आदेश भी दिया कि बिना कोर्ट की स्पष्ट अनुमति के संपत्ति पर आगे कोई पेड़ नहीं काटा जाएगा।

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