अगर महिला की सहमति शुरू से ही शादी के झूठे वादे पर प्राप्त की गई, तो बलात्कार का अपराध बनता है: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-01-31 08:41 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि शादी के झूठे वादे के आधार पर बलात्कार का अपराध बरकरार रखने के लिए यह स्थापित किया जाना चाहिए कि शुरुआत से ही महिला की सहमति झूठे वादे के आधार पर प्राप्त की गई।

जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस पंकज मित्तल ने अनुराग सोनी बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (2019) 13 एससीसी 1 में फैसले का हवाला देते हुए कहा,

"अगर शुरू से ही यह स्थापित हो जाता है कि पीड़िता की सहमति शादी के झूठे वादे का परिणाम है तो कोई सहमति नहीं होगी और ऐसे मामले में बलात्कार का अपराध बनाया जाएगा।"

अदालत व्यक्ति द्वारा उसके खिलाफ कथित बलात्कार का मामला रद्द करने से बॉम्बे हाईकोर्ट के इनकार को चुनौती देने वाली अपील पर फैसला कर रही थी।

अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, पुरुष और महिला ने इस बहाने चार साल (2013-2017) तक शारीरिक संबंध बनाए रखा कि पुरुष महिला से शादी करेगा। 2018 में महिला ने अन्य महिला के साथ पुरुष के सगाई समारोह की तस्वीरें देखीं, जिसके बाद उसने एफआईआर दर्ज की, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसकी सहमति शादी के झूठे वादे के कारण हुई गलतफहमी पर आधारित थी। हालांकि, उस व्यक्ति ने दावा किया कि उसने 2017 में शिकायतकर्ता महिला से शादी की थी और 'निकाहनामा' की कॉपी पेश की।

सुप्रीम कोर्ट ने रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री पर गौर करने के बाद पाया कि जब महिला ने शारीरिक संबंध बनाने के लिए सहमति दी तो उसकी उम्र 18 वर्ष से अधिक थी। महिला ने पूरे चार साल तक इस रिश्ते पर कोई आपत्ति नहीं जताई।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

"इसलिए मामले के तथ्यों में यह स्वीकार करना असंभव है कि दूसरे प्रतिवादी ने शादी के झूठे वादे के आधार पर 2013 से 2017 तक उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए रखने की अनुमति दी।"

अदालत ने 'निकाहनामा' का जिक्र करने के बाद इस प्रकार कहा,

“यह तथ्य कि उनकी सगाई हो चुकी थी, दूसरे प्रतिवादी द्वारा स्वीकार किया गया। तथ्य यह है कि 2011 में अपीलकर्ता ने उसे प्रपोज किया और 2017 में सगाई हुई, दूसरे प्रतिवादी ने स्वीकार कर लिया। दरअसल, उन्होंने बिना किसी विरोध के सगाई समारोह में हिस्सा लिया। हालांकि, उसने इस बात से इनकार किया कि उसकी शादी अपीलकर्ता के साथ हुई। अभियोजन पक्ष के मामले को सही मानते हुए यह स्वीकार करना संभव नहीं है कि दूसरे प्रतिवादी ने केवल इसलिए शारीरिक संबंध बनाए रखा, क्योंकि अपीलकर्ता ने शादी का वादा किया था।

उपरोक्त टिप्पणी पर भरोसा करते हुए अदालत ने कहा कि शादी के झूठे वादे का मामला शुरू से ही नहीं बनता, क्योंकि पुरुष द्वारा यह साबित करने के लिए निकाहनामे के रूप में पर्याप्त सबूत प्रस्तुत किए गए कि उसने महिला से शादी की है।

इस प्रकार, अदालत ने माना कि वर्तमान मामले में अभियोजन जारी रखना कानून की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग होगा। इसलिए व्यक्ति के खिलाफ अभियोजन जारी रखने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।

केस टाइटल: शेख आरिफ़ बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य

निर्णय पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




Tags:    

Similar News