'अगर कनाडा उसे लेने को तैयार है, तो आपको आपत्ति नहीं करनी चाहिए': 2012 से हिरासत में लिए गए म्यांमार के नागरिक की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा

Update: 2024-09-03 09:49 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हिरासत में लिए गए म्यांमार के नागरिक द्वारा दायर याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा, जिसमें दावा किया गया कि कनाडा उसे शरणार्थी के रूप में लेने को तैयार है, लेकिन प्रक्रिया अटकी हुई है, क्योंकि वह 2012 से मणिपुर के हिरासत केंद्र में हिरासत में है।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी (गृह मंत्रालय के लिए) से निर्देश प्राप्त करने को कहा, जिसमें कहा गया कि मामले की विशिष्ट परिस्थितियों के तहत अगर कनाडा याचिकाकर्ता को शरणार्थी के रूप में लेने को तैयार है तो अधिकारियों को आपत्ति नहीं करनी चाहिए।

जस्टिस गवई ने यह आदेश इस प्रकार दिया:

"कागज़ी पुस्तक के अवलोकन से पता चलता है कि कनाडा के उच्चायोग ने वर्तमान याचिकाकर्ता को कनाडा में पुनर्वास के लिए शरणार्थी के रूप में स्वीकार किया है। हम स्थानीय ASG से अनुरोध करते हैं कि वे निर्देश लें कि जब कनाडा के उच्चायोग ने इसे मंजूरी दी है तो याचिकाकर्ता को कनाडा भेजने में क्या बाधा है।"

सुनवाई के दौरान संघ की ओर से उपस्थित वकील ने अदालत को अवगत कराया कि मई, 2022 में संघ को म्यांमार से याचिकाकर्ता के पहचान प्रमाण पत्र की पुष्टि मिल गई थी। लेकिन उस समय याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष रिट याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि वह कनाडा में पुनर्वास चाहता है। भारत सरकार को उसकी मदद करनी चाहिए। चूंकि वह म्यांमार वापस नहीं जाना चाहता था, इसलिए उसे भारतीय अधिकारियों द्वारा निर्वासित नहीं किया जा सका और पहचान प्रमाण पत्र की पुष्टि एक महीने की अवधि के बाद समाप्त हो गई।

इसके बाद विदेश मंत्रालय द्वारा म्यांमार दूतावास से पहचान प्रमाण पत्र की पुष्टि को नवीनीकृत करने के प्रयास किए गए और प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा की जा रही है। वकील ने आग्रह किया कि दूतावास से सूचना मिलने के बाद याचिकाकर्ता को निर्वासित कर दिया जाएगा। उनकी बात सुनते हुए जस्टिस गवई ने याचिकाकर्ता की पहचान के बारे में प्राप्त पुष्टि की समाप्ति के पहलू पर आश्चर्य व्यक्त किया।

न्यायाधीश ने टिप्पणी की,

"पहचान कैसे बदल सकती है? जस्टिस विश्वनाथन एक महीने बाद भी जस्टिस विश्वनाथन ही रहेंगे।"

याचिकाकर्ता की ओर से एओआर गौतम झा ने इस पहलू को स्पष्ट करते हुए कहा कि पहचान नहीं बदल सकती, लेकिन संबंधित यात्रा दस्तावेज एक महीने के बाद समाप्त हो जाते हैं। तथ्यों के आधार पर उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता 2012 से हिरासत में है। उसे 6 महीने की कैद की सजा सुनाई गई थी। वह उसी अवधि को काट चुका है, लेकिन उसे रिहा नहीं किया गया।

2021 में कनाडाई दूतावास ने उसे शरणार्थी के रूप में स्वीकार किया और एक पत्र भेजा कि यदि उसके कागजात संसाधित हो सकते हैं तो उसे कनाडा भेजा जा सकता है। लेकिन ऐसा नहीं हो सका, क्योंकि याचिकाकर्ता मणिपुर हिरासत केंद्र में था और उसे दिल्ली नहीं लाया गया था।

वकील ने कहा,

"जो मेडिकल जांच होनी थी, वह नहीं हो सकी।"

याचिकाकर्ता के वकील ने आगे कहा कि म्यांमार में स्थिति याचिकाकर्ता के वापस जाने के लिए अनुकूल नहीं है। ऐसे में उसे मणिपुर के हिरासत केंद्र से दिल्ली के हिरासत केंद्र में स्थानांतरित किया जा सकता है, जिससे उसके बायोमेट्रिक्स को कनाडाई दूतावास द्वारा लिया जा सके।

जब न्यायालय ने संघ के वकील से पूछा कि कनाडा से प्राप्त संचार पर आगे क्यों नहीं बढ़ा गया तो उन्होंने जवाब दिया,

"क्योंकि किसी तीसरे देश में अवैध अप्रवासी को बाहर निकलने की अनुमति देना अनुरूप नहीं है। एक बार पहचान की पुष्टि हो जाने के बाद उसे उसके गृह देश वापस भेजा जाना होगा।"

जस्टिस गवई ने टिप्पणी की,

"आप इस बारे में कैसे चिंतित हैं? यदि प्राप्त करने वाला देश उसे लेने के लिए तैयार है।"

बांग्लादेश में सरकार विरोधी विद्रोह के बीच भारत भाग गई पूर्व बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना का परोक्ष रूप से संदर्भ देते हुए न्यायाधीश ने कहा,

"यदि आपके पास बांग्लादेश से कोई व्यक्ति है...और आप किसी देश को खोजने की प्रक्रिया में हैं तो क्या आप उसे बांग्लादेश वापस भेजेंगे? यदि इस नीति को सख्ती से लागू किया जाना है।"

याचिकाकर्ता का उल्लेख करते हुए जस्टिस विश्वनाथन ने कहा,

"उसे अपने देश में खतरा होने की आशंका है। उसने अपनी सजा पूरी कर ली है। अब दूतावास यहां है।"

मामले के समर्थन में याचिकाकर्ता के वकील ने आगे कहा कि निर्वासन कभी नहीं होगा, क्योंकि रोहिंग्या से संबंधित मुख्य मामला अदालत के समक्ष लंबित है। उन्होंने याचिकाकर्ता के मामले को रोहिंग्या से अलग करते हुए कहा कि रोहिंग्या के मामले में पहचान कभी भी सुनिश्चित नहीं की गई। यह दावा किया गया कि याचिकाकर्ता की पहचान म्यांमार द्वारा मान्यता प्राप्त है, लेकिन वह वापस नहीं जाना चाहता क्योंकि उसकी जान को खतरा है।

इसके बाद ASG भाटी गृह मंत्रालय की ओर से पेश हुए और याचिकाकर्ता के दावों का तथ्यात्मक रूप से पता लगाने के लिए समय मांगा।

कहा गया,

"यहां बड़ा मुद्दा भी है। हमारे पास 100 और 1000 लोगों के साथ यह समस्या है। म्यांमार संप्रभु देश है, लेकिन हमें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल रही है...लेकिन हम अवैध अप्रवासियों को देश के संसाधनों पर दावा करने नहीं दे सकते। साथ ही न्यायिक संसाधनों पर भी"।

न्यायालय ने सुनवाई स्थगित कर दी, जिससे संघ तथ्यात्मक पहलुओं को सत्यापित कर सके और निर्देश प्राप्त कर सके।

जस्टिस गवई ने ASG अंत में कहा,

"यदि वे (कनाडाई) उसे लेने के लिए तैयार हैं तो आपकी ओर से कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।"

केस टाइटल: अब्दुल रशीद बनाम मणिपुर राज्य और अन्य, W.P.(Crl.) नंबर 178/2024

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