'निश्चित अवधि की सज़ा को सामान्य रूप से निलंबित किया जाना चाहिए': सुप्रीम कोर्ट ने 70 वर्षीय दिव्यांग व्यक्ति को ज़मानत दी; लापरवाही बरतने के लिए हाईकोर्ट को फटकार लगाई

Update: 2024-07-04 06:25 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (3 जुलाई) को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश पर नाराज़गी जताई, जिसमें 70 वर्षीय बीमार व्यक्ति की सज़ा निलंबित करने की याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए लापरवाही बरतने का फ़ैसला किया गया। याचिकाकर्ता को ज़मानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निश्चित अवधि की सज़ा के मामलों में सज़ा निलंबित करने की याचिका पर उदारतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए, जब तक कि कोई असाधारण परिस्थिति न पैदा हो।

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस उज्जल भुयान की वेकेशन बेंच ने कहा,

"कानून में यह स्पष्ट रूप से कहा गया कि यदि ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा निश्चित अवधि के लिए है तो सामान्यतः अपीलीय न्यायालय को सजा के निलंबन की याचिका पर उदारतापूर्वक विचार करना चाहिए, जब तक कि मामले के रिकॉर्ड से ऐसी राहत अस्वीकार करने के लिए कोई असाधारण परिस्थितियां सामने न आएं। हाईकोर्ट ने अपने विवादित आदेश में ऐसा कुछ भी नहीं कहा कि सजा के निलंबन की याचिका क्यों अस्वीकार किए जाने योग्य है। हाईकोर्ट ने किसी भी असाधारण परिस्थिति के बारे में कुछ नहीं कहा।"

न्यायालय सत्तर वर्षीय व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसकी दृष्टि लगभग 90% क्षीण है। याचिकाकर्ता को भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 467, 468, 471, 120-बी और 201 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया। याचिकाकर्ता ने उस पर लगाए गए कुल चार वर्षों के कठोर दंड में से दो वर्ष की सजा काट ली। उसने दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील लंबित रहने तक सजा के निलंबन की याचिका दायर की। हालांकि, सजा के निलंबन की याचिका हाईकोर्ट ने बिना कोई कारण बताए खारिज कर दी कि क्यों सजा के निलंबन की याचिका खारिज किए जाने योग्य है।

इस तथ्य पर गौर करते हुए कि याचिकाकर्ता ने उस पर लगाई गई सजा के दो साल पहले ही काट लिए हैं, न्यायालय ने कहा कि हाईकोर्ट ने बिना किसी विचार के एक रूढ़िबद्ध आदेश पारित किया, क्योंकि उसने किसी भी असाधारण परिस्थितियों के बारे में कुछ नहीं कहा।

न्यायालय ने कहा,

"हम इस तथ्य पर गौर करते हैं कि हाईकोर्ट बिना किसी विचार के रूढ़िबद्ध आदेश पारित करते हैं। हाईकोर्ट को यह समझना चाहिए कि याचिकाकर्ता सत्तर वर्ष का है और उसे दी गई अधिकतम सजा के चार वर्षों में से दो वर्ष की सजा वह पहले ही काट चुका है। याचिकाकर्ता वस्तुतः अंधा है। रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो यह संकेत दे कि अपील लंबित रहने तक जमानत पर उसकी रिहाई न्याय की प्रक्रिया को बाधित करेगी। हाईकोर्ट पहली बार में ही सजा के निलंबन की याचिका पर आसानी से विचार कर सकता था। हाईकोर्ट के इस तरह के लापरवाह रवैये के कारण देश की सर्वोच्च अदालत के समक्ष यह विशेष अनुमति याचिका दायर की गई।"

न्यायालय ने कहा कि यदि ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा निश्चित अवधि के लिए है तो सामान्यतः अपीलीय न्यायालय को सजा के निलंबन की याचिका पर उदारतापूर्वक विचार करना चाहिए, जब तक कि मामले के रिकॉर्ड से ऐसी राहत से इनकार करने के लिए कोई असाधारण परिस्थितियां सामने न आ रही हों।

उपर्युक्त आधार पर न्यायालय ने प्रतिवादी/राज्य को नोटिस जारी किया तथा ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाई गई शर्तों के अधीन याचिकाकर्ता को जमानत प्रदान की।

केस टाइटल: भेरूलाल बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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