सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में 23 महीने की हिरासत के बाद विजय नायर को जमानत दी
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी की आबकारी नीति (Delhi Liquor Policy Case) से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आम आदमी पार्टी (AAP) के पूर्व संचार प्रभारी विजय नायर को जमानत दे दी। नायर करीब 23 महीने से हिरासत में हैं।
जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की खंडपीठ ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता बिना सुनवाई के हिरासत में रहता है तो "नियम के तौर पर जमानत और अपवाद के तौर पर जेल" का सिद्धांत विफल हो जाएगा।
जस्टिस रॉय ने आदेश सुनाते हुए कहा,
"अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता का अधिकार पवित्र है और इसका सम्मान उन मामलों में भी किया जाना चाहिए, जहां कड़े प्रावधान लागू किए गए हैं। याचिकाकर्ता 23 महीने से हिरासत में है और विचाराधीन कैदी के तौर पर जेल में है। सुनवाई शुरू किए बिना सजा का कोई तरीका नहीं हो सकता। जमानत नियम है और जेल अपवाद, यह सार्वभौमिक प्रस्ताव पूरी तरह से विफल हो जाएगा यदि याचिकाकर्ता को इतने लंबे समय तक विचाराधीन कैदी के रूप में हिरासत में रखा जाता है, जबकि दोषसिद्धि की स्थिति में सजा अधिकतम 7 वर्ष ही हो सकती है। हमारा मानना है कि याचिकाकर्ता जमानत का हकदार है। तदनुसार, इस आदेश में दी गई शर्तों पर जमानत दी जाती है।”
नायर ने दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा उन्हें जमानत देने से इनकार करने के फैसले को चुनौती देते हुए वर्तमान एसएलपी दायर की है। नायर, सह-आरोपी समीर महेंद्रू, शरत रेड्डी, अभिषेक बोइनपल्ली और बिनॉय बाबू को 16 फरवरी को राउज एवेन्यू कोर्ट ने जमानत देने से इनकार कर दिया था। ट्रायल कोर्ट ने चल रही जांच और आरोपियों को रिहा किए जाने पर सबूतों से छेड़छाड़ के संभावित जोखिमों का हवाला दिया।
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश में कोई अवैधता या विकृति नहीं पाते हुए इस फैसले को बरकरार रखा। नायर के लिए सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि चूंकि सह-आरोपी मनीष सिसोदिया और के. कविता को जमानत मिल गई है, और नायर की स्थिति उनसे बेहतर है, क्योंकि उन्हें पहले ही इस अपराध में जमानत मिल चुकी है। उन्होंने बताया कि नायर 23 महीने से जेल में बंद है और धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA Act) की धारा 3 और 4 के तहत उनके खिलाफ आरोपों के लिए अधिकतम संभव सजा सात साल है।
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने PMLA Act की धारा 45 के तहत सीमा का हवाला दिया, जो ऐसे मामलों में जमानत देने के लिए कड़ी शर्तें लगाता है। उन्होंने तर्क दिया कि प्रथम दृष्टया यह स्थापित किए बिना जमानत पर विचार नहीं किया जाना चाहिए कि आरोपी दोषी नहीं है। उन्होंने नायर के मामले को के. कविता के मामले से अलग करते हुए तर्क दिया कि उन्हें PMLA Act की धारा 45(1) के तहत प्रावधान का लाभ मिला। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि मुकदमे में देरी के लिए अभियोजन पक्ष को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि याचिकाकर्ता द्वारा दायर कई आवेदनों का निपटारा किया जाना था।
न्यायालय ने कहा कि दिनेश अरोड़ा, जो अभियुक्त है और जो सरकारी गवाह बन गया, उन्होंने अपने 12वें बयान में नायर को फंसाया, जबकि पहले के बयानों में ऐसा नहीं था। न्यायालय ने बताया कि ED ने मामले में नौ अभियोजन शिकायतें दर्ज की और याचिकाकर्ता लगभग 23 महीने से हिरासत में है।
न्यायालय ने आगे कहा कि मनीष सिसोदिया के मामले में 30 अक्टूबर, 2023 को ED द्वारा आश्वासन दिए जाने के बावजूद कि आठ महीने के भीतर मुकदमा समाप्त हो जाएगा, मुकदमा शुरू नहीं हुआ है। लगभग 40 व्यक्तियों को आरोपी के रूप में जोड़ा गया और अभियोजन पक्ष लगभग 350 गवाहों की जांच करना चाहता है।
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित सुनवाई के अधिकार और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर जोर दिया, जो PMLA Act की धारा 45 के कड़े प्रावधानों के अधीन नहीं हैं। न्यायालय ने दोहराया कि बिना मुकदमा शुरू किए एक विचाराधीन कैदी के रूप में लंबे समय तक कारावास को उचित नहीं ठहराया जा सकता है, खासकर जब दोषसिद्धि पर अधिकतम सजा सात साल है।
इसलिए न्यायालय ने विजय नायर को जमानत दे दी।
केस टाइटल- विजय नायर बनाम प्रवर्तन निदेशालय