गुजरात पुलिस द्वारा नाबालिग से हिरासत में मारपीट और यौन शोषण के आरोप पर SIT/CBI जांच की मांग

Update: 2025-09-12 09:53 GMT

सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की गई है जिसमें गुजरात पुलिस पर 17 वर्षीय किशोर के साथ यौन शोषण और पुलिस हिरासत में यातना देने का आरोप लगाया गया है। याचिका में इस घटना की जांच के लिए एसआईटी या सीबीआई जांच की मांग की गई है।

एडवोकेट रोहिन भट्ट ने चीफ़ जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ के सामने उल्लेख किया कि अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर की गई है, जिसमें याचिकाकर्ता के नाबालिग भाई के साथ पुलिस द्वारा की गई बर्बरता और यौन शोषण का आरोप है।

उन्होंने कहा कि याचिका में एम्स के डॉक्टरों की एक मेडिकल बोर्ड तत्काल गठित करने की मांग की गई है, क्योंकि नाबालिग की हालत गंभीर है।

काउंसल ने कहा, "यह अनुच्छेद 32 की याचिका है, याचिकाकर्ता के नाबालिग भाई को पुलिस ने उठाया, हिरासत में यातना दी, यौन शोषण किया – डंडे गुदा में डाले गए। हम प्रार्थना कर रहे हैं कि तत्काल एम्स दिल्ली का मेडिकल बोर्ड गठित किया जाए।"

हालांकि काउंसल ने आज ही सुनवाई की मांग की, लेकिन बेंच ने इसे सोमवार, 15 सितंबर को सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई।

याचिका, जो लड़के की बहन ने दायर की है, के अनुसार पुलिस अधिकारियों ने बोटाद टाउन, बोटाद ज़िले, गुजरात से मेले में से नाबालिग को उठाया, यह संदेह जताते हुए कि उसने सोना और नकदी चुराई है।

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि 19.08.2025 से 28.08.2025 तक अवैध हिरासत में नाबालिग को बोटाद टाउन पुलिस स्टेशन में चार से छह पुलिसकर्मियों ने बेरहमी से पीटा और यौन शोषण किया। आरोप है कि उसे न तो किशोर न्याय बोर्ड और न ही किसी मजिस्ट्रेट के सामने 24 घंटे के भीतर पेश किया गया। साथ ही, पुलिस ने नाबालिग का मेडिकल परीक्षण भी नहीं कराया।

इसके अलावा, 21 अगस्त को याचिकाकर्ता के दादा को भी उठाया गया और हिरासत में यातना देने के बाद 1 सितंबर को छोड़ा गया।

1 सितंबर को पुलिस ने याचिकाकर्ता के चाचा से संपर्क कर बताया कि नाबालिग को कीड़े के काटने का संक्रमण हुआ है और उसे बेहतर इलाज के लिए बड़े शहर ले जाना होगा। इसके बाद चाचा ने उसे अहमदाबाद के ज़ायडस अस्पताल में भर्ती कराया।

याचिका में कहा गया है कि ज़ायडस अस्पताल के डॉक्टरों ने नाबालिग की हालत की जानकारी परिवार को देने से मना कर दिया।

याचिका में कहा गया:

"याचिकाकर्ता के चाचा ने विष विज्ञान रिपोर्ट (toxicology report) की मांग की ताकि नाबालिग की गंभीर हालत का सही कारण पता चल सके। लेकिन डॉक्टरों ने कोई रिपोर्ट देने से इनकार कर दिया। नाबालिग को किडनी डैमेज के कारण डायलिसिस पर रखा गया है, उसे अस्थायी रूप से दिखना बंद हो गया, दौरा पड़ा और मल-मूत्र पर नियंत्रण नहीं रहा। याचिका दायर करते समय वह अहमदाबाद के ज़ायडस अस्पताल के आईसीयू में भर्ती है।"

याचिका में यह भी बताया गया कि जब नाबालिग आईसीयू में था, तब कुछ लोग, जो मजिस्ट्रेट के दफ्तर से होने का दावा कर रहे थे, उसकी जबरन साइन ले गए। परिवार से भी दबाव डालकर ऐसे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवाए गए जिनमें लिखा था कि नाबालिग साइकिल से गिरकर घायल हुआ।

अल्पसंख्यक समन्वय समिति नामक एक एनजीओ ने पुलिस महानिदेशक को ज्ञापन दिया, जिसमें दोषी पुलिस अधिकारियों को निलंबित करने और इस घटना पर एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।

याचिका में मांगी गई प्रमुख राहतें:

a) राज्य को निर्देश दिया जाए कि वह तत्काल भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023, पोक्सो एक्ट, किशोर न्याय अधिनियम, 2015 और अन्य प्रासंगिक कानूनों के तहत एफआईआर दर्ज करे और नाबालिग के साथ हुई पुलिस हिरासत की यातना व यौन हिंसा की जांच करे।

b) सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में गुजरात कैडर से बाहर के अधिकारियों की एक विशेष जांच टीम (SIT) गठित की जाए या फिर सीबीआई जांच का आदेश दिया जाए।

c) अगस्त और सितंबर माह की बोटाद टाउन पुलिस स्टेशन की सभी सीसीटीवी फुटेज सुरक्षित रखी जाए और सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की जाए।

d) बोटाद अस्पताल और ज़ायडस अस्पताल, अहमदाबाद से नाबालिग की सभी मेडिकल रिपोर्ट तत्काल प्रस्तुत की जाए।

e) एम्स, नई दिल्ली से एक मेडिकल बोर्ड गठित कराकर नाबालिग की चोटों की पूरी रिपोर्ट कोर्ट को दी जाए।

f) राज्य को निर्देश दिया जाए कि नाबालिग को पर्याप्त आर्थिक मदद, काउंसलिंग और मेडिकल सेवाएँ प्रदान की जाएँ।

g) नाबालिग और उसके दादा को हिरासत में दी गई यातना के लिए मुआवज़ा दिया जाए।

h) आरोपी पुलिसकर्मियों की तत्काल गिरफ्तारी का आदेश दिया जाए।

i) याचिकाकर्ता, नाबालिग और परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

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