BREAKING | SBI द्वारा Electoral Bonds विवरण का खुलासा न करने पर सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर
वकील प्रशांत भूषण ने गुरुवार (5 मार्च) को चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) पर विवरण का खुलासा करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कथित तौर पर अनुपालन न करने के लिए भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के खिलाफ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) द्वारा दायर अवमानना याचिका पर तत्काल सुनवाई की मांग की।
ADR का यह कदम राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता के लिए चल रही लड़ाई के बीच आया है, खासकर विवादास्पद चुनावी बांड योजना के संबंध में।
भूषण ने तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ के समक्ष अवमानना याचिका का उल्लेख किया।
भूषण ने कहा कि SBI ने जानकारी देने के लिए 30 जून तक समय बढ़ाने की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया, जिसे सोमवार को सूचीबद्ध किए जाने की संभावना है। उन्होंने अनुरोध किया कि अवमानना याचिका को भी SBI के आवेदन के साथ सूचीबद्ध किया जाए।
सीजेआई ने भूषण को आवेदन संख्या के विवरण के साथ एक ईमेल अनुरोध भेजने के लिए कहा।
सुप्रीम कोर्ट में दायर अवमानना याचिका में भारतीय स्टेट बैंक (SBI) पर जानबूझकर अवज्ञा करने का आरोप लगाया गया और अवमानना कार्यवाही शुरू करने की मांग की गई। ADR का तर्क है कि Electoral Bonds जारी करने वाला बैंक SBI, न्यायालय द्वारा निर्धारित समय सीमा के भीतर भारतीय चुनाव आयोग (ECI) को बांड के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी देने में विफल रहा है। 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दायर याचिका Electoral Bonds से संबंधित जानकारी का खुलासा करने की तात्कालिकता पर प्रकाश डालती है।
ADR ने क्या तर्क दिया?
पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने भारतीय स्टेट बैंक को 12 अप्रैल, 2019 से खरीदे गए Electoral Bonds का विवरण 6 मार्च तक भारत के चुनाव आयोग को सौंपने का निर्देश दिया था। हालांकि, समय सीमा से कुछ दिन पहले बैंक ने आवेदन दायर कर इन बांडों की बिक्री से डेटा को डिकोड करने और संकलित करने की जटिलता का हवाला देते हुए 30 जून तक विस्तार की मांग कर रहा है।
ADR की अवमानना याचिका में SBI के विस्तार अनुरोध को चुनौती दी गई। इसे 'दुर्भावनापूर्ण' और आगामी लोकसभा चुनावों से पहले पारदर्शिता के प्रयासों को विफल करने का प्रयास बताया गया। संगठन का तर्क है कि भारतीय स्टेट बैंक के पास Electoral Bonds पर जानकारी को तेजी से संकलित करने और प्रकट करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा है। ADR के अनुसार, Electoral Bonds के प्रबंधन के लिए डिज़ाइन किया गया SBI का आईटी सिस्टम पहले से ही मौजूद है> प्रत्येक बांड को दिए गए अद्वितीय नंबरों के आधार पर आसानी से रिपोर्ट तैयार कर सकता है।
याचिका में डेटा संकलित करने में SBI की कथित कठिनाइयों के बारे में सवाल उठाए गए, जिसमें बताया गया कि बैंक के पास प्रत्येक Electoral Bonds के लिए आवंटित अद्वितीय नंबरों और खरीदारों के अपने ग्राहक को जानें (केवाईसी) विवरण के रिकॉर्ड हैं। इसके अतिरिक्त, यह नोट करता है कि SBI के पास शाखाओं का विशाल नेटवर्क और अच्छी तरह से काम करने वाला आईटी सिस्टम है, जो लगभग 22,217 Electoral Bonds के लिए डेटा संकलित करने के कार्य को सरल बनाती है।
राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता के महत्व पर जोर देते हुए ADR का तर्क है कि मतदाताओं को Electoral Bonds के माध्यम से राजनीतिक दलों को दिए गए पर्याप्त धन के बारे में जानने का मौलिक अधिकार है। याचिका में तर्क दिया गया कि पारदर्शिता की कमी संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में निहित सहभागी लोकतंत्र के सार के खिलाफ है।
Electoral Bonds मामले पर अपने फैसले के हिस्से के रूप में जारी किए गए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उद्देश्य राजनीतिक फंडिंग में अधिक पारदर्शिता लाना है। Electoral Bonds जारी करने पर रोक लगाने के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि SBI बांड खरीदारों और राजनीतिक दलों के विवरण का खुलासा करे, जिन्होंने Electoral Bonds के माध्यम से योगदान प्राप्त किया। ये विवरण चुनाव आयोग को 13 मार्च 2024 तक अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करना है।
केस टाइटल- एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य। | रिट याचिका (सिविल) नंबर 880/2017