केवल चयन सूची में नियुक्ति के कारण नियुक्त होने का कोई अधिकार नहीं, राज्य को रिक्तियों को नहीं भरने को सही ठहराना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट ने माना है कि चयनित सूची में रखे गए उम्मीदवार को रिक्तियां उपलब्ध होने पर भी नियुक्ति का कोई अपरिहार्य अधिकार नहीं मिलता है। हालांकि, राज्य को रिक्ति को नहीं भरने के अपने फैसले को सही ठहराना होगा।
कोर्ट ने कहा "चयन सूची में रखे गए उम्मीदवार को रिक्तियां उपलब्ध होने पर भी नियुक्त होने का कोई अपरिहार्य अधिकार नहीं मिलता है ... लेकिन एक चेतावनी है। राज्य या उसके साधन मनमाने ढंग से किसी चयनित उम्मीदवार को नियुक्ति से इनकार नहीं कर सकते। इसलिए, जब किसी चयनित उम्मीदवार को नियुक्ति से इनकार करने के संबंध में राज्य की कार्रवाई को चुनौती दी जाती है, तो राज्य पर यह बोझ होता है कि वह चयन सूची से नियुक्ति नहीं करने के अपने फैसले को सही ठहराए।
कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला:
"चयन सूची में नियुक्ति नियुक्ति का कोई अपरिहार्य अधिकार नहीं देती है। राज्य अथवा इसके साधन वास्तविक कारणों से रिक्तियों को नहीं भरने का विकल्प चुन सकते हैं। हालांकि, यदि रिक्तियां मौजूद हैं, तो राज्य या उसके साधन मनमाने ढंग से चयन सूची में विचार के क्षेत्र के भीतर किसी व्यक्ति को नियुक्ति से इनकार नहीं कर सकते हैं।
शंकरासन दाश बनाम भारत संघ (1991) 3 SCC47 में दिए गए फैसले का संदर्भ दिया गया था।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस मनोज मिश्रा की 5 जजों की संविधान पीठ ने इस बिंदु पर एक संदर्भ तय करते हुए यह टिप्पणी की कि क्या खेल के नियमों को भर्ती प्रक्रिया के बीच में बदला जा सकता है।
खंडपीठ ने कहा कि पात्रता मानदंड को चयन प्रक्रिया के बीच में नहीं बदला जा सकता है जब तक कि नियमों द्वारा स्पष्ट रूप से अनुमति न दी जाए।