औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 29 के तहत शिकायत में उल्लंघन के संबंध में विशिष्ट दलीलें होनी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-07-31 06:10 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (Industrial Disputes Act (ID Act)) की धारा 29 के तहत शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही यह कहते हुए रद्द कर दी कि शिकायत में आरोपी नियोक्ताओं पर बाध्यकारी समझौते या अवार्ड के उल्लंघन के संबंध में कोई विशिष्ट दलील नहीं है।

जस्टिस अभय ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द किया, जिसमें अपीलकर्ताओं की सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिका खारिज कर दी गई थी, जिसमें ID Act के तहत समझौते के उल्लंघन का आरोप लगाने वाली शिकायत रद्द करने की मांग की गई थी।

अदालत ने कहा,

“धारा 29 तब लागू हो सकती है, जब कोई व्यक्ति किसी समझौते या अवार्ड की किसी शर्त का उल्लंघन करता है, जो ID Act के तहत उस पर बाध्यकारी है। इसलिए ID Act की धारा 29 के तहत दंडनीय अपराध करने का आरोप लगाने वाली शिकायत में समझौते या अवार्ड के बारे में एक विशिष्ट कथन होना चाहिए, जो ID Act के तहत आरोपी पर बाध्यकारी है, जिसका उल्लंघन किया गया।”

शिकायत ID Act की धारा 29 के तहत दायर की गई, जो समझौतों या अवार्ड के उल्लंघन के लिए दंड से संबंधित है, जिसमें नियोक्ता द्वारा बकाया राशि का भुगतान न करने का आरोप लगाया गया। शिकायतकर्ता ने अपीलकर्ताओं पर ID Act की धारा 9ए के प्रावधानों का उल्लंघन करने का भी आरोप लगाया, जिसके तहत नियोक्ताओं को कामगारों की सेवा शर्तों को बदलने से पहले नोटिस देना आवश्यक है।

शिकायत को 4 मार्च, 2022 को उप श्रम आयुक्त द्वारा पारित आदेश द्वारा मंजूरी दी गई, जिन्होंने जांच की और पाया कि कंपनी आवश्यक नोटिस देने में विफल रही। इस प्रकार धारा 9ए का उल्लंघन किया गया।

हाईकोर्ट ने शिकायत रद्द करने से इनकार करते हुए कहा था कि नियोक्ता अड़े हुए हैं और उन्होंने शिकायतकर्ता को उसके वेतन से परे लगभग 8,80,000 रुपये की राशि का भुगतान करने से इनकार किया था।

इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।

कार्यवाही के दौरान, अपीलकर्ताओं के वकील ने किसी भी समझौते के अस्तित्व से इनकार किया। उन्होंने कहा कि शिकायत और स्वीकृति आदेश में किसी विशिष्ट समझौते या अवार्ड का उल्लेख नहीं किया गया।

इसके बाद न्यायालय ने ID Act की धारा 2(पी) के तहत समझौते की परिभाषा के बारे में पूछा, जिसमें सुलह कार्यवाही के दौरान दोनों पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित समझौता शामिल है।

अपीलकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि ID Act की धारा 34 के तहत शिकायत दर्ज करने का अधिकार किसी निजी पक्ष को शिकायत शुरू करने की अनुमति नहीं देता है, क्योंकि यह उचित सरकार द्वारा या उसके अधिकार के तहत किया जाना था।

शिकायतकर्ता के वकील ने 9 दिसंबर, 2015 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष दायर हलफनामे का हवाला देते हुए जोर देकर कहा कि समझौते और अवार्ड का उल्लंघन हुआ है।

न्यायालय ने बार-बार पूछा कि क्या शिकायत में समझौते का उल्लेख है। वकील ने 9 दिसंबर, 2015 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष दायर पक्षों के संयुक्त हलफनामे का हवाला दिया। हालांकि, वह शिकायत में समझौते का कोई संदर्भ दिखाने में विफल रहे।

न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि धारा 29 के तहत वैध शिकायत के लिए किसी समझौते या अवार्ड के उल्लंघन के बारे में विशिष्ट कथनों की आवश्यकता होती है, जिनमें से कोई भी शिकायत में मौजूद नहीं था।

सुप्रीम कोर्ट ने कई कमियों को उजागर किया:

1. शिकायत में ID Act के तहत परिभाषित किसी भी समझौते या अवार्ड का संदर्भ नहीं दिया गया।

2. ID Act की धारा 34 के तहत जारी किए गए स्वीकृति आदेश में केवल धारा 9ए के उल्लंघन का उल्लेख किया गया, धारा 29 का नहीं।

3. सीआरपीसी की धारा 200 और धारा 202 के तहत दर्ज किए गए बयानों ने किसी भी समझौते या अवार्ड के कथित उल्लंघन की पुष्टि नहीं की।

सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया कि संयुक्त हलफनामे में 30 अगस्त, 1996 के समझौते के ज्ञापन का उल्लेख किया गया, लेकिन इस ज्ञापन को न तो पेश किया गया और न ही शिकायत में इसका सहारा लिया गया।

कोर्ट ने कहा कि ID Act की धारा 2(पी) के अर्थ के भीतर अपीलकर्ताओं को बाध्य करने वाले पक्षों के बीच कोई वैध समझौता पेश नहीं किया गया। इसके अलावा, शिकायत में अवार्ड के उल्लंघन का कोई मामला नहीं बनाया गया। परिणामस्वरूप, मजिस्ट्रेट प्रक्रिया जारी नहीं कर सकते।

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया, शिकायत के तहत शुरू की गई कार्यवाही और कानपुर नगर के मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा जारी समन आदेश रद्द कर दिया। हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय दूसरे प्रतिवादी को कानून के तहत उपलब्ध किसी अन्य उपाय को अपनाने से नहीं रोकता है।

केस टाइटल- युगल सीकरी और अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य।

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