सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2025-10-04 17:00 GMT

सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (29 सितंबर, 2025 से 03 अक्टूबर, 2025 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

निर्धारित समय-सीमा समाप्त होने का हवाला देकर ट्रायल जज मामले पर फैसला सुनाने से इनकार नहीं कर सकते: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में ट्रायल कोर्ट को असामान्य आदेश दिया, जिसमें उसने केवल इसलिए अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने से परहेज किया, क्योंकि ट्रायल कोर्ट ने कार्यवाही निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित समय-सीमा का पालन नहीं किया।

अदालत ने कहा, "हमें जज द्वारा पारित आदेश के तरीके पर दुख है। यदि किसी कारणवश जज इस अदालत द्वारा निर्धारित समय-सीमा के भीतर मामले का निपटारा नहीं कर पाते तो उनके पास उपलब्ध उचित उपाय समय-सीमा बढ़ाने का अनुरोध करना था। हालांकि, वह यह नहीं कह सकते कि उन्होंने मामले पर अधिकार क्षेत्र खो दिया, क्योंकि दी गई समय-सीमा बीत चुकी है।"

Cause Title: SHIV KUMAR SHAW & ANR. VERSUS REKHA SHAW

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हाईकोर्ट सीधे अग्रिम जमानत याचिका स्वीकार न करें, पहले सेशन कोर्ट जाएं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर हाई कोर्ट को आगाह किया है कि वह सीधे अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) की अर्जी पर सुनवाई करने से बचें और सामान्यतः पक्षकारों को पहले सेशन कोर्ट में जाने का निर्देश दिया जाना चाहिए, इसके बाद ही हाई कोर्ट की समवर्ती न्यायक्षेत्र (Concurrent Jurisdiction) का उपयोग करना चाहिए।

यह मामला पटना में एक स्वास्थ्यकर्मी की हत्या से जुड़ा था, जिसे कथित रूप से पैसे उधार देने वालों (Moneylenders) के कहने पर दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। शिकायतकर्ता ने दावा किया कि मृतक से लाखों रुपये जबरन वसूलने के बाद, जब वह और पैसे नहीं दे सकी तो आरोपियों ने कॉन्ट्रैक्ट किलर्स (Contract Killers) को लगा दिया। आरोपियों ने गिरफ्तारी की आशंका में सीधे पटना हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत मांगी और जमानत मिल गई।

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ट्रायल कोर्ट केवल निजी गवाह के हलफनामे के आधार पर चार्जशीट में न उल्लिखित अपराध का संज्ञान नहीं ले सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी ट्रायल कोर्ट को केवल निजी गवाहों द्वारा दाखिल किए गए हलफनामों (अफिडेविट्स) के आधार पर चार्जशीट में न उल्लिखित अतिरिक्त अपराधों का संज्ञान नहीं लेना चाहिए, बिना जांच रिकॉर्ड पर भरोसा किए या आगे की जांच के आदेश दिए।

एक बेंच, जिसमें जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एससी शर्मा शामिल थे, ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के असामान्य आदेश को रद्द कर दिया। हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को मंजूरी दी थी, जिसमें शिकायतकर्ता के गवाहों द्वारा प्रस्तुत हलफनामों के आधार पर IPC की धारा 394 (डाका डालने या प्रयास के दौरान जानबूझकर चोट पहुंचाना) के अपराध का संज्ञान लिया गया था, बिना यह तय किए कि यह धारा इस मामले पर लागू होती है या नहीं।

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Motor Accident Compensation - न्यूनतम मज़दूरी केवल शैक्षिक योग्यता के आधार पर तय नहीं की जा सकती: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यूनतम मज़दूरी किसी व्यक्ति की शैक्षिक योग्यता के आधार पर उसके द्वारा किए जा रहे कार्य की प्रकृति के संदर्भ के बिना निर्धारित नहीं की जा सकती।अदालत मोटर दुर्घटना मुआवज़े के मामले पर निर्णय दे रहा था, जहां आय की मात्रा पर विवाद था। यह मामला एक 20 वर्षीय बी.कॉम फाइनल इयर स्टूडेंट से संबंधित था, जिसने भारतीय चार्टर्ड एकाउंटेंट्स संस्थान में भी दाखिला लिया था।

हालांकि, 2001 में एक मोटर दुर्घटना के बाद वह लकवाग्रस्त हो गया और अपनी मृत्यु तक दो दशकों तक बिस्तर पर पड़ा रहा। ट्रिब्यूनल और दिल्ली हाईकोर्ट ने मुआवज़ा देने के उद्देश्य से श्रमिकों के लिए अधिसूचित न्यूनतम मज़दूरी, यानी 3,352 रुपये प्रति माह, लागू करके उसकी आय की गणना की थी। हाईकोर्ट ने तर्क दिया कि हालांकि पीड़ित की शैक्षणिक संभावनाएं थीं, लेकिन उसने अभी तक चार्टर्ड एकाउंटेंट की योग्यता हासिल नहीं की थी। इसलिए उस स्तर पर आय तय नहीं की जा सकती।

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अस्पष्ट और सामान्य आरोप: सुप्रीम कोर्ट ने ससुराल वालों पर दर्ज वैवाहिक क्रूरता का मामला ख़ारिज किया

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (26 सितंबर) को एक महिला के ससुराल पक्ष के खिलाफ दर्ज आपराधिक कार्यवाही रद्द की। महिला ने अपने ससुर, सास और ननद पर घरेलू हिंसा और मानसिक प्रताड़ना के आरोप लगाए। अदालत ने पाया कि ये आरोप केवल अस्पष्ट और सामान्य थे और इनमें कोई ठोस तथ्य नहीं है।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बी.आर. गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने अपील स्वीकार करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश रद्द किया, जिसने पहले इन आरोपों को ख़ारिज करने से इनकार कर दिया था।

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