भर्ती के लिए कट-ऑफ तिथियां तय करना नियोक्ता के अधिकार क्षेत्र में है, किसी को भी समायोजित करने के लिए इसमें ढील नहीं दी जा सकती: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया है कि भर्ती प्रक्रियाओं के लिए कट-ऑफ तिथि निर्धारित करना पूरी तरह से नियोक्ता के अधिकार क्षेत्र में आता है और ऐसी कट-ऑफ तिथि सभी आवेदकों के लिए एक समान है और कुछ प्रतिभागियों के लिए इसमें छूट नहीं दी जा सकती।
न्यायालय ने कहा,
"यह कानून की एक स्थापित स्थिति है कि कट-ऑफ तिथि निर्धारित करना और रखना पूरी तरह से नियोक्ता के अधिकार क्षेत्र में आता है, जिसे उनकी आवश्यकताओं और संबंधित परीक्षा के प्रशासन के अनुसार तय किया जाना चाहिए और/या लगाया जाना चाहिए।"
जस्टिस समीर जैन की पीठ याचिकाकर्ता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने चयन प्रक्रिया के विज्ञापन के अनुसार "सहायक नगर नियोजक" के पद के लिए आवेदन किया था। विज्ञापन के अनुसार, अंतिम वर्ष के छात्रों को भी पद के लिए आवेदन करने की अनुमति थी। एकमात्र शर्त यह थी कि ऐसे छात्रों को लिखित परीक्षा की तिथि से पहले संबंधित पाठ्यक्रम के तहत योग्यता की अपनी मार्कशीट प्रस्तुत करनी होगी।
याचिकाकर्ता के मामले के अनुसार, लिखित परीक्षा की तिथि से पहले, उसके अंतिम वर्ष के पाठ्यक्रम के सभी सैद्धांतिक पेपर और शोध कार्य हो चुके थे, सिवाय उसके शोध प्रबंध के। इस शोध प्रबंध का परिणाम पद के लिए लिखित परीक्षा की तिथि के बाद जारी किया गया।
कट-ऑफ तिथि से पहले यानी लिखित परीक्षा की तिथि से पहले अपने शोध प्रबंध का परिणाम प्रस्तुत करने में उसकी ओर से विफल रहने के कारण, राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा पद के लिए उसकी उम्मीदवारी पर विचार नहीं किया गया। याचिकाकर्ता ने सरकार के इस आदेश को न्यायालय के समक्ष याचिका के माध्यम से चुनौती दी।
यह तर्क दिया गया कि परिणाम का देरी से प्रस्तुत होना याचिकाकर्ता के नियंत्रण से परे कारणों से था और इसलिए, उसकी उम्मीदवारी को अस्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने पाया कि विज्ञापन में स्पष्ट रूप से अंतिम वर्ष के छात्रों द्वारा दस्तावेज जमा करने की कट-ऑफ तिथि तय की गई थी, अर्थात लिखित परीक्षा की तिथि से पहले। और याचिकाकर्ता दस्तावेज जमा करने में असमर्थ थी क्योंकि उसके शोध प्रबंध का परिणाम उसके विश्वविद्यालय द्वारा कट-ऑफ तिथि के बाद घोषित किया गया था। हालांकि, न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के विश्वविद्यालय की ओर से इस देरी के कारण, पूरी कट-ऑफ तिथि को रद्द नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने कहा,
“वर्तमान मामले के तथ्यों में, कट-ऑफ तिथि के विरुद्ध कोई चुनौती नहीं उठाई गई है। बल्कि, याचिकाकर्ता के विश्वविद्यालय की ओर से याचिकाकर्ता के अंतिम वर्ष के परिणाम घोषित करने में देरी ही एकमात्र आधार है। यह बिना कहे ही स्पष्ट है कि उक्त देरी के लिए, चुनौती के बिना पूरी कट-ऑफ तिथि को रद्द नहीं किया जा सकता और/या केवल कुछ प्रतिभागियों को समायोजित करने के लिए शिथिल नहीं किया जा सकता, जबकि उक्त कट-ऑफ तिथि, स्पष्ट रूप से सभी आवेदकों के लिए एक समान है।”
न्यायालय ने यह भी कहा कि कट-ऑफ तिथि निर्धारित करना नियोक्ता के अधिकार क्षेत्र में आता है और केवल कुछ प्रतिभागियों को समायोजित करने के लिए इसमें शिथिलता नहीं की जा सकती। तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: रीता सिंह बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।
साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (राजस्थान) 133