राजस्थान हाईकोर्ट ने बेटे को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में अपनी बहू को नौकरी से बर्खास्त करने की मांग करने वाले व्यक्ति की याचिका खारिज की, 50 हजार का जुर्माना लगाया

Update: 2024-12-19 07:48 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक ससुर पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया, क्योंकि उसने अपनी बहू के खिलाफ लंबित FIR के आधार पर उसे पटवारी के पद से हटाने की मांग करते हुए निराधार रिट याचिका दायर की, जिसमें उसने अपने बेटे को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया।

जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ ने फैसला सुनाया कि कानून की यह स्थापित स्थिति है कि व्यक्तिगत रंजिश और अप्रत्यक्ष विचारों को निपटाने के लिए कानून की प्रक्रिया का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए और याचिकाकर्ता द्वारा ऐसा कृत्य कानून की प्रक्रिया का सरासर दुरुपयोग है।

न्यायालय याचिकाकर्ता द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उसने अपनी बहु को इस आधार पर सेवा से हटाने का निर्देश देने की मांग की थी कि उसके खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने की FIR दर्ज की गई। इस तरह के आचरण के कारण उसे सेवा में नहीं रखा जा सकता।

याचिकाकर्ता ने न्याय की मांग करते हुए राज्य को नोटिस भी भेजा लेकिन राज्य द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिसके तहत न्यायालय के समक्ष रिट याचिका दायर की गई।

तर्कों को सुनने के बाद न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि याचिकाकर्ता और उसकी बहु के बीच संबंध तब खराब हो गए, जब याचिकाकर्ता के बेटे ने 2021 में आत्महत्या कर ली, जिसके कारण याचिकाकर्ता ने अपनी बहु के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाते हुए FIR दर्ज कराई।

जब बहु को पटवारी के पद पर नियुक्ति मिल गई तो याचिकाकर्ता व्यथित हो गया और उसने राज्य को नोटिस भेजा।

न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के गुरपाल सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले का संदर्भ दिया, जिसमें यह माना गया कि न्यायालय को अपनी प्रक्रिया का दुरुपयोग अप्रत्यक्ष कारणों से नहीं करने देना चाहिए।

इसी तरह चंचलपति दास बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य के मामले में यह माना गया,

“जिस तरह खराब सिक्के अच्छे सिक्कों को प्रचलन से बाहर कर देते हैं, उसी तरह खराब मामले अच्छे मामलों को समय पर सुनवाई से बाहर कर देते हैं। न्यायालयों में तुच्छ मामलों के प्रसार के कारण वास्तविक और सच्चे मामलों को पीछे हटना पड़ता है, जो पक्ष तुच्छ गैरजिम्मेदार और निरर्थक मुकदमा शुरू करता है और जारी रखता है या जो न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग करता है, उसे जुर्माने का सामना करना चाहिए, जिससे अन्य लोग ऐसा करने से बचे।”

इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने माना कि व्यक्तिगत विवादों को निपटाने के लिए न्यायालय के मंच का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता। यदि याचिकाकर्ता के मन में बहू के प्रति कोई दुर्भावना भी थी तो भी उसे अन्य वादियों का समय बर्बाद करने के लिए आधारहीन रिट याचिका दायर करके न्यायालय का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

तदनुसार यह माना गया कि रिट याचिका अत्यधिक गलत थी और याचिकाकर्ता पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाकर इसे खारिज कर दिया गया।

केस टाइटल: बनवारी लाल स्वामी बनाम राजस्व मंडल, राजस्थान एवं अन्य।

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