Right To Education | बच्चे के आधार कार्ड पर निवास वार्ड नंबर का न होना RTE Act के तहत एडमिशन अस्वीकार करने का आधार नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट
शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (RTE Act) के तहत प्राइवेट स्कूल में एडमिशन के लिए आवेदन अस्वीकार किए जाने वाले नाबालिग को राहत प्रदान करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 21-ए के तहत किसी मौलिक अधिकार को केवल प्रक्रियात्मक आधार या तकनीकी कारणों से समाप्त या सीमित नहीं किया जा सकता।
वर्तमान मामले में बच्चे का आवेदन इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया कि सत्यापन के लिए प्रस्तुत आधार कार्ड पर उसके निवास वार्ड का नंबर नहीं था।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ ने कहा कि एक बार जब याचिकाकर्ता का लॉटरी ड्रॉ के तहत स्कूल में एडमिशन के लिए चयन हो गया तो केवल इस तकनीकी आधार पर उसका आवेदन अस्वीकार नहीं किया जा सकता था।
आगे कहा गया,
“प्रतिवादी याचिकाकर्ता के आवेदन को अस्वीकार करने के बजाय, उससे उसके निवास वार्ड के संबंध में दस्तावेजी प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए कह सकते थे। प्रतिवादियों की ऐसी कार्रवाई पूरी तरह से अनुचित है और कानून की दृष्टि में यह मान्य नहीं है।”
याचिकाकर्ता का कहना था कि तकनीकी आधार पर उसका आवेदन खारिज होने के बाद दस्तावेजों के सत्यापन की समय सीमा बढ़ा दी गई। इस विस्तार की अंतिम तिथि पर याचिकाकर्ता ने सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी दस्तावेज प्रस्तुत किया, जिसमें वार्ड संख्या अंकित है।
इस पर विचार किए बिना बच्चे का आवेदन खारिज कर दिया गया।
प्रस्तावना में न्यायालय ने टिप्पणी की,
"शिक्षा का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत सम्मान के साथ जीने के मौलिक अधिकार की पवित्र दीवारों के अंतर्गत आता है, क्योंकि शिक्षा एक अच्छा और सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करती है... भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21-ए को सभी मौलिक अधिकारों में सबसे महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि मौलिक अधिकार को लागू करने की क्षमता उसकी शिक्षा से आती है।"
मामले के तथ्यों का अवलोकन करते हुए न्यायालय ने कहा,
"जब प्रतिवादियों ने दस्तावेजों के सत्यापन के लिए तिथि 08.05.2025 तक बढ़ा दी है और याचिकाकर्ता ने 08.05.2025 को अपने वार्ड के संबंध में सही दस्तावेज प्रस्तुत कर दिए तो प्रतिवादियों को उसे एडमिशन देने और लॉटरी प्रक्रिया में उसका नाम शामिल करने के उद्देश्य से उक्त दस्तावेज पर विचार करना चाहिए, लेकिन प्रतिवादी ऐसा करने में बुरी तरह विफल रहे हैं।"
शिक्षा के अधिकार के महत्व पर ज़ोर देते हुए यह कहा गया कि यह अधिकार स्टूडेंट को न केवल अपनी क्षमताओं के विकास में बल्कि अपने सर्वोच्च हित को समझने में भी मदद करेगा।
तदनुसार, याचिका स्वीकार कर ली गई और राज्य को 15 दिनों के भीतर संबंधित निजी स्कूल में बच्चे का एडमिशन कराने का निर्देश दिया गया।