राजस्थान हाईकोर्ट ने मृतक की पत्नी की आपत्ति के बावजूद विधवा उम्मीदवारों के लिए आयोजित परीक्षा में महिला को बैठने की अनुमति दी
राजस्थान हाईकोर्ट ने एक पुरुष की विधवा होने का दावा कर रही एक महिला को अनुसूचित जनजाति (विधवा) श्रेणी के अंतर्गत प्रारंभिक शिक्षा में डिप्लोमा कोर्ट पूरा करने की अनुमति दी, जबकि मृतक की पत्नी ने उसकी "विधवा" स्थिति को चुनौती दी थी।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने कहा कि याचिकाकर्ता की मृतक की "विधवा" या "तलाकशुदा पत्नी" के रूप में स्थिति पर न्यायालय निर्णय नहीं कर सकता, क्योंकि यह एक विवादित तथ्यात्मक प्रश्न है। हालांकि, न्यायालय ने कहा कि चूंकि उसे एक अंतरिम आदेश के आधार पर कोर्स जारी रखने की अनुमति दी गई, इसलिए उसे अब लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने कहा,
"याचिकाकर्ता और प्रतिवादी नंबर 8 (उत्तरवर्ती पत्नी) को अपनी स्थिति घोषित करने के लिए उचित कानूनी मंच पर जाना होगा। लेकिन इस तथ्य को देखते हुए कि इस न्यायालय द्वारा दिनांक 21.10.2024 को पारित अंतरिम आदेश के माध्यम से याचिकाकर्ता को प्रारंभिक शिक्षा में डिप्लोमा कोर्स की पढ़ाई करने की अनुमति दी गई और उसने इसे पूरा कर लिया। अब उपरोक्त कोर्स पूरा होने के कगार पर उसे उस अध्ययन के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता, जो उसने इस न्यायालय द्वारा पारित अंतरिम आदेश के संरक्षण में किया।"
याचिकाकर्ता ने एक व्यक्ति की विधवा होने का दावा करते हुए अनुसूचित जनजाति (विधवा) श्रेणी के अंतर्गत कोर्स में एडमिशन लिया था। एडमिशन दिए जाने के बाद जब उसने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया तो प्रतिवादी एडमिशन रद्द करना चाहते थे। एक अंतरिम निर्देश के रूप में उसे अपनी पढ़ाई जारी रखने की अनुमति दी गई।
इस अंतरिम निर्देश के आधार पर याचिकाकर्ता ने अपनी पढ़ाई पूरी की और परीक्षा फॉर्म जमा किया। हालांकि, प्रतिवादियों ने उसे प्रवेश पत्र जारी नहीं किया। इसलिए याचिकाकर्ता ने फिर से न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
इसके विपरीत प्रतिवादी नंबर 8 ने दावा किया कि याचिकाकर्ता ने मृतक से "सामाजिक तलाक" ले लिया था। इस संबंध में तलाक की एक याचिका भी लंबित थी, जिसे याचिकाकर्ता ने स्वयं सामाजिक तलाक के तथ्य का उल्लेख करते हुए प्रस्तुत किया।
तलाक की याचिका लंबित रहने के दौरान, मृतक ने प्रतिवादी नंबर 8 के साथ विवाह किया और उसके बाद उसकी मृत्यु हो गई। अतः, याचिकाकर्ता मृतक की विधवा नहीं, बल्कि तलाकशुदा पत्नी थी। प्रतिवादी नंबर 8 ने कहा कि याचिकाकर्ता पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के लिए मृतक की विधवा होने के लाभ का दावा करने की हकदार नहीं है।
तर्कों को सुनने के बाद न्यायालय ने प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि वे "इन विशिष्ट परिस्थितियों में" याचिकाकर्ता को परीक्षा में बैठने दें।
हालांकि, न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा इस आदेश का उपयोग मृतक की विधवा होने के किसी भी लाभ का दावा करने के लिए कहीं भी नहीं किया जा सकता है।
तदनुसार, याचिका स्वीकार कर ली गई।
Title: Nisha Meena v State of Rajasthan & Ors.