लंबित आपराधिक मामले को दबाना आरोपों की गंभीरता के बावजूद रोजगार से वंचित करने का आधार: राजस्थान हाईकोर्ट

Update: 2024-09-23 08:48 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक के पद के लिए अस्वीकृत उम्मीदवार को आवेदन पत्र में उसके खिलाफ लंबित आपराधिक मामले के तथ्य का खुलासा न करने और उस संबंध में गलत स्व-घोषणा पत्र दाखिल करने के आधार पर राहत देने से इनकार किया।

जस्टिस विनीत कुमार माथुर की पीठ ने माना कि जिस अपराध के लिए याचिकाकर्ता पर आरोप लगाया गया था, उसकी गंभीरता प्रासंगिक नहीं थी लेकिन भौतिक तथ्य को दबाना ही रोजगार से वंचित करने का आधार था। यह माना गया कि चूंकि विचाराधीन पद प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक का था, इसलिए कर्मचारी का आचरण और चरित्र अधिक प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हो गया।

“जब किसी व्यक्ति को छोटे बच्चों को शिक्षा और संस्कार देने का पवित्र कर्तव्य सौंपा जाता है तो उस व्यक्ति के चयन के लिए सबसे महत्वपूर्ण और प्रासंगिक मानदंड भरोसेमंदता और बेदाग ईमानदारी होनी चाहिए।”

याचिकाकर्ता ने पद के लिए संबंधित परीक्षा उत्तीर्ण की थी। उसे दस्तावेज़ सत्यापन के लिए बुलाया गया, जिसके दौरान यह पता चला कि उसके खिलाफ आपराधिक मामला लंबित है। नतीजतन उसे नियुक्ति नहीं दी गई और याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष याचिका दायर की।

राज्य सरकार के वकील ने प्रस्तुत किया कि यह छिपाने और गलत बयानी का स्पष्ट मामला था। याचिकाकर्ता ने संबंधित प्रश्न के सामने सत्यापन प्रपत्र में क्रॉस लगाकर अपने खिलाफ कोई भी आपराधिक मामला लंबित होने से इनकार किया और अपने स्वयं के हस्ताक्षर से प्रस्तुत स्व-घोषणा पत्र में इस आशय का बयान भी दिया। वकील ने तर्क दिया कि ऐसे व्यक्ति को प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक का पद देने से युवा पीढ़ी का भविष्य बर्बाद हो जाएगा।

राज्य सरकार के वकी ल द्वारा प्रस्तुत तर्कों से सहमत होते हुए न्यायालय ने राजस्थान राज्य विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड बनाम अनिल कंवरिया के सुप्रीम कोर्ट के मामले का संदर्भ दिया, जो समान तथ्यात्मक स्थिति से निपटता है और माना जाता है,

“तो सवाल भरोसे का है। ऐसी स्थिति में जहां नियोक्ता को लगता है कि किसी कर्मचारी ने प्रारंभिक चरण में ही झूठा बयान दिया है या तथ्यात्मक तथ्यों का खुलासा नहीं किया है या तथ्यात्मक तथ्यों को छिपाया है। इसलिए उसे सेवा में जारी नहीं रखा जा सकता, क्योंकि ऐसे कर्मचारी पर भविष्य में भी भरोसा नहीं किया जा सकता। नियोक्ता को ऐसे कर्मचारी को जारी रखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। ऐसे कर्मचारी को जारी रखने या न रखने का विकल्प हमेशा नियोक्ता को दिया जाना चाहिए।”

निर्णय के अनुरूप न्यायालय ने यह भी देखा कि प्रासंगिक प्रश्न याचिकाकर्ता के खिलाफ लंबित आपराधिक मामले में आरोप नहीं था बल्कि रोजगार पाने के लिए उसके द्वारा सूचना को छिपाने का तथ्य था जो अपने आप में उसे रोजगार देने से इनकार करने का आधार था।

न्यायालय ने कहा कि यदि उम्मीदवार की साख झूठ, धोखाधड़ी और गलत बयानी की नींव पर आधारित है तो जिस संस्थान में उसे शिक्षक के रूप में नियुक्त किया जाएगा वह धूमिल होगा।

न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता इस संबंध में नरमी का हकदार नहीं है भले ही वह योग्य हो।

तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई।

केस टाइटल- सत्यनारायण मीना बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य।

Tags:    

Similar News