[Rajasthan Municipalities Act, 2009] अधिनियम के तहत उपाय का लाभ उठाए बिना सीधे सिविल कोर्ट जाने पर कोई रोक नहीं: राजस्थान हाइकोर्ट
राजस्थान हाइकोर्ट में जस्टिस बीरेंद्र कुमार की पीठ ने एक ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी। उक्त याचिका में ट्रायल कोर्ट ने सीपीसी के आदेश VII नियम 11 के तहत शिकायत खारिज करने से इनकार किया था।
यह याचिका राजस्थान नगर पालिका अधिनियम, 2009 के तहत वैकल्पिक उपाय के अस्तित्व के आधार पर दायर की गई थी लेकिन न्यायालय ने यह देखते हुए मामले का फैसला किया कि अधिनियम के तहत सिविल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र पर कोई विशेष रोक नहीं है।
तथ्यात्मक पृष्ठभूमि
इस मामले में याचिकाकर्ता और नगर निगम बीकानेर के खिलाफ याचिकाकर्ता द्वारा किए गए निर्माण के संबंध में प्रतिवादी द्वारा मुकदमा दायर किया गया। यह तर्क दिया गया कि प्रतिवादी के घर के बगल में बहुमंजिला इमारत के निर्माण के कारण उसे अपनी खिड़की खोलने से रोका गया। इसलिए उसके घर की ओर किए गए निर्माण को हटाने की मांग की गई।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि प्रतिवादी को सिविल कोर्ट में जाने से पहले अधिनियम के तहत वैधानिक उपाय का लाभ उठाना चाहिए था। यह भी तर्क दिया गया कि वैधानिक उपाय सक्षम प्राधिकारी के आदेश के खिलाफ़ शिकायत के मामले में अपील का भी प्रावधान करता है। इन तर्कों का समर्थन करने के लिए वकील ने दो मामलों का हवाला दिया।
हाईकोर्ट की टिप्पणियां
कोर्ट ने उन दो मामलों में अंतर किया, जिनका इस्तेमाल याचिकाकर्ता के वकील ने अपने मामले का समर्थन करने के लिए किया था। सबसे पहले कोर्ट ने कहा कि मामले में जयपुर विकास प्राधिकरण अधिनियम (JDA ACt) की धारा 99 के आलोक में आदेश VII नियम 11 (डी) के तहत शिकायत खारिज कर दी गई थी। धारा 99 ने JDA Act के तहत उपाय का लाभ उठाने से पहले सिविल कोर्ट द्वारा संज्ञान लेने पर विशेष रूप से रोक लगा दी।
हालांकि न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अधिनियम के तहत सिविल न्यायालय के अधिकार क्षेत्र पर ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है। दूसरे अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट रिट न्यायालय में जाने से पहले वैकल्पिक उपाय के मुद्दे पर विचार कर रहा था। इसने माना कि निर्माण से पीड़ित पक्ष को नगर निगम अधिकारियों से संपर्क करना चाहिए था। यदि अधिकारियों से कोई उचित प्रतिक्रिया नहीं मिली तो सिविल कोर्ट से संपर्क करना उचित मंच था।
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने कहा कि चूंकि नगर निगम पहले से ही याचिका में एक पक्ष है। इसलिए उसे याचिकाकर्ता की शिकायत पर की गई कार्रवाई के बारे में विस्तार से बताने के लिए लिखित बयान दाखिल करने का अवसर मिलेगा। न्यायालय ने फिर से इस बात पर प्रकाश डाला कि अधिनियम के तहत शिकायत के मामले में सीधे सिविल न्यायालय में जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। इसलिए पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल- नीता कपूर बनाम गायत्री देवी और अन्य।