राजस्थान हाईकोर्ट ने जोर देकर कहा, केंद्र और राज्य सरकार लिव-इन रिलेशनशिप को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाएं; जब तक ऐसा कानून न बने, लिव-इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन हो
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राजस्थान हाईकोर्ट ने जोर देकर कहा है कि लिव-इन रिलेशनशिप को नियंत्रित करने के लिए केंद्र ओर राज्य सरकार की ओर से कानून बनाना समय की मांग है। हाईकोर्ट ने जयपुर पीठ ने बुधवार निर्देश दिया कि जब तक ऐसा कानून नहीं बन जाता, लिव-इन-रिलेशनशिप को सरकार की ओर से स्थापित प्राधिकरण या न्यायाधिकरण को पंजीकृत करना चाहिए।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने आदेश में कहा,
"लिव-इन-रिलेशनशिप एग्रीमेंट को सक्षम प्राधिकरण/न्यायाधिकरण को पंजीकृत करना चाहिए, जिन्हें सरकार की ओर से स्थापित किया जाना आवश्यक है। सरकार की ओर से उचित कानून बनने तक, ऐसे लिव-इन-रिलेशनशिप के पंजीकरण के मामले को देखने के लिए राज्य के प्रत्येक जिले में सक्षम प्राधिकरण स्थापित किया जाए, जो ऐसे पार्टनरों/दंपत्तियों, जिन्होंने ऐसे रिश्ते में प्रवेश किया है और उनसे बच्चे पैदा हुए है, उनकी शिकायतों को एड्रेस करेगा और उनका निवारण करेगा। इस संबंध में एक वेबसाइट या वेबपोर्टल शुरू किया जाए, ताकि ऐसे रिश्ते से पैदा मुद्दे का समाधान किया जा सके"।
न्यायालय ने आगे निर्देश दिया कि जब तक केंद्र और राज्य सरकार कानून नहीं बनाती हैं, तब तक वैधानिक प्रकृति की योजना कानूनी प्रारूप में तैयार की जानी आवश्यक है।
प्रारूप तैयार करें, जिसमें लिव-इन-रिलेशनशिप के लिए शर्तें तय हों
न्यायालय ने उचित प्राधिकारी द्वारा प्रारूप तैयार करने का निर्देश दिया, जिससे ऐसे लिव-इन-रिलेशनशिप में प्रवेश करने के इच्छुक जोड़ों/पार्टनरों के लिए ऐसे संबंध में प्रवेश करने से पहले निम्नलिखित नियमों और शर्तों के साथ प्रारूप भरना आवश्यक हो जाएगा:
(i) ऐसे संबंध से पैदा हुए बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और पालन-पोषण की जिम्मेदारी उठाने के लिए बाल योजना के रूप में पुरुष और महिला पार्टनरों की जिम्मेदारी तय करना।
(ii) ऐसे संबंध में रहने वाली गैर-कमाऊ महिला साथी और ऐसे संबंध से पैदा हुए बच्चों के भरण-पोषण के लिए पुरुष साथी की जिम्मेदारी तय करना।
महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा की जरूरत है
न्यायालय ने कहा कि विषय-वस्तु के संबंध में किसी विधायी ढांचे के अभाव में, न्यायालयों के अलग-अलग दृष्टिकोणों के कारण कई लोग भ्रमित हो सकते हैं।
अदालत ने जोर देकर कहा,
"समय की मांग है कि एक कानून बनाया जाए या एक नया कानून बनाया जाए जो लिव-इन रिलेशनशिप के मामले को देखे और ऐसे रिश्ते में रहने वाले जोड़ों को अधिकार प्रदान करे तथा उन पर दायित्व लागू करे। एक अलग कानून होना चाहिए जो ऐसे रिश्ते में पीड़ित बच्चों और महिला भागीदारों को सहायता प्रदान करने में सक्षम हो।"
अदालत ने आगे कहा कि संसद और राज्य विधानमंडल को इस मुद्दे पर विचार करना चाहिए और एक उचित कानून बनाना चाहिए या कानून में उचित संशोधन करना चाहिए, ताकि ऐसे रिश्ते में रहने वाले जोड़ों को उनके परिवार, रिश्तेदारों और समाज के सदस्यों के हाथों किसी भी तरह के नुकसान और खतरे का सामना न करना पड़े।
अदालत ने कहा कि कभी-कभी ऐसे रिश्तों में रहने वाली महिला पार्टनर को तब भी तकलीफ होती है, जब ऐसे रिश्ते टूट जाते हैं। अदालत ने कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए और इस तरह के रिश्ते से पैदा हुए बच्चों की सुरक्षा की आवश्यकता है, भले ही ऐसा रिश्ता विवाह की प्रकृति का रिश्ता न हो।
अदालत ने निर्देश दिया,
"इस आदेश की एक प्रति राजस्थान राज्य के मुख्य सचिव, विधि एवं न्याय विभाग के प्रमुख सचिव और न्याय एवं समाज कल्याण विभाग, नई दिल्ली के सचिव को भेजी जाए, ताकि वे इस न्यायालय की ओर से जारी आदेश/निर्देश के अनुपालन के लिए आवश्यक कार्रवाई करने के लिए मामले की जांच कर सकें। उन्हें आगे निर्देश दिया जाता है कि वे एक मार्च 2025 को या उससे पहले इस न्यायालय को अनुपालन रिपोर्ट भेजें तथा उनके द्वारा उठाए जा रहे कदमों से इस न्यायालय को अवगत कराएं।"
अदालत ने हाईकोर्ट की एक बड़ी पीठ को यह निर्णय लेने के लिए भी संदर्भित किया कि क्या विवाहित व्यक्ति जो पहले अपनी शादी को समाप्त किए बिना अन्य व्यक्तियों के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहना चुनते हैं, वे न्यायालय से सुरक्षा आदेश प्राप्त करने के हकदार हैं।
यह हाईकोर्ट के विभिन्न निर्णयों पर ध्यान देने के बाद कहा गया, जहां एकल पीठों द्वारा परस्पर विरोधी विचार लिए गए थे, यह देखते हुए कि ऐसी स्थिति में प्रश्न को एक विशेष/बड़ी पीठ को संदर्भित किया जाना चाहिए, ताकि विवाद को कानून के अनुसार समाप्त किया जा सके।
केस टाइटल: एक्स और वाई बनाम राजस्थान राज्य और अन्य