किशोरावस्था साबित करने का पैमाना कठोर सबूत नहीं, संदेह की स्थिति में आरोपी के पक्ष में झुके अदालतें: राजस्थान हाईकोर्ट

Update: 2025-09-06 06:07 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी आरोपी की जुवेनाइल (किशोर) होने की दलील पर सुनवाई के दौरान सबूत का पैमाना उतना कठोर नहीं होना चाहिए जितना कि किसी आपराधिक मुकदमे में “बियोंड रीज़नेबल डाउट” की कसौटी पर परखा जाता है। यदि दो दृष्टिकोण संभव हों तो सीमा-रेखा वाले मामलों में अदालत को आरोपी के पक्ष में झुकना चाहिए।

जस्टिस संदीप शाह की एकल पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन) एक्ट, 2015 की धारा 94 में जिन दस्तावेजों को प्राथमिकता दी गई, जैसे स्कूल का जन्म प्रमाण पत्र, मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट या नगरपालिका/पंचायत का जन्म प्रमाण पत्र वे तब तक प्रासंगिक माने जाएंगे, जब तक यह साबित न हो जाए कि वे जाली या छेड़छाड़ किए गए हैं।

अदालत ने कहा कि ऐसे दस्तावेज उपलब्ध होने पर आयु निर्धारण के लिए मेडिकल परीक्षण की आवश्यकता नहीं है।

मामला POCSO Act से जुड़ा था, जिसमें निचली अदालत ने आरोपी-प्रतिवादी को नाबालिग मानने का आवेदन स्वीकार कर लिया था।

याचिकाकर्ता ने इस आदेश को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि आवेदन तीसरी बार दाखिल हुआ। मुकदमे के लगभग पूरा हो जाने के बाद दायर किया गया। इसलिए यह स्वीकार्य नहीं है। साथ ही आधार कार्ड और मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट को निर्णायक सबूत नहीं माना जा सकता।

वहीं प्रतिवादी पक्ष ने कहा कि अभियोजन द्वारा पेश आयु प्रमाण पत्र फर्जी है, क्योंकि उस पर पिता के अंग्रेज़ी में हस्ताक्षर थे, जबकि वह हमेशा हिंदी में हस्ताक्षर करते थे।

हाईकोर्ट ने कहा कि जांच का दायरा केवल JJ Act की धारा 9 और 94 के अनुरूप होना चाहिए, न कि आपराधिक मुकदमे की तरह गहन और लंबी पूछताछ जैसा। सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि प्रमाण पत्रों की सत्यता पर तभी सवाल उठाया जा सकता है जब वे स्पष्ट रूप से जाली या हेरफेर किए हुए पाए जाएँ।

अदालत ने पाया कि प्रतिवादी द्वारा पेश मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट और स्कूल से जुड़े अन्य दस्तावेज पर्याप्त रूप से प्रमाणित हैं। अभियोजन यह साबित नहीं कर पाया कि वे नकली हैं। इसलिए इन्हें ही आरोपी की उम्र निर्धारित करने के लिए पर्याप्त माना जाएगा।

साथ ही अदालत ने यह भी माना कि मुकदमे के अंतिम चरण या उसके बाद भी आरोपी को किशोरावस्था का दावा उठाने से वंचित नहीं किया जा सकता। ऐसा करना JJ Act की मूल भावना के खिलाफ होगा।

इस आधार पर हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा।

केस टाइटल : X बनाम राज्य राजस्थान एवं अन्य

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