पहला बन्दूक का बड़ा आकार दूसरे हथियार के लिए लाइसेंस मांगने का आधार नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने व्यक्ति का आवेदन खारिज करने वाले सक्षम प्राधिकारी के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार किया। दूसरा बंदूक लाइसेंस इस आधार पर मांगा गया था कि उसके पास जो पहली लाइसेंसी बंदूक थी वह 12 बोर की बंदूक है जो उसके लिए ले जाने के लिए बहुत भारी थी।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ ने कहा कि भारत में हथियार रखने का अधिकार संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) और यूनाइटेड किंगडम (UK) के इस अधिकार की तुलना में पूरी तरह से अलग है। यह माना गया कि किसी को भी हथियार रखने का मौलिक अधिकार नहीं है, खासकर तब जब आज के समय में इसका होना आत्मरक्षा के बजाय दिखावा और स्टेटस का प्रतीक बन गया।
"शस्त्र अधिनियम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि नागरिक को आत्मरक्षा के लिए हथियार उपलब्ध हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति को हथियार रखने का लाइसेंस दिया जाना चाहिए। हम एक अराजक समाज में नहीं रह रहे हैं, जहां व्यक्तियों को अपनी रक्षा के लिए हथियार हासिल करने या रखने पड़ते हैं।"
याचिकाकर्ता का मामला यह था कि वह पुलिस विभाग में सेवारत है। उसके पास एक 12 बोर की बंदूक है, जो उसे उसके पिता ने उपहार में दी, जो सुरक्षा उद्देश्यों के लिए आवश्यक है। वकील ने तर्क दिया कि शस्त्र अधिनियम 1959 (अधिनियम) के तहत एक साथ दो हथियार रखने पर कोई रोक नहीं है। इसलिए अधिकारियों को याचिकाकर्ता को दूसरे हथियार के लिए अतिरिक्त लाइसेंस देने का निर्देश दिया जाना चाहिए।
इसके विपरीत प्रतिवादियों द्वारा यह तर्क दिया गया कि चूंकि याचिकाकर्ता के पास पहले से ही बंदूक का लाइसेंस हैष इसलिए केवल इस आधार पर कि पहली बंदूक बड़ी होने के कारण उसे ले जाना मुश्किल है। उसे दूसरा लाइसेंस देने का कोई औचित्य नहीं है।
न्यायालय ने अधिनियम का अवलोकन किया और कहा कि अधिनियम के उद्देश्यों से संकेत मिलता है कि विधायिका का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि लाइसेंस रखने वाले नागरिकों को आत्मरक्षा के लिए हथियार उपलब्ध हों। यह देखा गया कि भारत में आग्नेयास्त्र रखने का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है जैसा कि राजेंद्र सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के सुप्रीम कोर्ट के मामले में स्पष्ट रूप से फैसला सुनाया गया।
न्यायालय ने भारत और अमेरिका में हथियार रखने के अधिकार की तुलना की और कहा कि अमेरिका में हथियार रखने का अधिकार लोगों के आत्मरक्षा के अधिकार को संदर्भित करता है। इसे दूसरे संशोधन के तहत संवैधानिक मान्यता प्राप्त है, जो अमेरिकी नागरिकों को किसी भी अत्याचारी खतरे के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करने का अधिकार देता है। हालांकि किसी देश में आग्नेयास्त्र रखना केवल वैधानिक विशेषाधिकार का मामला था और किसी भी नागरिक को आग्नेयास्त्र रखने का व्यापक अधिकार नहीं था।
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने माना कि शस्त्र लाइसेंस क़ानून द्वारा बनाया गया। लाइसेंसिंग प्राधिकरण को इस तरह का लाइसेंस देने या न देने का विवेकाधिकार है। यह माना गया कि याचिकाकर्ता ने दूसरा लाइसेंस चाहने के लिए कोई उचित कारण नहीं बताया। मौजूदा हथियार का आकार बहुत बड़ा होना दूसरे हथियार के लाइसेंस का दावा करने का आधार नहीं हो सकता।
“किसी के पास हथियार रखने का मौलिक अधिकार नहीं है। आजकल इसे “स्टेटस के प्रतीक” के रूप में दिखाने के लिए रखा जाता है बजाय आत्मरक्षा के यह प्रदर्शित करने के कि वह एक प्रभावशाली व्यक्ति है। हथियार रखने का लाइसेंस तब दिया जाना चाहिए, जब इसकी आवश्यकता हो न कि केवल किसी व्यक्ति की इच्छा के अनुसार।”
कोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर याचिका यह कहते हुए खारिज की कि वह यह साबित करने में विफल रहा कि उसकी जान को गंभीर खतरा है। इसके लिए उसे दो अलग-अलग बंदूक रखने की आवश्यकता है।
केस टाइटल: बृजेश कुमार सिंह बनाम राजस्थान राज्य और अन्य