जेल सुपरिंटेंडेंट स्वास्थ्य विभाग से प्रतिनियुक्ति पर आए मेडिकल अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू नहीं कर सकते: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने माना कि केंद्रीय कारागार के सुपरिंटेंडेंट, एक अलग प्रशासनिक विभाग होने के नाते मेडिकल एवं स्वास्थ्य विभाग से प्रतिनियुक्त चिकित्सा अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने का कोई अधिकार या क्षमता नहीं रखते हैं।
जस्टिस फरजंद अली की पीठ ने याचिकाकर्ता के स्थानांतरण आदेशों को रद्द करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिनमें राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम, 1958 ("नियम") के तहत जेल अधीक्षक को उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने का निर्देश भी शामिल था।
याचिकाकर्ता मेडिकल एवं स्वास्थ्य सेवा विभाग के तहत एक मेडिकल अधिकारी के रूप में कार्यरत थे और कैदियों की चिकित्सा देखभाल और पर्यवेक्षण के लिए प्रतिनियुक्ति पर केंद्रीय कारागार में तैनात थे।
एक कथित शिकायत के आधार पर उप सचिव, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं ने याचिकाकर्ता के खिलाफ केंद्रीय कारागार से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में स्थानांतरण आदेश जारी किए और केंद्रीय कारागार के अधीक्षक को उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने का भी निर्देश दिया। इसलिए, इस आदेश के विरुद्ध एक याचिका दायर की गई।
रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्यरत था और उसके विरुद्ध अनुशासनात्मक जांच केवल उसी विभाग के सक्षम प्राधिकारियों द्वारा ही शुरू की जा सकती है।
आगे कहा गया,
"बीकानेर स्थित केंद्रीय कारागार के सुपरिंटेंडेंट अलग प्रशासनिक विभाग के अधिकारी हैं। उनके पास किसी मेडिकल अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने का न तो अधिकार है और न ही क्षमता। आरोप-पत्र जारी करने सहित ऐसी कोई भी कार्रवाई केवल मुख्य मेडिकल एवं स्वास्थ्य अधिकारी या चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा विभाग के निदेशक द्वारा ही राजस्थान सिविल सेवा नियम और सीसीए नियम, 1958 के प्रावधानों के पूर्ण अनुपालन में की जा सकती है।"
इसके अलावा, कोर्ट ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि अभिलेखों में ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला, जिससे यह पता चले कि स्थानांतरण प्रशासनिक आवश्यकता, कार्य-निष्पादन संबंधी मुद्दों या किसी अन्य वैध आधार पर किया गया था।
इस संदर्भ में, यह माना गया कि यह आदेश प्रक्रियात्मक अनुचितता, अधिकार क्षेत्र के अभाव और प्रशासनिक विवेकाधिकार के मनमाने प्रयोग को दर्शाता है।
पीठ ने कहा,
"आलोचना किया गया स्थानांतरण आदेश (अनुलग्नक-5) मौलिक रूप से अधिकार क्षेत्र के अभाव से ग्रस्त है, क्योंकि राहत देने और साथ ही अनुशासनात्मक कार्यवाही का सुझाव देने वाले प्राधिकारी के पास सेवा नियमों के तहत योग्यता का अभाव है। इसके अलावा, राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम, 1958 के तहत निहित प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं किया गया। प्रतिवादी यह साबित करने में विफल रहे हैं कि आलोचना की गई कार्रवाई कानून या किसी स्थापित प्रशासनिक मानदंडों के अनुरूप थी।"
तदनुसार, याचिका स्वीकार कर ली गई और स्थानांतरण आदेश रद्द कर दिए गए।
Title: Kailash Sankhla v State of Rajasthan & Ors.