खुद को सुप्रीम कोर्ट अधिक 'सुप्रीम' मानता हैं : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने अवमानना ​​कार्यवाही पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की

Update: 2024-08-07 05:26 GMT

असामान्य आदेश में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट की अवमानना ​​कार्यवाही पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की। कोर्ट ने कहा कि "हाईकोर्ट के समक्ष लंबित कुछ कार्यवाही के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाईकोर्ट को विविध निर्देश जारी करने की कोई गुंजाइश नहीं है।"

वर्तमान मामले में हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना ​​कार्यवाही पर रोक लगाई, न कि अवमानना ​​कार्यवाही आरंभ करने वाले आदेश के विरुद्ध अपील पर सुनवाई करते समय, बल्कि उस आदेश के विरुद्ध अपील पर सुनवाई करते समय, जिसके आधार पर अवमानना ​​कार्यवाही आरंभ की गई।

जस्टिस राजबीर सहरावत की पीठ ने कहा,

"मनोवैज्ञानिक स्तर पर देखा जाए तो इस प्रकार का आदेश मुख्य रूप से दो कारकों से प्रेरित होता है, पहला, इस तरह के आदेश के परिणाम की जिम्मेदारी लेने से बचने की प्रवृत्ति, जो संभवतः इस बहाने से उत्पन्न होने वाला है कि अवमानना ​​कार्यवाही पर रोक लगाने का आदेश किसी पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालता है।"

न्यायाधीश ने कहा कि दूसरी बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट को वास्तव में उससे अधिक 'सुप्रीम' मानने और हाईकोर्ट को संवैधानिक रूप से उससे कम 'उच्च' मानने की प्रवृत्ति है।

न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सुप्रीम कोर्ट ने कई बार स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट के अधीन नहीं है।

इसलिए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के बीच संबंध वैसा नहीं है, जैसा कि अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर सिविल जज (जूनियर डिवीजन) और हाईकोर्ट के बीच होता है।

जस्टिस सहरावत ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 132 से 134 के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट बिना शर्त अपील का सामान्य न्यायालय भी नहीं है, जब तक कि निर्दिष्ट मामलों में हाईकोर्ट के आदेशों से सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का कोई विशिष्ट कानून न हो।

हाईकोर्ट ने आगे कहा,

हाईकोर्ट अभी भी सुप्रीम कोर्ट से आने वाले किसी भी प्रकार के निर्देशों का पालन कर सकते हैं, कभी-कभी कथित दबाव के कारण, कभी-कभी ऐसे आदेश के लिए उचित सम्मान के कारण, और कभी-कभी संस्थागत महिमा के लिए।

न्यायालय ने कहा,

"हालांकि, अवमानना ​​कार्यवाही पर रोक लगाने के ऐसे आदेश से कितने गंभीर और नुकसानदायक परिणाम हो सकते हैं, इसकी कल्पना सुप्रीम कोर्ट ने अपनी व्यापक कल्पना में भी नहीं की होगी।"

हाईकोर्ट ने अवमानना ​​कार्यवाही पर रोक लगाने के आदेश से होने वाले "हानिकारक परिणामों" को दर्शाने के लिए उदाहरण दिया। इसने अवमानना ​​कार्यवाही पर रोक लगाने वाली विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी नंबर 14945/2019) में पारित आदेश का हवाला दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि इस स्थगन आदेश के परिणामस्वरूप पिछले कई वर्षों से पंजाब एंड हरियाणा सुपीरियर न्यायपालिका के लगभग 35% कर्मचारी अपने चयन ग्रेड और सुपर टाइम स्केल से वंचित हैं।

न्यायालय ने कहा,

"इसमें कोई संदेह नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ने कभी भी ऐसे गंभीर परिणामों की कल्पना नहीं की होगी। हालांकि, वास्तव में ऐसा इसलिए हुआ है, क्योंकि पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने प्रशासनिक पक्ष से इस आदेश की व्याख्या न्यायिक पक्ष से इस न्यायालय की खंडपीठ द्वारा पारित अंतिम आदेश पर रोक लगाने वाले वास्तविक आदेश के रूप में की है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा एसएलपी पर अंतिम रूप से निर्णय लिए जाने तक न्यायिक अधिकारियों को उपरोक्त स्केल प्रदान न करने का निर्णय लिया।"

हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को "चेतावनी" दी

जस्टिस सहरावत ने सवाल किया,

"पंजाब एंड हरियाणा राज्य की उच्च न्यायपालिका में कार्यरत न्यायिक अधिकारी की इस दुर्दशा के लिए कौन जिम्मेदार है। क्या यह हाईकोर्ट है या सुप्रीम कोर्ट? हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस पहलू पर आत्ममंथन करना दोनों को समान रूप से आश्चर्यचकित कर सकता है।"

न्यायाधीश ने कहा,

"हालांकि, इस न्यायालय की विनम्र राय में यह माननीय सुप्रीम कोर्ट के लिए भी सावधानी बरतने जैसा है कि वह अपने आदेश के माध्यम से कानूनी परिणाम उत्पन्न करने में अधिक विशिष्ट हो।"

वर्तमान मामले का उल्लेख करते हुए न्यायालय ने कहा,

"न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता को ध्यान में रखते हुए यह न्यायालय आदेश से पूरी तरह से बंधा हुआ महसूस करता है। इसलिए मामले को माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा उपरोक्त एसएलपी पर निर्णय होने तक अनिश्चित काल के लिए स्थगित किया जाता है।"

पीठ ने कहा,

"लेकिन किसी विशेष मामले में निहित विशेष तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर या कुछ वैधानिक प्रावधानों की संलिप्तता के कारण हाईकोर्ट के लिए ऐसा करना हमेशा संभव नहीं हो सकता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति होगी, जिससे बचना बेहतर होगा।"

गौरतलब है कि इसके बाद चीफ जस्टिस शील नागू ने रोस्टर में संशोधन किया और न्यायालय की अवमानना ​​के मामलों को जस्टिस राजबीर सहरावत से जस्टिस हरकेश मनुजा को ट्रांसफर कर दिया।

जस्टिस सहरावत ने 17 जुलाई को उपर्युक्त आदेश पारित किया था।

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