पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने अपमानजनक आर्टिकल लिखने के मामले में पत्रकार को दी राहत, मुआवजा देने के आदेश पर लगाई रोक

Update: 2024-05-31 05:09 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई तक आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगाने का निर्देश दिया। उक्त निर्देश में मोहाली की अदालत ने पत्रकार राहुल पंडिता को सीआरपीएफ के अधिकारी को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया था, जो कथित रूप से उनके खिलाफ 2014 में द हिंदू में अपमानजनक आर्टिकल लिखने के लिए था।

पंडिता ने कथित रूप से सीपीआई माओवादियों और सीआरपीएफ कर्मियों के बीच मुठभेड़ के संबंध में आर्टिकल लिखा था। सीआरपीएफ में उस समय प्रतिनियुक्त पूर्व आईजी हरप्रीत सिंह सिद्धू ने आरोप लगाया कि आर्टिकल में उन्हें एक गैर-जिम्मेदार अधिकारी के रूप में चित्रित किया गया।

जस्टिस गुरबीर सिंह ने आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी करते हुए मामले को 21 अक्टूबर के लिए टाल दिया और कहा,

"केवल अगली सुनवाई की तारीख तक आदेश के क्रियान्वयन को स्थगित रखा जाएगा।"

न्यायालय अपीलीय न्यायालय के आदेश के विरुद्ध नियमित द्वितीय अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसके तहत पत्रकार राहुल पंडिता द्वारा लिखे गए कथित मानहानिकारक आर्टिकल के कारण प्रतिष्ठा को हुए नुकसान के लिए पूर्व आईजी हरप्रीत सिंह सिद्धू को 50 लाख रुपए का मुआवजा दिया गया था।

सिद्धू ने इससे पहले मानहानि का मुकदमा दायर कर मुआवजे की मांग की थी, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया। हालांकि, अपीलीय न्यायालय ने यह कहते हुए याचिका स्वीकार कर ली कि "हालांकि पैसे के संदर्भ में प्रतिष्ठा और मानसिक पीड़ा के वास्तविक नुकसान का कोई आकलन नहीं किया जा सकता, लेकिन ऊपर चर्चा किए गए सभी तथ्यों और कानून को ध्यान में रखते हुए मैं वादी के खिलाफ मानहानि के बराबर निराधार अपमानजनक टिप्पणियों के कारण प्रतिष्ठा और सद्भावना के नुकसान, मानसिक पीड़ा और कठिनाई के लिए प्रतिवादी नंबर 1 राहुल पंडिता से वादी को मुआवजे के रूप में 50 लाख रुपए की अनुमति देना उचित समझता हूं।"

पंडिता के वकील ने प्रस्तुत किया कि अपीलीय न्यायालय ने उनके खिलाफ एकतरफा कार्यवाही की, क्योंकि जिन पतों पर समन भेजा गया, वे सही नहीं थे। याचिका में यह भी कहा गया कि "आर्टिकल व्यक्तिगत प्रकृति के नहीं हैं या किसी भी तरह से प्रतिवादी की निजता का हनन नहीं करते। बल्कि, आर्टिकल उचित सावधानी से लिखे गए हैं। आर्टिकल आधिकारिक कर्तव्यों के सद्भावनापूर्ण निर्वहन में प्रकाशित किए गए हैं, न कि किसी दुर्भावना से।"

आगे कहा गया,

"आर्टिकल छत्तीसगढ़ में हुई घटना के संबंध में प्रकाशित किए गए, जिसमें प्रतिवादी की कमान में लगभग 1500 सीआरपीएफ जवान, 80-90 माओवादियों के हमले को विफल नहीं कर सके। दो अधिकारियों सहित 14 सैनिक मारे गए और माओवादी भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद लूटने में सफल रहे। आर्टिकल जनहित में था, यानी जनता को इसके बारे में जानने में वैध रुचि है। आर्टिकल लोक सेवक के आचरण के संबंध में प्रकाशित किए गए, जो सार्वजनिक कर्तव्यों का पालन करते हैं। इसलिए प्रतिवादी (स्वीकार्य रूप से) लोक सेवक होने के नाते बेईमानी पर सवाल नहीं उठा सकता।"

आर. राजगोपाल बनाम टी.एन. राज्य (1994) पर भरोसा किया जाता है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता के अधिकार पर ऐतिहासिक मामला है।

पंडिता ने याचिका में यह भी तर्क दिया कि पत्रकार होने के नाते उन्हें वर्तमान मामले में घटित घटना पर निष्पक्ष टिप्पणी करने की अनुमति है। यदि अपीलकर्ता को उचित रूप से नोटिस दिया गया होता तो वह यह भी साबित कर सकता था कि आर्टिकल सटीक और सत्य दोनों है।

उपरोक्त के आलोक में,याचिका में विवादित आदेश रद्द करने की मांग की गई।

केस टाइटल: राहुल पंडिता बनाम हरप्रीत सिंह सिद्धू और अन्य

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