पेंशन राज्य की ओर से कर्मचारियों को दिया जाने वाला दान नहीं बल्कि उसका कर्तव्य है: पी एंड एच हाईकोर्ट ने विधवा को 12 साल तक पेंशन देने से इनकार करने पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक विधवा को 12 वर्षों से अधिक समय तक पेंशन देने से मना करने के लिए दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम (डीएचबीवीएन) और हरियाणा विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड (एचवीपीएनएल) पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।
न्यायालय ने कहा कि, "पेंशन और पेंशन लाभ जिसमें पारिवारिक पेंशन भी शामिल है, राज्य द्वारा किया जाने वाला दान नहीं है और इसे प्रदान करना राज्य का कर्तव्य है।"
जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी ने कहा, "एक गरीब विधवा को पूर्वोक्त अनुचित कारणों से 12 वर्षों तक पारिवारिक पेंशन का लाभ देने से मना किया गया और उसे केवल इसलिए इधर-उधर भटकना पड़ा क्योंकि संगठन का विभाजन हो गया था और याचिकाकर्ता ने निर्दिष्ट संगठन के समक्ष आवेदन दायर नहीं किया था।"
न्यायालय ने कहा कि राज्य के अधिकारियों ने एक विधवा को पारिवारिक पेंशन न देकर अपने कर्तव्यों का परित्याग कर दिया है, जिसकी वह बिना किसी विवाद के कानून के तहत हकदार थी। संविधान के अनुच्छेद 226, 227 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां की गईं, जिसमें हरियाणा राज्य के अधिकारियों द्वारा 20.05.2008 से 31.07.2020 तक पारिवारिक पेंशन के बकाया पर ब्याज न देने की कार्रवाई को रद्द करने और प्रतिवादियों को इसे देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
प्रस्तुतियां सुनने के बाद, न्यायालय ने कहा कि यदि हरियाणा राज्य विद्युत बोर्ड का विभाजन किसी अधिनियम के माध्यम से किया गया है और उसके बाद विभिन्न निर्देश जारी किए गए हैं कि किसकी पारिवारिक पेंशन किस संगठन द्वारा निपटाई जाएगी, तो यह उन बोर्डों का काम और भार था जिन्हें शामिल किया गया है।
न्यायालय ने कहा, "यह एक गरीब विधवा का काम नहीं था कि वह उपरोक्त तकनीकी बातों को जाने कि उसे किस संगठन के समक्ष आवेदन करना है और पूरा दायित्व प्रतिवादियों-सांविधिक निकायों पर था, न कि एक गरीब विधवा पर।" न्यायमूर्ति पुरी ने कहा कि याचिकाकर्ता जो एक गरीब विधवा है, को एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक दौड़ाने के लिए प्रतिवादियों द्वारा अपनाई गई पद्धति न केवल असंवेदनशील है, बल्कि अत्यधिक निंदनीय भी है।"
कोर्ट ने आगे कहा,
“सबसे पहले याचिकाकर्ता को किसी भी एजेंसी को कोई आवेदन नहीं देना था, क्योंकि वह विधवा है और किसी कर्मचारी का कोई विवाद नहीं है, बल्कि प्रतिवादियों का पूरा कर्तव्य उन विधवाओं की देखभाल करना था, जिनके पति की मृत्यु हो गई है, ताकि पारिवारिक पेंशन प्रदान की जा सके। यहां तक कि अगर मान लिया जाए कि याचिकाकर्ता को कोई आवेदन दायर करना था, तो वर्ष 2010 में भी ऐसा ही किया गया है, लेकिन केवल इस आधार पर कोई कार्रवाई नहीं की गई कि याचिकाकर्ता को किसी अन्य संगठन के समक्ष आवेदन दायर करना था, जो कि एक विभाजित संगठन भी था,”।
देवकीनंदन प्रसाद बनाम पर बिहार राज्य और अन्य, [1971(2) एससीसी 330] पर भरोसा करत हुए इस बात पर जोर दिया गया कि पारिवारिक पेंशन सहित पेंशन और पेंशन संबंधी लाभ प्राप्त करने का अधिकार न केवल एक वैधानिक अधिकार है, बल्कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत एक संवैधानिक अधिकार भी है।
उपर्युक्त के आलोक में, न्यायालय ने याचिका को स्वीकार कर लिया और याचिकाकर्ता को 6% प्रति वर्ष (साधारण) की दर से ब्याज देने का निर्देश दिया, जिसकी गणना याचिकाकर्ता के पति की मृत्यु की तिथि से लेकर उसके वास्तविक संवितरण की तिथि तक तीन महीने की अवधि के भीतर की जानी है।
याचिका का निपटारा करते हुए न्यायालय ने यह भी कहा कि विधवा 1 लाख रुपये की अनुकरणीय लागत की हकदार है।
केस टाइटल: सुजाता मेहता बनाम दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम और अन्य
साइटेशन: 2024 लाइवलॉ (पीएच) 272