विधायक के खिलाफ सीएम भगवंत मान के बयान की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों के खिलाफ मानहानि का मामला खारिज

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने 2019 में तत्कालीन आम आदमी पार्टी (AAP) विधायक नज़र सिंह मानशाहिया के खिलाफ मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान द्वारा दिए गए बयान की रिपोर्टिंग करने के लिए द ट्रिब्यून अखबार के पूर्व प्रधान संपादक और अन्य पत्रकार के खिलाफ दायर मानहानि का मामला खारिज कर दिया।
रिपोर्ट के अनुसार तत्कालीन पंजाब आप प्रमुख और संगरूर सांसद भगवंत मान ने कहा कि कांग्रेस नेताओं ने विधायक नज़र सिंह मानशाहिया को कुछ पैसे और पद की पेशकश की थी।
जस्टिस त्रिभुवन दहिया ने कहा,
"याचिकाकर्ताओं के खिलाफ पूरी शिकायत में ऐसा कोई आरोप नहीं है। सीजेएम के समक्ष अपनी गवाही में शिकायतकर्ता ने केवल शिकायत में दिए गए अपने बयान को दोहराया है। इसके अलावा, रिकॉर्ड पर कोई भी ऐसी सामग्री नहीं लाई गई, जिससे प्रथम दृष्टया यह संकेत मिले कि याचिकाकर्ताओं ने शिकायतकर्ता की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए उस पर आरोप लगाया या प्रकाशित किया था, या यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि इससे उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचेगा।
न्यायालय ने उल्लेख किया कि सीजेएम द्वारा दिनांक 14.12.2020 को दिए गए आदेश में उद्धृत कारण,
"इस बात का ज्ञान या विश्वास करने का कारण होने के बावजूद कि इस तरह के आरोप से शिकायतकर्ता की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचेगा, इसे मुद्रण और प्रकाशन के लिए आगे फारवर्ड किया गया, बिल्कुल भी सबूत के बिना है। यही कारण है कि इसके समर्थन में कोई संदर्भ नहीं मिलता है।”
न्यायाधीश ने कहा,
"मामले में याचिकाकर्ताओं की मिलीभगत को इंगित करने वाली किसी भी सामग्री के अभाव में उन्हें मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाने का कोई कारण नहीं था; तदनुसार, यह आदेश निराधार और अस्थिर है।"
शिकायत में आरोप लगाया गया कि राजेश रामचंद्रन जो समाचार पत्र 'द ट्रिब्यून (अंग्रेजी)' के संपादक के रूप में कार्यरत थे तथा परवेश शर्मा जो जिला संगरूर में पदस्थ थे, समाचार पत्र 'द पंजाबी ट्रिब्यून' के संपादक के रूप में कार्यरत थे। रिपोर्टर गुरदीप सिंह लाली ने मानशाहिया के खिलाफ झूठे आरोप प्रकाशित किए, जिन्होंने कभी भी कथित राशि प्राप्त नहीं की केवल उन्हें परेशान करने अपमानित करने तथा बदनाम करने के लिए।
जस्टिस दहिया ने कहा,
"चूंकि शिकायत में लगाए गए आरोप पूरी तरह से स्वीकार किए जाने पर भी धारा 499 से 502 आईपीसी के तहत अपराध नहीं बनते, इसलिए याचिकाकर्ताओं को मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाना न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग तथा न्याय का उपहास होगा।"
न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि धारा 499 आईपीसी के तहत 'मानहानि' का गठन करने के लिए आरोप व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के इरादे से या यह जानते हुए या यह मानने का कारण रखते हुए लगाया जाना चाहिए कि इससे व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचेगा।
द हिंदू' के प्रधान संपादक और प्रकाशक एन. राम और अन्य बनाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हरियाणा प्रांत, अपने प्रांत संघ चालक और अन्य के माध्यम से, जिसमें राष्ट्रीय समाचार पत्र के संपादक के खिलाफ मानहानि के समान आरोप से निपटा गया। धारा 499 से 501 आईपीसी के तहत आरोपी को मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाने के मजिस्ट्रेट के आदेश को इस कारण से अलग रखा गया कि समाचार प्रकाशित करने में शिकायतकर्ता को बदनाम करने का कोई इरादा नहीं था।
चर्चा के मद्देनजर याचिकाओं को अनुमति दी गई और आईपीसी की धारा 500 और 120-बी के तहत आपराधिक शिकायत को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 और 67 के साथ पढ़ा गया। सभी परिणामी कार्यवाही रद्द कर दी गई।
केस टाइटल: रायश रामचंद्रन और अन्य बनाम पंजाब राज्य और अन्य