सक्रिय रोकथाम की आवश्यकता: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने लड़की का पीछा करने और बंदूक तानने के आरोप में गिरफ्तार व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया

Update: 2024-05-16 06:57 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने लड़की का पीछा करने और उस पर बंदूक तानने के आरोप में गिरफ्तार 34 वर्षीय व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया। कोर्ट ने कहा कि इस कृत्य के लिए सक्रिय रोकथाम की आवश्यकता है।

जस्टिस सुमीत गोयल ने कहा,

"जो व्यक्ति बंदूक तानते हुए युवती का पीछा कर रहा है, वह खतरा पैदा करता है, जो पीड़िता और उसके परिवार के लिए बेचैनी और घातक आघात का कारण बन सकता है। ऐसे कृत्यों के लिए सक्रिय रोकथाम की आवश्यकता होती है। नहीं तो ये सामाजिक नागरिक व्यवस्था और समाज के ताने-बाने को खराब कर सकते हैं।"

न्यायालय ने कहा कि अग्रिम जमानत की राहत से जांच एजेंसी के स्वतंत्र, निष्पक्ष जांच करने के अधिकारों में अनावश्यक रूप से बाधा नहीं आनी चाहिए।

पंजाब के मोगा जिले में आईपीसी की धारा 354-डी, 506, 34 और शस्त्र अधिनियम 1959 (Arms Act, 1959) की धारा 25, 27 के तहत उस व्यक्ति पर मामला दर्ज किया गया।

एफआईआर के अनुसार उस व्यक्ति ने कथित पीड़िता का पीछा किया और बंदूक की नोक पर 12वीं की छात्रा को जबरन अपना संपर्क विवरण देने का प्रयास भी किया।

न्यायालय ने कहा कि उक्त घटना सीसीटीवी कैमरे में भी कैद हुई बताई गई। पीड़िता ने याचिकाकर्ता की वर्तमान कार्रवाई के कारण होने वाली दुर्घटना के बारे में भी अपना डर ​​व्यक्त किया।

प्रस्तुतियां सुनने और अभिलेख पर मौजूद सामग्री पर विचार करने के बाद न्यायाधीश ने कहा,

"अपराध की गंभीर प्रकृति और जबरदस्त गंभीरता, साथ ही याचिकाकर्ता पर आरोपित निरंतर खतरनाक पीछा करने वाले की भूमिका इस निष्कर्ष पर ले जाती है कि याचिकाकर्ता अग्रिम जमानत की रियायत का हकदार नहीं है।"

जस्टिस गोयल ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अग्रिम जमानत देने की याचिका पर विचार करते समय न्यायालय को व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा और सामाजिक हितों की रक्षा के बीच संतुलन बनाना होगा।

न्यायाधीश ने कहा,

"न्यायालय को अपराध की भयावहता और प्रकृति, अभियुक्त पर आरोपित भूमिका, निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच की आवश्यकता और समाज पर इस तरह के कथित अन्याय के गहरे और व्यापक प्रभाव को ध्यान में रखना चाहिए।"

न्यायालय ने आगे कहा,

"यह जरूरी है कि समाज का हर व्यक्ति किसी भी तरह के उल्लंघन के भय और आशंका से मुक्त माहौल की उम्मीद कर सके। किसी व्यक्ति के साथ ऐसा कोई भी अपमान परिवार और समाज पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है।"

आरोप की प्रकृति पर विचार करते हुए न्यायालय ने कहा,

"यदि याचिकाकर्ता के पास सुरक्षात्मक आदेश है तो जांच एजेंसी के लिए अज्ञात साथियों की पहचान सहित संपूर्ण सत्य को उजागर करना तथा याचिकाकर्ता द्वारा कथित रूप से इस्तेमाल की गई बंदूक को बरामद करना संभव नहीं हो सकता है।"

केस टाइटल- XXX बनाम XXX

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