अंतरिम भरण-पोषण के लिए पत्नी की याचिका में पति द्वारा आय हलफनामा दाखिल न करने पर न्यायालय प्रतिकूल निष्कर्ष निकाल सकता है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि यदि पति पर्याप्त अवसर दिए जाने के बावजूद पत्नी की अंतरिम भरण-पोषण याचिका में संपत्ति एवं देनदारियों के प्रकटीकरण का हलफनामा दाखिल करने में विफल रहता है तो न्यायालय उसके विरुद्ध प्रतिकूल निष्कर्ष निकालने के लिए बाध्य है।
जस्टिस सुमीत गोयल ने कहा,
"ऐसे मामलों में जहां कोई पक्षकार पर्याप्त अवसर दिए जाने के बावजूद संपत्ति और देनदारियों के प्रकटीकरण का हलफनामा दाखिल करने में विफल रहता है, न्यायालय को सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश IXX नियम 3 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 106/भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 की धारा 109 के अनुसार ऐसे पक्षकार के विरुद्ध प्रतिकूल निष्कर्ष निकालने के लिए बाध्य होना पड़ता है।"
न्यायाधीश ने आगे कहा कि संपत्ति और देनदारियों के प्रकटीकरण के हलफनामों पर न्यायालय का भरोसा अंतरिम भरण-पोषण का निष्पक्ष और सूचित मूल्यांकन सुनिश्चित करता है, जिससे आय के संभावित छिपाने या वित्तीय गलत बयानी को रोका जा सकता है।
ये टिप्पणियां पति द्वारा फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते समय की गईं, जिसमें उसे अपनी पत्नी और नाबालिग बेटे को 10,000 रुपये का अंतरिम भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था।
पति की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि पत्नी कढ़ाई सिलाई और सिलाई का काम करती है और अच्छी कमाई करती है। जबकि पति की आय मामूली है, इसलिए न्यायालय द्वारा निर्देशित अंतरिम राशि अत्यधिक है।
प्रस्तुतियां सुनने के बाद न्यायालय ने कहा कि अंतरिम भरण-पोषण के पहलू (विशेष रूप से मात्रा) पर निर्णय आवेदक (अंतरिम भरण-पोषण के अनुदान के लिए याचिका प्रस्तुत करना) के अधिकार पर आधारित है। यह इस स्तर पर सटीक अंकगणितीय गणनाओं पर आधारित नहीं हो सकता है।
न्यायाधीश ने कहा कि पत्नी के पास न तो आय का कोई स्रोत है और न ही उसके पास कोई चल या अचल संपत्ति है। इसलिए वह अपने बेटे जो उसके साथ रह रहा है, के भरण-पोषण शिक्षा और अन्य विकास संबंधी खर्चों को वहन करने में असमर्थ है।
उन्होंने आगे कहा कि यह स्थापित करने के लिए कोई विश्वसनीय साक्ष्य रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया कि पत्नी के पास आय का कोई स्वतंत्र स्रोत है या वह किसी भी तरह के लाभदायक रोजगार में लगी हुई है।
न्यायालय ने कहा,
"इन परिस्थितियों के मद्देनजर याचिकाकर्ता और प्रतिवादी-पत्नी के बीच वित्तीय असमानता यह अनिवार्य बनाती है कि प्रतिवादी-पत्नी और उसके बेटे के लिए एक सभ्य जीवन स्तर सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिए।"
न्यायालय ने कहा कि पति द्वारा पत्नी को भुगतान किए जाने के लिए निर्देशित 10,000 रुपये की राशि को अधिक नहीं कहा जा सकता है बल्कि यह मामले के परिस्थितियों में उचित है।
केस टाइटल: XXXX बनाम XXXXX