धारा 133 सीआरपीसी | उपद्रव हटाने की कार्यवाही तब तक शुरू नहीं की जा सकती जब तक कि आम जनता प्रभावित न हो: पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में सब- डिविजनल मजिस्ट्रेट की ओर से धारा 133 के तहत जारी सशर्त आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें संबंधित भूमि से अवरोध/अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया गया था।
न्यायालय ने कहा कि चूंकि अवरोध से आम जनता प्रभावित नहीं हुई थी, इसलिए सार्वजनिक उपद्रव पैदा करने वाले अतिक्रमण को हटाने के लिए धारा 133 सीआरपीसी के तहत कोई कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती।
जस्टिस जितेंद्र कुमार की पीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 133 के तहत शक्तियों का उपयोग करने के लिए एसडीएम को यह जांच करने की आवश्यकता है कि क्या अवरोध से आम जनता को असुविधा और परेशानी हो रही थी।
कोर्ट ने कहा,
“इस प्रकार, यह उभर कर आता है कि धारा 133 सीआरपीसी के तहत कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा अधिकार क्षेत्र लागू करने की पूर्व शर्त सार्वजनिक उपद्रव या बाधा की मौजूदगी की है, जो आम जनता को असुविधा और परेशानी का कारण बनती है। लेकिन धारा 133 सीआरपीसी किसी भी तरह से पक्षों के बीच दीवानी विवाद का फैसला करने के लिए नहीं है। दीवानी विवादों का फैसला दीवानी न्यायालय के विशेष अधिकार क्षेत्र में आता है।”
इस मामले में, याचिकाकर्ता के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि याचिकाकर्ता का किरायेदार जमीन पर खटाल चला रहा है और जमीन के बीच में जानवरों का गोबर जमा है, जिसकी वजह से शिकायतकर्ता पक्की सड़क तक नहीं पहुंच पा रहा है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि शिकायतकर्ता को प्लॉट के पूर्वी हिस्से से पक्की सड़क तक जाने का रास्ता दिया गया था और कोई बाधा नहीं थी। इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि धारा 133 सीआरपीसी के तहत कार्यवाही उनके खिलाफ़ नहीं चल सकती क्योंकि ऐसा कोई सार्वजनिक उपद्रव नहीं था जिससे आम जनता प्रभावित हुई हो, बल्कि यह एक निजी प्रकृति का दीवानी विवाद था।
कोर्ट ने कहा,
“शिकायतकर्ता/ओपी नंबर 5 की एकमात्र शिकायत यह है कि उन्हें याचिकाकर्ताओं की भूमि से होकर पक्की सड़क तक पहुंचने की अनुमति नहीं है। वह अपनी भूमि से याचिकाकर्ताओं की भूमि से होकर पक्की सड़क तक पहुंचने के लिए एक रास्ता चाहते हैं, जिस पर उनका सुखभोगी अधिकार है। लेकिन उन्हें इस बात की कोई शिकायत नहीं है कि याचिकाकर्ताओं की भूमि पर ईंटों या जानवरों के गोबर के जमा होने या खटाल चलाने से कोई उपद्रव होता है। ऐसे रास्ते के बारे में भी, कोई सार्वजनिक मांग नहीं है। यह केवल शिकायतकर्ता/ओपी नंबर 5 ही है जो इस रास्ते को चाहता है।”
कोर्ट ने निष्कर्ष में कहा,
“इसलिए, आरोपित नोटिस और आदेश तथा विद्वान कार्यकारी मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित पूरी कार्यवाही कानून की नजर में टिकने योग्य नहीं है तथा न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने और न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए धारा 482 सीआरपीसी के तहत इसे रद्द किया जाना चाहिए तथा अलग रखा जाना चाहिए।”
केस टाइटल: श्रीमती शकुंतला देवी एवं अन्य बनाम बिहार राज्य एवं अन्य, CRIMINAL MISCELLANEOUS No.32558 of 2016
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