पटना हाईकोर्ट ने पब्लिक टेंडर में जाली अनुभव प्रमाण पत्र देने के लिए फर्म को ब्लैक लिस्ट करने का फैसला बरकरार रखा

Update: 2025-04-19 04:12 GMT

पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में अपने एक फैसले में कहा कि सार्वजनिक निविदा में जाली प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना एक गंभीर मामला है, जो निगम के विश्वास को खतरे में डालता है।

न्यायालय ने आगे कहा कि ऐसे व्यक्तियों के बारे में अन्य विभागों को चेतावनी देना प्रत्येक निगम का कर्तव्य है।

एक्टिंग चीफ जस्टिस आशुतोष कुमार और जस्टिस पार्थ सारथी की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा,

"जाली प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना जिसके कारण FIR दर्ज हो जाती है, भले ही उससे संबंधित जांच लंबित हो, एक गंभीर मामला है। यह निगम के विश्वास को प्रभावित करता है और उसे खतरे में डालता है। ऐसे व्यक्तियों के बारे में अन्य समकक्षों को चेतावनी देना प्रत्येक निगम का कर्तव्य है।"

उपरोक्त निर्णय सिविल रिट अधिकारिता मामले में दिया गया, जिसमें चीफ इंजीनियर-सह-पंजीयन प्राधिकारी, बिहार पुलिस भवन निर्माण निगम, पटना द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई। इसमें याचिकाकर्ता/फर्म के रजिस्ट्रेशन को शुरू में अनिश्चित काल के लिए ब्लैक लिस्ट में डाल दिया गया। इस फर्म को शुद्धिपत्र के माध्यम से संशोधित कर पांच साल के लिए ब्लैक लिस्ट कर दिया गया था। इसके बाद अपीलीय प्राधिकारी द्वारा ब्लैक लिस्ट करने की अवधि को घटाकर तीन साल कर दिया गया। याचिकाकर्ता-फर्म को तीन साल के लिए ब्लैक लिस्ट में डाल दिया गया, लेकिन इसे सरकार के अन्य विभागों के लिए भी लागू कर दिया गया।

याचिकाकर्ता फर्म ने चीफ इंजीनियर, बिहार पुलिस भवन निर्माण निगम द्वारा आयोजित निविदा प्रक्रिया में भाग लिया, जिसके तहत गया जिले में पुलिस स्टेशनों और आउट-हाउसों के निर्माण और विद्युतीकरण के अलावा अन्य कार्यों के लिए निविदाएं आमंत्रित की गई थीं। निविदा आमंत्रण सूचना (NIT) के खंड में यह कहा गया कि केवल उन्हीं फर्मों की बोली पर विचार किया जाएगा, जो केंद्र सरकार/राज्य सरकार/सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के समान प्रकृति के कार्य करने का अपना अनुभव प्रमाण पत्र अपलोड करेंगे।

याचिकाकर्ता ने झारखंड राज्य आदिवासी सहकारी सब्जी विपणन संघ (VEGFED) के प्रबंध निदेशक द्वारा जारी किया गया प्रदर्शन/अनुभव प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया। याचिकाकर्ता/फर्म ने आठ अन्य लोगों के साथ मिलकर विचाराधीन कार्य के लिए अपनी बोलियां प्रस्तुत कीं। याचिकाकर्ता ने निविदा दस्तावेजों के साथ अपना प्रदर्शन/अनुभव प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया। यह प्रमाण पत्र कथित तौर पर झारखंड राज्य आदिवासी सहकारी सब्जी विपणन संघ, रांची (VEGFED) के प्रबंध निदेशक द्वारा जारी किया गया। दस्तावेजों के सत्यापन पर पता चला कि याचिकाकर्ता द्वारा अपलोड किया गया ऐसा कोई प्रदर्शन/अनुभव प्रमाण पत्र कभी भी VEGFED के कार्यालय से जारी नहीं किया गया।

इसके बाद फर्म के सभी भागीदारों और पावर ऑफ अटॉर्नी धारक के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 467, 468, 471, 420, 120बी और 511 के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया गया।

फर्म ने अपनी बोली के साथ एक हलफनामा भी प्रस्तुत किया, जिसमें कहा गया कि सभी संलग्न प्रमाण पत्र सत्य हैं और किसी भी गलत जानकारी का पता चलने पर सक्षम प्राधिकारी ब्लैकलिस्टिंग और FIR दर्ज करने सहित कानूनी कार्रवाई कर सकता है।

अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष याचिकाकर्ता-फर्म की ओर से यह तर्क दिया गया कि ब्लैकलिस्टिंग का आदेश अधिकार क्षेत्र से बाहर है, क्योंकि कारण बताओ नोटिस जारी करने के दिन चीफ इंजीनियर रजिस्ट्रेशन प्राधिकारी नहीं रह गए, क्योंकि याचिकाकर्ता-फर्म का रजिस्ट्रेशन समाप्त हो गया। यह भी तर्क दिया गया कि जिस फर्म का रजिस्ट्रेशन पहले ही समाप्त हो चुका है, उसे ब्लैकलिस्ट नहीं किया जा सकता।

न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि कारण बताओ नोटिस याचिकाकर्ता-फर्म द्वारा रजिस्ट्रेशन के समय दिए गए पते पर स्पीड पोस्ट द्वारा भेजा गया। हालांकि डाक विभाग ने इसे इस नोट के साथ वापस कर दिया कि पता सही नहीं था।

न्यायालय ने कहा,

"भले ही यह मान लिया जाए कि नोटिस तामील नहीं हुआ, जोकि रजिस्ट्रेशन के समय याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए गलत पते के कारण हुआ, याचिकाकर्ता/फर्म के पास अपीलकर्ता प्राधिकारी के समक्ष अपना बचाव करने का हर अवसर था, जिसने अपने विवेक से ब्लैकलिस्टिंग की अवधि को पांच वर्ष से घटाकर तीन वर्ष कर दिया। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि याचिकाकर्ता/फर्म का पंजीकरण समाप्त हो गया या नहीं। योग्यता सीमा को पूरा करने के लिए भ्रामक जानकारी प्रदान करने में याचिकाकर्ता/फर्म का कृत्य याचिकाकर्ता/फर्म को किसी भी राहत की मांग करने से वंचित करता है।"

न्यायालय ने यह भी नोट किया कि न तो रिट याचिका में और न ही अपीलीय प्राधिकारी या पुनर्विचार प्राधिकारी के समक्ष याचिकाकर्ता-फर्म ने अनुभव प्रमाण पत्र के वास्तविक होने के बारे में कहा है।

न्यायालय ने ब्लैकलिस्टिंग में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा,

"मामले के इस पहलू पर विचार करते हुए हम याचिकाकर्ता/फर्म को तीन साल के लिए ब्लैकलिस्ट करने के प्रतिवादियों के निर्णय में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते हैं।"

परिणामस्वरूप, रिट याचिका खारिज कर दी गई।

केस केस टाइटल: मेसर्स आर.एस कंस्ट्रक्शन बनाम बिहार पुलिस बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन

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