एक ही निर्णय से उत्पन्न होने वाली आपराधिक अपीलों की सुनवाई खंडपीठ द्वारा एक साथ की जानी चाहिए: पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि जब एक ही निचली अदालत के फैसले से कई आपराधिक अपीलें उत्पन्न होती हैं, जिनमें से एक में दस साल से अधिक की सजा होती है और दूसरी में दस साल से कम की सजा होती है तो कम सजा वाली अपील की सुनवाई भी खंडपीठ द्वारा की जानी चाहिए।
जस्टिस आशुतोष कुमार, जस्टिस जितेंद्र कुमार और जस्टिस आलोक कुमार पांडे की पीठ ने टिप्पणी की,
"हम इस संदर्भ का उत्तर इस प्रकार देते हैं कि यदि एक ही निचली अदालत के फैसले से उत्पन्न होने वाली कुछ आपराधिक अपीलें, जिनमें दस साल से अधिक की सजा होती है या सजा बढ़ाने के लिए सरकार की अपील या पीड़ित द्वारा सीआरपीसी की धारा 372 के तहत अपील नियमों के अनुसार खंडपीठ के समक्ष पेश की जाती है, तो उसी फैसले से उत्पन्न होने वाली कम सजा वाली आपराधिक अपीलों की सुनवाई भी खंडपीठ द्वारा की जाएगी।”
न्यायालय ने इस मुद्दे पर विचार किया कि क्या दस वर्ष तक की सजा वाली अपीलों की सुनवाई खंडपीठ द्वारा की जा सकती है। भले ही प्रक्रियात्मक नियमों में निर्दिष्ट किया गया हो कि ऐसे मामलों का निपटारा एकल न्यायाधीश द्वारा किया जाना है।
पटना हाईकोर्ट के नियमों के अनुसार दस वर्ष से अधिक की सजा वाली सभी अपीलों को खंडपीठ के समक्ष रखा जाना चाहिए। दस वर्ष तक की सजा वाले मामलों की सुनवाई और निपटारा एकल न्यायाधीश द्वारा किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि यदि एकल पीठ द्वारा सुनवाई की जाने वाली अपील की सुनवाई खंडपीठ द्वारा भी की जाती है तो विरोधाभासी निर्णयों से बचने के लिए नियमों से विचलन स्वीकार्य होगा।
न्यायालय ने मिश्रित सजा वाले निर्णयों के लिए खंडपीठ के समक्ष अपीलों को समेकित करने की प्रथा बरकरार रखी, जिससे प्रशासनिक दक्षता और कानूनी स्थिरता सुनिश्चित होती है।
न्यायालय ने कहा,
"न्यूनतम निर्धारित से अधिक बड़ी पीठ द्वारा कोई भी निर्णय किसी नियम का उल्लंघन नहीं होगा, क्योंकि खंडपीठ द्वारा निपटाए जा सकने वाले मामलों की सूची में केवल दस वर्ष तक की सजा वाली आपराधिक अपील की सूची और निपटारा अनिवार्य रूप से शामिल नहीं है।"
न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि खंडपीठ द्वारा एकल पीठ के अधिकार क्षेत्र का हड़पना कोरम नॉन-ज्यूडिस के सिद्धांत का उल्लंघन होगा।
न्यायालय ने कहा कि गलत कोरम द्वारा दिया गया निर्णय जैसे कि एकल न्यायाधीश द्वारा खंडपीठ के लिए निर्धारित मामले पर निर्णय लेना, अमान्य माना जाता है। हालांकि, इसके विपरीत, यानी एकल न्यायाधीशों के लिए निर्धारित अपीलों की सुनवाई करने वाली खंडपीठ, कोरम नॉन-ज्यूडिस के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करती।
जस्टिस आशुतोष कुमार द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया,
“यह नहीं भूलना चाहिए कि एकल न्यायाधीश की शक्तियों को निर्धारित करने वाला नियम न्यायालय के भीतर विशेष संख्या में न्यायाधीशों द्वारा मामलों के निपटान के लिए आंतरिक व्यवस्था के रूप में अभ्यास और प्रक्रिया का नियम है। यदि नियम कहता है कि किसी प्रकार के मामले की सुनवाई खंडपीठ द्वारा की जानी है, तो उसकी सुनवाई एकल न्यायाधीश द्वारा नहीं की जा सकती है; लेकिन अगर कोई मामला जिसकी सुनवाई एकल न्यायाधीश द्वारा की जानी है, उसे अंतिम रूप से खंडपीठ द्वारा सुना और निपटाया जाता है, तो कोई भी पक्ष खंडपीठ के पास निहित न होने वाले क्षेत्राधिकार के हड़पने या निर्माण की शिकायत नहीं कर सकता है।”
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह प्रथा खंडपीठ को विशेष रूप से एकल न्यायाधीश द्वारा सुने जाने और निर्णय लिए जाने वाले मामलों के लिए क्षेत्राधिकार प्रदान नहीं करती है।
“यह प्रथा खंडपीठ को विशेष रूप से एकल न्यायाधीश द्वारा सुने जाने और निपटाए जाने वाले मामलों में कोई क्षेत्राधिकार प्रदान नहीं करती है।”
पीठ ने अपील दायर करने और उसे खंडपीठों के समक्ष आवंटित करने के संबंध में पटना हाईकोर्ट नियमों में संशोधन लाना उचित समझा।
कोर्ट ने निर्देश दिया,
“पटना हाईकोर्ट नियमों में संगत संशोधन को लागू करने के लिए आवश्यक विचार के लिए इस निर्णय को माननीय चीफ जस्टिस के समक्ष रखा जाए।”
केस टाइटल: मोहम्मद दानिश बनाम बिहार राज्य, आपराधिक अपील