कई केस पेंडिंग होने से कोई नाबालिग सुधार के लिए नाकाबिल नहीं हो जाता: पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि सिर्फ केस पेंडिंग होने से किसी नाबालिग को सुधरने के लिए नाकाबिल या अयोग्य नहीं माना जा सकता।
जस्टिस अरुण कुमार झा की सिंगल-जज बेंच एक क्रिमिनल रिवीजन याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी। इसने याचिकाकर्ता को जमानत देने से जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के इनकार को सही ठहराया था।
अभियोजन पक्ष के अनुसार शिकायतकर्ता ने याचिकाकर्ता को एक मोटरसाइकिल चलाते हुए और पुलिस को देखकर यू-टर्न लेते हुए देखा। उसे तुरंत पकड़ लिया गया। कथित तौर पर तलाशी में एक भरी हुई देसी कट्टा, एक जिंदा कारतूस और बिना नंबर प्लेट वाली एक सफेद मोटरसाइकिल बरामद हुई। याचिकाकर्ता को बाद में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड द्वारा कानून के साथ संघर्ष करने वाला बच्चा घोषित किया गया।
बोर्ड के सामने दायर जमानत याचिका खारिज कर दी गई, और उस फैसले के खिलाफ अपील को ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप यह रिवीजन याचिका दायर की गई।
याचिकाकर्ता 28.11.2024 से हिरासत में है। हालांकि उसे चार मामलों में आरोपी दिखाया गया लेकिन उसका नाम उन सभी मामलों में केवल इस मामले में पकड़े जाने के बाद ही सामने आया। हाईकोर्ट ने कहा कि जमानत न देने का मुख्य आधार यह आशंका थी कि बच्चा फिर से "बुरे तत्वों" की संगत में पड़ सकता है। साथ ही यह संदेह जताया गया कि उसे एक "गैंग" द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है।
हाईकोर्ट ने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015 की धारा 12 का हवाला दिया। इसने कहा कि जमानत की जांच बच्चे के सर्वोत्तम हित पर केंद्रित होनी चाहिए और अपराध की गंभीरता या प्रकृति जमानत तय करने के लिए अप्रासंगिक है। एकमात्र विचार यह था कि क्या नाबालिग की रिहाई से बच्चे को खतरा होगा, उसे जाने-माने अपराधियों के संपर्क में लाया जाएगा या न्याय के उद्देश्यों को विफल किया जाएगा।
कोर्ट ने पाया कि इस मामले में इनमें से कोई भी आधार नहीं बनता है।
हाईकोर्ट ने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 3 को धारा 12 के साथ पढ़ा और कहा:
“10 इन दोनों प्रोविज़न को एक साथ पढ़ने से यह साफ़ हो जाता है कि बच्चे का हित सबसे ज़रूरी है और कोर्ट के आदेश इसी दिशा में होने चाहिए। अगर कानून से टकराव वाले याचिकाकर्ता/बच्चे के पिता यह वादा करते हैं कि वह याचिकाकर्ता की देखभाल करेंगे और उसे बुरी संगत में नहीं पड़ने देंगे तो जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन) एक्ट, 2015 की धारा 12 के तहत याचिकाकर्ता की रिहाई पर विचार किया जा सकता है, क्योंकि कोई और रुकावट नहीं है।”
हाईकोर्ट ने खास तौर पर यह नोट किया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ सिर्फ केस पेंडिंग होने से यह नहीं माना जा सकता कि वह सुधर नहीं सकताऔर कहा,
“ 11 सिर्फ इसलिए कि याचिकाकर्ता चार मामलों में आरोपी है यह नहीं माना जा सकता कि वह सुधर नहीं सकता और सुधार के कदमों के लिए तैयार नहीं है। इसके अलावा, जुवेनाइल जस्टिस एक्ट बनाने का मुख्य मकसद कानून से टकराव वाले बच्चों में सुधार लाना है। इसलिए याचिकाकर्ता को मुख्यधारा में शामिल होने का मौका दिया जा सकता है।”
आखिरकार हाईकोर्ट ने रिवीजन पिटीशन मंज़ूर कर ली और याचिकाकर्ता को ज़मानत दी।