सात साल या उससे ज़्यादा की सज़ा वाले अपराधों के लिए भी अग्रिम ज़मानत याचिकाएं सुनवाई योग्य: पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट ने साफ़ किया कि अग्रिम ज़मानत याचिका पर फ़ैसला करने का अधिकार रखने वाली सेशंस कोर्ट का यह कर्तव्य है कि वह याचिका पर गुण-दोष के आधार पर फ़ैसला करे, या तो उसे मंज़ूर करे या खारिज करे, और ऐसा किए बिना वह ऐसी किसी याचिका का निपटारा नहीं कर सकती। कोर्ट ने आगे साफ़ किया कि सिर्फ़ इसलिए अग्रिम ज़मानत याचिकाएं सुनने पर कोई कानूनी रोक नहीं है, क्योंकि कथित अपराध में सात साल या उससे ज़्यादा की जेल की सज़ा हो सकती है।
ये टिप्पणियां जस्टिस जितेंद्र कुमार की सिंगल जज बेंच ने आपराधिक विविध याचिका की सुनवाई करते हुए कीं, जिसमें ट्रायल कोर्ट के एक आदेश को चुनौती दी गई थी। ट्रायल कोर्ट के आदेश के तहत याचिकाकर्ता को अग्रिम ज़मानत देने से इनकार कर दिया गया।
याचिकाकर्ता-पति और उसके परिवार के सदस्यों पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 323, 341, 498A, 324, 504 और 312, दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4, और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 के तहत अपराधों से संबंधित आरोप ङैं। हालांकि, याचिकाकर्ता के खिलाफ़ आखिरकार सिर्फ़ IPC की धारा 498A के तहत अपराध का संज्ञान लिया गया।
इसके बाद याचिकाकर्ता ने सेशंस कोर्ट में अग्रिम ज़मानत के लिए आवेदन किया। सेशंस कोर्ट ने आवेदन को सिर्फ़ इस आधार पर खारिज कर दिया कि IPC की धारा 498A के तहत अपराध में सात साल तक की जेल की सज़ा हो सकती है, और मामले के गुण-दोष की जाँच किए बिना अग्रिम ज़मानत देने से इनकार किया।
हाईकोर्ट ने कहा कि सेशंस जज ने अग्रिम ज़मानत याचिका पर गुण-दोष के आधार पर या तो मंज़ूर करके या खारिज करके फ़ैसला करने में विफल रहकर कानून की गंभीर गलती की। इसके बजाय सेशंस कोर्ट ने अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य और सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम सीबीआई के फ़ैसलों पर भरोसा करते हुए बिना उचित सुनवाई के सिर्फ़ याचिका का निपटारा कर दिया।
हाईकोर्ट ने कहा:
“19. हालांकि, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सत्येंद्र कुमार अंतिल मामले (ऊपर) में कहीं भी यह नहीं कहा कि सात साल तक की जेल की सज़ा वाले अपराधों से संबंधित मामलों में अग्रिम ज़मानत याचिका सुनवाई योग्य नहीं है या उन्हें CrPC की धारा 438/BNSS की 482 के तहत क्षेत्राधिकार वाली अदालतों द्वारा तय करने की आवश्यकता नहीं है... इसलिए यह साफ़ तौर पर सामने आता है कि सेशंस जज ने अपने आदेश में गैर-जिम्मेदाराना और लापरवाही से फ़ैसलों का हवाला दिया।”
मामले की खूबियों पर विचार करने के बाद हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को अग्रिम ज़मानत दी। कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को यह भी निर्देश दिया कि वे इस आदेश की एक कॉपी बिहार के सभी ज़िला अदालतों के न्यायिक अधिकारियों को भेजें।
केस का नाम: आशिक कुमार साह बनाम बिहार राज्य और अन्य