आपसी तलाक़ मामलों में कूलिंग पीरियड थोपना केवल पीड़ा बढ़ाना : मद्रास हाईकोर्ट

Update: 2025-09-23 12:59 GMT

मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जब पति-पत्नी आपसी सहमति से अलग होने का निश्चय कर चुके हों, तो अदालत को उन पर अनिवार्य “कूलिंग-ऑफ पीरियड” थोपने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि इससे केवल उनकी पीड़ा बढ़ेगी।

जस्टिस पी.बी. बालाजी ने सुप्रीम कोर्ट और अन्य हाईकोर्ट्स के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि दोनों पक्षकारों ने अलग-अलग हलफनामों में स्पष्ट रूप से अपनी मर्ज़ी से अलग होने की बात कही है। न तो बच्चों का सवाल है और न ही किसी तरह का धोखा, दबाव या साज़िश। ऐसे में अनिवार्य प्रतीक्षा अवधि उन पर थोपना अनुचित होगा।

मामला कोयंबटूर फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर पुनरीक्षण याचिका से जुड़ा था। पति-पत्नी ने भारतीय विवाह विच्छेद अधिनियम, धारा 10A के तहत आपसी सहमति से तलाक मांगा था। लेकिन फैमिली कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका वापस कर दी कि अलगाव की न्यूनतम अवधि (एक वर्ष) पूरी नहीं हुई है।

याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के Shilpa Sailesh बनाम Varun Sreenivasan मामले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13B के तहत 6 महीने की अनिवार्य अवधि अदालत हटा सकती है। साथ ही केरल हाईकोर्ट के फैसले (Anup Disalva केस) का भी उल्लेख किया गया, जिसमें धारा 10A को असंवैधानिक बताया गया था।

हाईकोर्ट ने माना कि भले ही केरल हाईकोर्ट का फैसला बाध्यकारी न हो, लेकिन उसकी प्रभावशाली (persuasive) अहमियत है और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भी उसी लाइन पर है। इसलिए फैमिली कोर्ट को यह अधिकार है कि वह प्रतीक्षा अवधि को माफ कर दे।

अदालत ने फैमिली कोर्ट का डॉकेट आदेश रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि यदि बाकी काग़ज़ात नियम के अनुरूप हों, तो याचिका को दर्ज (number) किया जाए।

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