SC/ST समुदाय की भूमि बेदखली शिकायत को 'सिविल विवाद' बताकर FIR दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकती पुलिस: मद्रास हाईकोर्ट

Update: 2025-11-24 13:21 GMT

मद्रास हाईकोर्ट ने कहा: SC/ST समुदाय की भूमि से बेदखली की शिकायत पर FIR दर्ज करना अनिवार्य, पुलिस “सिविल विवाद” बताकर इनकार नहीं कर सकती

मद्रास हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों की भूमि से बेदखली या अवैध कब्जे की शिकायत को पुलिस केवल यह कहकर खारिज नहीं कर सकती कि मामला “सिविल विवाद” है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 18A के तहत यदि शिकायत में संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो पुलिस प्रारंभिक जांच किए बिना FIR दर्ज करने के लिए बाध्य है।

जस्टिस विक्टोरिया गोवरी दो पुलिस अधिकारियों—सब-इंस्पेक्टर और डिप्टी एसपी—द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई कर रही थीं। इन अधिकारियों के खिलाफ विशेष न्यायाधीश ने SC/ST एक्ट की धारा 4 तथा IPC की धारा 166A और 167 के तहत FIR दर्ज करने का निर्देश दिया था, क्योंकि उन्होंने शिकायतकर्ता की FIR दर्ज करने की मांग को यह कहते हुए ठुकरा दिया था कि मामला सिविल प्रकृति का है।

शिकायतकर्ता, जो अनुसूचित जाति समुदाय से है, ने आरोप लगाया था कि उसके पूर्वजों को 1927 में आवंटित की गई 60 सेंट जमीन पर कुछ लोग अवैध कब्जा करने का प्रयास कर रहे थे। पुलिस अधिकारियों ने शिकायत मिलने पर समन जारी कर जांच की, लेकिन FIR दर्ज नहीं की और मामले को “सिविल” बताकर बंद कर दिया।

हाईकोर्ट ने अधिकारियों की इस कार्रवाई को कानूनी रूप से अस्वीकार्य बताया। कोर्ट ने कहा कि शिकायत में अवैध कब्जे तथा SC परिवार को उसकी जमीन से बेदखल करने जैसी गंभीर बातें थीं, जो SC/ST अधिनियम की धारा 3(1)(f), 3(1)(g) और 3(1)(p) के तहत अपराध बनती हैं। ऐसे में FIR दर्ज करना पुलिस का सीधा वैधानिक दायित्व था।

अदालत ने यह भी कहा कि भूमि विवाद सिविल अदालत में लंबित होने से पुलिस का यह कर्तव्य समाप्त नहीं हो जाता कि वह आपराधिक पहलुओं पर FIR दर्ज करे। कोर्ट ने स्पष्ट किया:

“धारा 18A के तहत, जब शिकायत SC/ST अधिनियम के तहत अपराध दर्शाती है, तब FIR दर्ज करने के लिए किसी भी प्रारंभिक जांच की अनुमति नहीं है।”

अधिकारियों का यह तर्क भी खारिज कर दिया गया कि उनके खिलाफ FIR दर्ज करने के लिए धारा 197 CrPC के तहत पूर्व स्वीकृति जरूरी थी। कोर्ट ने कहा कि FIR दर्ज करना “cognizance” लेना नहीं होता, इसलिए स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है।

इसके अलावा, विशेष अधिनियम के तहत वैधानिक कर्तव्य में लापरवाही “आधिकारिक कर्तव्य का हिस्सा” नहीं मानी जा सकती, जिससे उन्हें किसी संरक्षण का लाभ मिले।

हाईकोर्ट ने कहा कि विशेष न्यायाधीश का आदेश कानूनी अनुशासन स्थापित करता है और उसमें हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं। इसलिए पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी गई।

यह फैसला एक बार फिर यह स्पष्ट करता है कि SC/ST अधिनियम के तहत दर्ज शिकायतों को हल्के में नहीं लिया जा सकता और पुलिस पर FIR दर्ज करने का सीधा दायित्व है, चाहे विवाद में भूमि, कब्जा या सिविल दावों के तत्व शामिल हों।

Tags:    

Similar News