पति और बच्चे पत्नी/माँ का रखरखाव करने के कानूनी और नैतिक जिम्मेदार: मद्रास हाईकोर्ट

Update: 2025-09-26 13:00 GMT

मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में मदुरै की फैमिली कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें पति और बेटों को पत्नी/मां को ₹21,000 प्रतिमाह भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था।

जस्टिस शमीम अहमद ने कहा कि किसी पुरुष का अपनी पत्नी और मां का जीवनभर भरण-पोषण करना उसका कानूनी और नैतिक कर्तव्य है। यह दायित्व इसलिए है ताकि मां और पत्नी वृद्धावस्था में सम्मान और देखभाल के साथ जीवन जी सकें।

अदालत ने कहा कि यह जिम्मेदारी केवल आर्थिक सहायता नहीं है, बल्कि मां के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का प्रतीक भी है, जिन्होंने परिवार को पालने-पोसने में अपना जीवन समर्पित किया। यह पारिवारिक जिम्मेदारी और सामाजिक मूल्यों का अहम हिस्सा है।

यह आदेश उस समय दिया गया जब पति और दो बेटों ने फैमिली कोर्ट के निर्णय को चुनौती देते हुए कहा कि – विवाह 1986 में हुआ था और 2015 में पत्नी ने स्वेच्छा से घर छोड़ दिया। पति 60 वर्ष के हैं, बीमार हैं और कोई आय नहीं है। एक बेटा पूरे परिवार का खर्च उठा रहा है, जबकि दूसरा बेटा बेंगलुरु में भी आर्थिक तंगी से जूझ रहा है। उन्होंने यह भी दलील दी कि पत्नी के पास खुद की कार और ड्राइवर हैं, यानी वह खुद अपने भरण-पोषण में सक्षम हैं।

लेकिन अदालत ने कहा कि पति और बेटों की सामाजिक जिम्मेदारी है कि वे पत्नी और मां का पालन-पोषण करें, क्योंकि मां के त्याग और कष्ट की भरपाई कोई धनराशि नहीं कर सकती। ₹21,000 की राशि अदालत ने महंगाई और जीवन-यापन की बढ़ती लागत को देखते हुए उचित बताई।

इसलिए हाईकोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट के आदेश में कोई त्रुटि नहीं है और उसमें दखल देने की जरूरत नहीं है।

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