अखबार की रिपोर्ट पर आधारित याचिका: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने नए फ्लाईओवर में दरारों का आरोप लगाने वाली जनहित याचिका खारिज की

Update: 2025-01-21 08:47 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ ने सोमवार (20 जनवरी) को समाचार पत्र की रिपोर्ट के आधार पर दायर जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें कहा गया कि शहर में नए बने फ्लाईओवर में नुकसान के दावों का समर्थन करने के लिए कोई शोध या वैज्ञानिक रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई।

चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ ने कहा,

"चूंकि याचिकाकर्ता द्वारा दावों का समर्थन करने के लिए कोई शोध या वैज्ञानिक रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई। इसलिए हम वर्तमान याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं हैं। उपरोक्त के मद्देनजर रिट याचिका का निपटारा किया जाता है।"

अदालत ने राज्य के इस तर्क पर भी गौर किया कि मुख्य अभियंता की अध्यक्षता वाली समिति ने मुख्य अभियंता और अतिरिक्त मुख्य सचिव के साथ संबंधित स्थल का दौरा किया। पाया कि मौजूद जोड़ और अंतराल गर्मी/सर्दियों में मौसम बदलने के कारण विस्तार और संकुचन के कारण थे।

सोमवार को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा,

"आक्षेपित आदेश के अनुसार प्रतिवादी क्रमांक 1 ने जांच के लिए आदेश किया और इसमें जिनका अध्यक्ष बनाया है समिति का। दरअसल ये काम उन्होंने ही कराया, जिसकी शिकायत हुई है।"

इस बीच राज्य के वकील ने कहा,

"वह रिपोर्ट पहले ही दाखिल की जा चुकी है। याचिका निष्फल हो जाती है, क्योंकि जिस व्यक्ति की वह बात कर रहे हैं उनका 2020 में जबलपुर से तबादला हो गया। अब यह समिति जो 03.01.2025 को गठित की गई, उसने 10.01.2025 को अपनी रिपोर्ट पहले ही पेश कर दी। हमने जांच रिपोर्ट दाखिल कर दी है। अतिरिक्त मुख्य सचिव और चीफ इंजीनियर की उपस्थिति में निरीक्षण किया गया। उसे अपलोड कर दिया गया। अब उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा है कि पुलों के बीच में स्लैब हैं। पुलों में थोड़ा गैप छोड़ा जाता है ताकि वे गर्मी/सर्दी के मौसम में फैल सकें और सिकुड़ सकें। वे इसे लेकर भ्रमित हैं। उन्होंने जनहित याचिका दायर की। मूल रूप से उनके पास उस व्यक्ति के खिलाफ कुछ व्यक्तिगत प्रतिशोध है, जिसका 2020 में पहले ही तबादला हो चुका है। वह कभी भी परियोजना का हिस्सा नहीं था। फ्लाईओवर का काम 99 प्रतिशत पूरा हो चुका है। सब कुछ हो चुका है। यह लगभग 7 किमी का फ्लाईओवर है। इसका अधिकांश हिस्सा पहले से ही चालू हालत में है। इसका निरीक्षण पांच तस्वीरों के साथ भी किया गया। वे बेवजह इस मुद्दे को उठा रहे हैं।”

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि किसी अन्य विभाग को फ्लाईओवर का निरीक्षण करना चाहिए, यह तर्क देते हुए कि जिस अधिकारी ने निर्माण पूरा कराया, उसे उस समिति का प्रमुख बनाया गया, जिसने कथित तौर पर दरारें आने के बाद फ्लाईओवर का निरीक्षण किया था।

अदालत ने प्रतिवादी से पूछा,

"उनकी रिपोर्ट स्वीकार कर ली गई है?"

इस पर राज्य ने कहा कि रिपोर्ट स्पष्ट है।

वकील ने कहा,

"एसीएस खुद आए और इंजीनियर-इन-चीफ के साथ निरीक्षण किया। सतही सुधार चल रहा है। 99 प्रतिशत काम पहले ही पूरा हो चुका है।"

अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा,

''आपको तस्वीरें क्या कहते हैं दिखाना ज़रा। आपने कोई तस्वीरें ली हैं?” (आपकी तस्वीरें क्या दर्शाती हैं? क्या आपने कोई तस्वीर ली है)

इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा,

''मैंने पेपर कटिंग पेस्ट किये। हमसे ये है कि इतना ज्यादा नुकसान है। पब्लिक के चलने लायक भी नहीं रहेगा।” (मैंने अखबार की कटिंग ले ली है। इससे पता चलता है कि काफी नुकसान हुआ है और फ्लाईओवर सार्वजनिक उपयोग के लिए नहीं है)।

कोर्ट ने पूछा,

''ये अखबार की कटिंग्स के आधार पर दायर की गई याचिका? आपने साइट पर विजिट किया?” (आपने अखबार की कटिंग के आधार पर जनहित याचिका दायर की? क्या आप साइट पर गए।)

वकील ने कहा कि वे साइट पर गए। इस पर कोर्ट ने पूछा कि याचिका में यह कहां लिखा है कि याचिकाकर्ता साइट पर गए।

कोर्ट ने पूछा,

“आपका होमवर्क क्या है? अखबार में तो पता नहीं क्या-क्या छपता रहता है। अखबार के आधार पर याचिका दायर करेंगे आप?” (आपका होमवर्क कहां है? अखबार में बहुत कुछ लिखा होता है। क्या आप अखबार की रिपोर्ट के आधार पर याचिका दायर कर सकते हैं?)

इसके बाद कोर्ट ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।

केस टाइटल: नर्मदा प्रसाद मिश्रा बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य, रिट याचिका संख्या 1953/2025

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