मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बिना मुद्दे तय किए और साक्ष्य दर्ज किए मुस्लिम दंपत्ति के बीच तलाक की घोषणा करने पर फैमिली कोर्ट की आलोचना की
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश पर आश्चर्य और हैरानी व्यक्त की, जिसमें बिना मुद्दे तय किए और साक्ष्य दर्ज किए मुस्लिम महिला को उसके पति से तलाक की घोषणा कर दी गई।
जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की खंडपीठ ने कहा;
"हम इस बात से आश्चर्यचकित और स्तब्ध हैं कि फैमिली कोर्ट ने सीपीसी के आदेश VII नियम 11 के तहत मामले को कैसे लिया। प्रतिवादी/वादी (पति) को राहत दी, जो मुद्दे तय करने और साक्ष्य दर्ज करने के बाद ही दी जानी चाहिए थी। तलाक की घोषणा प्राप्त करके मुकदमा दायर करने का उद्देश्य पूरा हो गया। इसलिए मुकदमा खारिज होने के बाद भी प्रतिवादी/पति तलाक की डिक्री प्राप्त करने के लिए अपील में नहीं आया। यह आदेश कानूनन टिकने योग्य नहीं है, इसलिए इसे रद्द किया जाता है।"
इस जोड़े का विवाह 1976 में मुस्लिम रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न हुआ था। इस विवाह के दौरान, पति (प्रतिवादी) ने 1987 में दूसरा विवाह किया। इसके बाद उसने पहली पत्नी (अपीलकर्ता) से तलाक के लिए इस आधार पर मुकदमा दायर किया कि उसने अपीलकर्ता को तलाक का नोटिस भेजा था।
नोटिस प्राप्त होने के बाद अपीलकर्ता फैमिली कोर्ट में उपस्थित हुआ। फैमिली कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए, 2 मई, 2023 को सीपीसी के आदेश VII नियम 11 के तहत मुकदमा स्वीकार कर लिया, जो वादपत्र को अस्वीकार करने के आधारों से संबंधित है।
फैमिली कोर्ट ने कहा कि यद्यपि अपीलकर्ता को तलाक का नोटिस प्राप्त नहीं हुआ था। फिर भी उसे अब वादपत्र के साथ इसकी सूचना मिल गई। इसलिए तलाक प्रभावी हो गया। फैमिली कोर्ट ने मुकदमा खारिज कर दिया, क्योंकि विवाह पहले ही तलाक के माध्यम से भंग हो चुका था, जिसे न्यायालय से नहीं लिया जाना था।
इन निष्कर्षों से व्यथित होकर पत्नी ने पति के कहने पर तलाक की घोषणा को चुनौती देते हुए अपील दायर की।
खंडपीठ ने कहा कि इस घोषणा के बाद पति ने अपीलकर्ता को तलाकशुदा महिला मानना शुरू कर दिया। अपने विभाग में एक आवेदन दायर कर अपने सेवा अभिलेखों में उसकी पत्नी के रूप में नामांकन बदलने का अनुरोध किया।
फैमिली कोर्ट के इस रवैये पर 'आश्चर्य और स्तब्धता' व्यक्त करते हुए खंडपीठ ने कहा कि पति को बिना मुद्दे तय किए और साक्ष्य दर्ज किए राहत दे दी गई।
खंडपीठ ने इस बात पर ज़ोर दिया कि तलाक की घोषणा प्राप्त करके ही मुकदमा दायर करने का उद्देश्य पूरा हो गया। इसलिए मुकदमा खारिज होने के बाद भी पति ने तलाक की डिक्री प्राप्त करने के लिए अपील दायर नहीं की।
अदालत ने आगे कहा,
"यह आदेश कानूनन टिकने योग्य नहीं है। इसलिए इसे रद्द किया जाता है। प्रतिवादी को पत्नी के न्यायालय में उपस्थित होने और वादपत्र की प्रति प्राप्त करने का अनुचित लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। यदि वह तलाक का नोटिस प्राप्त करने की आशंका से उपस्थित नहीं होती तो उसके खिलाफ एकपक्षीय कार्यवाही की जाती। जज ने तलाक के नोटिस को तामील मानकर प्रतिवादी पति को अनुचित लाभ पहुंचाया है।"
परिणामस्वरूप, खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और पति के मुकदमे को बहाल कर दिया। साथ ही पक्षकारों को आगे की कार्यवाही के लिए फैमिली कोर्ट के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया।
Case Title: I v HK [FA-1389-2023]