मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने भूमि अधिग्रहण मामले में अचल मूल्य आधारित कोर्ट फीस को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक भूमि स्वामी द्वारा दायर अपील पर नोटिस जारी किया, जिसमें उन्होंने भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 (Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act, 2013) के तहत पारित अवार्ड को चुनौती दी। इस अपील में उन्होंने अपील दाखिल करने में अचल मूल्य के आधार पर कोर्ट फीस लगाने को भी सवालों के घेरे में लिया है।
जस्टिस विशाल धागत ने इस अपील पर नोटिस जारी करते हुए मामले को 28 जुलाई से शुरू होने वाले सप्ताह में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
पिछली सुनवाई में 16 जून को अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील को रजिस्ट्री द्वारा इंगित की गई कोर्ट फीस की कमी पर अंतिम अवसर दिया था। 23 जून को हुई सुनवाई में याचिकाकर्ता की ओर से वकील प्रणय पाठक ने तर्क दिया कि अपील में निर्धारित कोर्ट फीस जमा करने के लिए उनके मुवक्किल को बाध्य न किया जाए।
उन्होंने प्रस्तुत किया कि यह कार्यवाही अधिनियम की धारा 74 के अंतर्गत आ रही है, जो कि लाभकारी प्रकृति का कानून है। धारा 74 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति धारा 69 के तहत पारित किसी अवार्ड से असंतुष्ट हो, तो वह 60 दिनों के भीतर हाईकोर्ट में अपील कर सकता है।
प्रणय पाठक ने यह भी कहा कि जब भूमि अन्य अधिनियमों जैसे राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम के तहत अधिग्रहित होती है तो अपील में इतनी अधिक कोर्ट फीस नहीं ली जाती, जितनी कि सिविल अपीलों में अचल मूल्य आधारित शुल्क के रूप में ली जाती है। उन्होंने तर्क दिया कि यह समानता के अधिकार का उल्लंघन है, क्योंकि दो भूमि मालिकों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता, जिनकी भूमि सरकार द्वारा अधिग्रहित की जा रही है। दोनों से अलग-अलग कोर्ट फीस वसूलना अनुचित है।
राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया।
टाइटल: नाथूराम चौरसिया बनाम जल संसाधन विभाग