पत्नी का कभी-कभार शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना पति के साथ क्रूरता नहीं : मध्यप्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2025-08-16 07:54 GMT

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में यह टिप्पणी की कि पत्नी का कभी-कभार पति के साथ सहवास से इनकार करना हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13(1)(i-a) के तहत क्रूरता नहीं माना जा सकता, जब तक कि निरंतर रूप से दांपत्य संबंधों से इनकार न किया गया हो।

जस्टिस विशाल धागट और जस्टिस रामकुमार चौबे की खंडपीठ ने यह कहते हुए पति द्वारा दायर प्रथम अपील को खारिज कर दिया कि फैमिली कोर्ट द्वारा तलाक याचिका को ठुकराना सही था।

मामला संक्षेप में

अपीलकर्ता पति ने फैमिली कोर्ट एक्ट 1984 की धारा 19 के तहत हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। उसकी याचिका जबलपुर स्थित परिवार न्यायालय ने खारिज कर दी थी।

पति का कहना था कि उसकी शादी मई 2007 में हुई। वर्ष 2009 तथा 2019 में उनके दो बेटे हुए। पति ने आरोप लगाया कि विवाह के आरंभ से ही संबंध तनावपूर्ण रहे। पत्नी उसके माता–पिता के साथ रहने को तैयार नहीं थी। वह मंगलसूत्र पहनने, बिंदी लगाने और पारिवारिक परंपराओं का पालन करने से मना करती थी तथा अक्सर तुच्छ बातों पर झगड़ा करती थी।

उसने यह भी दावा किया कि पत्नी ने झूठे दहेज मामलों में फंसाने की धमकी दी, सहवास से इनकार किया और मार्च, 2024 में बच्चों और सामान के साथ मायके चली गई। आगे उसने यह आरोप भी लगाया कि पत्नी तभी लौटने को तैयार थी, जब उसे उचित देखभाल और भरण–पोषण का आश्वासन मिले।

फैमिली कोर्ट ने अपने आदेश में पाया कि पति यह सिद्ध नहीं कर सका कि पत्नी ने उसे दो वर्ष या उससे अधिक समय के लिए त्याग दिया और न ही यह सिद्ध कर सका कि पत्नी ने उसके साथ क्रूरता का व्यवहार किया।

हाईकोर्ट का निर्णय

हाईकोर्ट ने प्रारंभ में ही कहा कि पति यह साबित नहीं कर सका कि पत्नी ने उसे दो वर्ष तक लगातार छोड़ा था, इसलिए त्याग का आधार उपलब्ध नहीं है।

क्रूरता के आधार पर न्यायालय ने कहा कि धारा 13(1)(i-a) के अंतर्गत वही क्रूरता मानी जाएगी, जो इतनी गंभीर हो कि पति पत्नी का साथ रहना असंभव हो जाए।

साक्ष्यों को देखते हुए अदालत ने माना कि पति द्वारा लगाए गए आरोप जैसे झगड़े, कोविड काल में पत्नी का अनुपस्थित रहना और पारिवारिक कार्यक्रमों में उसका व्यवहार ऐसी गंभीर घटनाएं नहीं हैं, जिन्हें क्रूरता कहा जा सके। ये तो वैवाहिक जीवन की सामान्य खटपट हैं।

सहवास से इनकार के आरोप पर अदालत ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की,

“अपीलकर्ता और प्रतिवादी की शादी 14.05.2007 को हुई थी। वे मार्च, 2024 तक साथ रहे तथा उनके दो बच्चे हैं, जो यह साबित करता है कि वे अच्छे से साथ रहे। वैवाहिक जीवन में कभी-कभार सहवास से इनकार करना मानसिक क्रूरता नहीं है। इसके लिए निरंतर इनकार होना आवश्यक है। इसलिए प्रतिवादी पत्नी को क्रूरता का दोषी नहीं ठहराया जा सकता।”

अदालत ने यह भी कहा कि पत्नी ने अपने उत्तर-नोटिस में सभी आरोपों से इंकार किया और उचित देखभाल व निष्ठा की शर्त पर लौटने की इच्छा जताई, जो एक पत्नी की उचित अपेक्षा है।

साथ ही अदालत ने पाया कि स्वयं पति ने तलाक के बजाय पुनर्मिलन की कोशिश की, जिससे यह स्पष्ट है कि उसने पत्नी के पूर्व आचरण को स्वीकार कर लिया था।

अंततः अदालत ने माना कि पति द्वारा बताए गए घटनाक्रम केवल साधारण विवाद और दांपत्य जीवन की तकरार हैं जिन्हें क्रूरता नहीं कहा जा सकता।

हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट का आदेश बरकरार रखा और पति की अपील खारिज कर दी।

केस टाइटल : जितेन्द्र जानी बनाम भूमि जानी

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