अवैध अफीम बरामदगी मामले में पुलिस की कार्यप्रणाली पर एमपी हाईकोर्ट सख्त, गृह विभाग के प्रमुख सचिव को किया तलब

Update: 2025-12-15 10:10 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कथित अफीम बरामदगी से जुड़े मामले में पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाते हुए राज्य के गृह विभाग के प्रमुख सचिव को तलब किया। अदालत ने कहा कि तलाशी और जब्ती से संबंधित भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के प्रावधानों का पालन न किया जाना बेहद चिंताजनक है। इस दिशा में अब तक क्या कदम उठाए गए हैं, इसकी जानकारी अदालत को दी जाए।

जस्टिस सुभोध अभ्यंकर ने 9 दिसंबर को हुई सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी उस मामले में की, जिसमें आवेदक 29 अगस्त, 2025 से न्यायिक हिरासत में है। आवेदक का दावा है कि उसे एक बस से कुछ अज्ञात लोगों ने जबरन उतार लिया, जिन्होंने खुद को सिविल ड्रेस में पुलिसकर्मी बताया। बाद में उसी शाम उसे वाणिज्यिक मात्रा में अफीम के साथ गिरफ्तार दिखाया गया।

मामले की सुनवाई के दौरान अदालत के समक्ष बस की सीसीटीवी फुटेज पेश की गई, जिससे आवेदक का प्रारंभिक बचाव मजबूत होता दिखा। इसके आधार पर पूर्व सुनवाई में अदालत ने मंदसौर के पुलिस अधीक्षक को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर पूरे घटनाक्रम की जानकारी देने का निर्देश दिया। साथ ही आवेदक को अंतरिम जमानत भी दी गई।

ताजा सुनवाई में अदालत ने इस बात पर गंभीर आपत्ति जताई कि कथित तलाशी और जब्ती की पूरी कार्रवाई का ऑडियो-वीडियो रिकॉर्ड नहीं रखा गया, जबकि BNSS की धारा 105 और 185 के तहत यह अनिवार्य प्रक्रिया है। अदालत ने कहा कि BNSS में पहली बार तलाशी और जब्ती की कार्रवाई को ऑडियो-वीडियो माध्यम से रिकॉर्ड करने का स्पष्ट प्रावधान किया गया, इसके बावजूद राज्य के अधिकारियों द्वारा इन प्रावधानों को सुविधाजनक ढंग से नजरअंदाज किया गया।

अदालत ने गृह विभाग के प्रमुख सचिव को निर्देश दिया कि वे यह स्पष्ट करें कि इन प्रावधानों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए। इसके साथ ही अदालत ने यह भी पूछा कि क्या राज्य सरकार ने पुलिसकर्मियों को बॉडी कैम उपलब्ध कराने पर कोई विचार किया। प्रमुख सचिव को अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश होने का निर्देश दिया गया।

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि जब ऐसे मामलों पर न्यायालय का ध्यान जाता है तो यह गलतियों को सुधारने का एक अवसर होता है। यदि इन घटनाओं को नजरअंदाज कर दिया जाए तो भविष्य में भी ऐसे ही मामलों में निर्दोष लोगों के शिकार होने की आशंका बनी रहती है।

इस बीच मंदसौर के पुलिस अधीक्षक ने अदालत को जानकारी दी कि घटना में शामिल छह पुलिसकर्मियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया। वहीं एडिशनल एडवोकेट जनरल ने दलील दी कि अफीम की जब्ती वास्तव में सुबह की गई लेकिन प्रक्रियात्मक चूक के कारण इसे शाम की बरामदगी के रूप में दर्ज कर दिया गया। उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि जमानत कार्यवाही के दायरे का विस्तार न किया जाए।

हालांकि, अदालत ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करना हाईकोर्ट का संवैधानिक दायित्व है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वह न केवल BNSS और पूर्ववर्ती दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत निहित शक्तियों का प्रयोग कर सकता है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत भी मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक निर्देश देने का अधिकार रखता है।

अदालत ने आवेदक को दी गई अंतरिम जमानत को स्थायी करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में केवल वर्तमान नहीं, बल्कि भविष्य में भी नागरिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है। मामले की अगली सुनवाई 12 जनवरी 2026 को निर्धारित की गई।

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