पुनर्वास की कोई गुंजाइश न होने के बावजूद तलाक का विरोध करना और इससे संतुष्टि पाना क्रूरता: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक पत्नी द्वारा फैमिली कोर्ट के तलाक न देने के आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि अगर एक पति या पत्नी साथ रहने की कोई संभावना न होने के बावजूद तलाक का विरोध करता है तो दूसरे पक्ष के लगातार दुख और तनाव से संतुष्टि पाने का ऐसा व्यवहार अपने आप में क्रूरता माना जा सकता है।
जस्टिस विशाल धागट और जस्टिस बीपी शर्मा की डिवीजन बेंच ने कहा,
"दूसरा पक्ष तलाक की अर्जी का विरोध करता है, जबकि उनके साथ रहने की कोई संभावना नहीं है। दूसरे पक्ष की मुश्किलों और तनाव से खुशी पाने का यह व्यवहार भी क्रूरता है।"
पत्नी के वकील ने दलील दी कि शादी 24 मई, 2022 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुई थी। उनके दो बच्चे हैं, जो अभी पति की कस्टडी में हैं। उसने क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक की याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि पति ने दहेज मांगा और उसे परेशान किया।
पति के वकील ने दलील दी कि पत्नी ने तलाक लिए बिना 25 जनवरी, 2018 को दूसरी शादी कर ली थी। इसलिए उसके दूसरे पति के खिलाफ द्विविवाह (IPC की धारा 494) का मामला दर्ज किया गया था।
\कोर्ट ने नोट किया कि दोनों पक्षों ने तलाक के लिए याचिका दायर की और कहा कि वे सामाजिक मजबूरी के कारण वैवाहिक बंधन में एक साथ रह रहे थे। यह भी नोट किया गया कि पति-पत्नी के बीच कड़वाहट थी, और वे लगातार तनाव में रह रहे थे। यह भी नोट किया गया कि कुछ समय साथ रहने के बाद पति ने पत्नी को घर से निकाल दिया। इसके बाद उसने दूसरी शादी कर ली।
कोर्ट ने नोट किया कि फैमिली कोर्ट ने इस अनुमान पर तलाक की याचिका खारिज कर दी कि पत्नी का जीवन व्यभिचारी था और उसे अपनी गलतियों का फायदा नहीं दिया जा सकता, क्योंकि यह गलत कामों पर इनाम देने जैसा होगा।
बेंच ने नोट किया कि शादी पूरी तरह से टूट चुकी थी क्योंकि पत्नी एक अमान्य दूसरी शादी में अपना जीवन जी रही थी जबकि पति अपनी बेटियों के साथ अलग रह रहा था।
बेंच ने राय दी कि अगर पत्नी की गलती के कारण याचिका खारिज कर दी जाती है तो कोई मकसद पूरा नहीं होगा।
बेंच ने आगे ज़ोर दिया कि हालांकि शादी का ठीक न हो पाना हिंदू मैरिज एक्ट 1995 की धारा 13 के तहत बताया गया कोई आधार नहीं है लेकिन कोर्ट पार्टियों की प्रैक्टिकल मुश्किलों और समस्याओं को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते, यह बात उन्होंने प्रमुखता से कही,
"अगर शादी के ठीक न हो पाने के मामलों में तलाक नहीं दिया जाता है तो यह पार्टी को लगातार दर्द और तकलीफ की ओर धकेलने जैसा होगा। शादी का ठीक न हो पाना क्रूरता की ही एक किस्म है। जब भी शादी पूरी तरह से टूट जाती है तो दोनों पार्टियां दर्द में होती हैं और रोज़ाना क्रूरता झेलती हैं, क्योंकि उन्हें अपनी पसंद के हिसाब से जीने और जीवनसाथी चुनने का अधिकार नहीं दिया जाता।"
ऊपर बताई गई चर्चा को देखते हुए कोर्ट ने इस आधार पर तलाक मंज़ूर कर दिया कि पति पत्नी के साथ क्रूरता कर रहा था क्योंकि वह उसे अपनी पसंद के हिसाब से ज़िंदगी जीने का ऑप्शन नहीं दे रहा था जो कि एक मौलिक अधिकार है।