मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने व्यभिचार के आधार पर तलाक को ठहराया सही, धारा 65-बी प्रमाणपत्र को अनिवार्य नहीं माना

Update: 2025-12-08 07:45 GMT

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि वैवाहिक विवादों में भारतीय साक्ष्य अधिनियम का कठोरता से पालन आवश्यक नहीं है। ऐसे मामलों में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के लिए धारा 65-बी का प्रमाणपत्र अनिवार्य नहीं माना जाएगा। न्यायालय ने पत्नी की व्यभिचार संबंधी तस्वीरों के आधार पर फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए तलाक के आदेश को सही ठहराते हुए पत्नी की अपील को खारिज कर दिया।

जस्टिस विशाल धगट एवं जस्टिस बी.पी. शर्मा की खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 14 के अंतर्गत फैमिली कोर्ट को विवाद के प्रभावी निपटारे के लिए किसी भी रिपोर्ट, बयान, दस्तावेज या अन्य सामग्री को साक्ष्य के रूप में स्वीकार करने का अधिकार है। चाहे वह भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत औपचारिक रूप से स्वीकार्य हो या नहीं।

कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक मामलों में सत्य की खोज सर्वोपरि उद्देश्य होता है, इसलिए तकनीकी आधार पर ऐसे साक्ष्यों को खारिज नहीं किया जा सकता जो विवाद के निपटारे में सहायक हों।

मामले में पत्नी ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत पति की याचिका स्वीकार करते हुए 13 फरवरी, 2006 को विवाह विच्छेद कर दिया गया। तलाक का आधार पत्नी का व्यभिचार था जिसके समर्थन में पति ने कुछ तस्वीरें प्रस्तुत की थीं.

पत्नी की ओर से दलील दी गई कि ये तस्वीरें द्वितीयक साक्ष्य हैं और बिना धारा 65-बी के प्रमाणपत्र के इन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता। साथ ही यह भी तर्क दिया गया कि धारा 14 का प्रावधान इस मामले में लागू नहीं होता।

हाईकोर्ट ने इन दलीलों को अस्वीकार करते हुए कहा कि पारिवारिक विवादों में साक्ष्य अधिनियम की कठोर प्रक्रियाएं बाधक नहीं बन सकतीं। न्यायालय ने यह भी नोट किया कि पत्नी ने तस्वीरों के अस्तित्व से इनकार नहीं किया बल्कि केवल यह कहा कि ये किसी चाल से बनाई गईं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं कर पाई कि इन्हें किसने और कैसे तैयार किया।

न्यायालय ने यह भी इंगित किया कि पत्नी ने अपने बयान में स्वीकार किया कि ये तस्वीरें उसके मोबाइल से पति के मोबाइल में स्थानांतरित हुईं जिसके बाद पति ने गुस्से में आकर उसका मोबाइल तोड़ दिया। खंडपीठ ने पति के इस आचरण को स्वाभाविक बताते हुए कहा कि वह पत्नी को उसके कथित प्रेमी से संवाद करने से रोकने की भावनात्मक प्रतिक्रिया थी।

सभी साक्ष्यों पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट का फैसला बरकरार रखा और पत्नी की अपील खारिज कर दी। यह निर्णय वैवाहिक विवादों में साक्ष्य की स्वीकार्यता के मानकों को लेकर एक महत्वपूर्ण नजीर के रूप में सामने आया।

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