डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल किसी व्यक्ति के विदेश यात्रा पर रोक नहीं लगा सकता या उस पर शर्तें नहीं थोप सकता: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2025-12-03 07:09 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार (2 दिसंबर) को कहा कि चूंकि डेट्स रिकवरी ट्रिब्यूनल के पास किसी व्यक्ति के विदेश यात्रा के मौलिक अधिकार पर रोक लगाने की शक्ति नहीं है, इसलिए वह ऐसी यात्रा के लिए कोई शर्त भी नहीं लगा सकता।

यह बात मेटलमैन इंडस्ट्रीज लिमिटेड के पूर्व डायरेक्टर द्वारा दायर याचिका में कही गई, जिसमें रिकवरी ऑफिसर के 22 अगस्त, 2025 के आदेश को चुनौती दी गई। इस आदेश में याचिकाकर्ता की यात्रा पर यह शर्त लगाई गई कि वह बैंक के लिए गारंटी के तौर पर एक ऑफिशियल अकाउंट में 50,00,00,000 जमा करेगा।

जस्टिस प्रणय वर्मा की बेंच ने कहा,

"जब ट्रिब्यूनल के पास किसी व्यक्ति को विदेश यात्रा के उसके अधिकार से वंचित करने की शक्ति नहीं है तो उसके पास विदेश यात्रा के लिए उस पर कोई शर्त लगाने की भी शक्ति नहीं होगी। ट्रिब्यूनल के रिकवरी ऑफिसर द्वारा याचिकाकर्ता पर लगाए गए ये शर्तें इसलिए गलत हैं। इन्हें मंज़ूरी नहीं दी जा सकती, क्योंकि ये प्रभावी रूप से उसे विदेश यात्रा के उसके अधिकार से वंचित करती हैं।"

प्रतिवादी बैंक ने लोन दिया था जिसमें याचिकाकर्ता सह-गारंटर था और चूंकि लोन चुकाने में डिफ़ॉल्ट हुआ था। इसलिए इसे नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (NPA) घोषित कर दिया गया। बैंक ने बैंक और फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस एक्ट, 1993 के सेक्शन 19(1) के तहत आवेदन किया और ट्रिब्यूनल ने बैंक के पक्ष में एक रिकवरी सर्टिफिकेट जारी किया।

याचिकाकर्ता ने बताया कि उसे USA में नौकरी का ऑफर मिला और उसने उसे स्वीकार कर लिया। इसके बाद उसने विदेश यात्रा के लिए आवेदन करके ट्रिब्यूनल से संपर्क किया, जिसका रेस्पोंडेंट बैंक ने विरोध किया।

याचिकाकर्ता के वकील ने दावा किया कि लगाई गई शर्तें 1993 के एक्ट और उसके तहत बनाए गए नियमों द्वारा अथॉरिटी को दी गई शक्तियों से ज़्यादा थीं। ये शर्तें मनमानी, अवैध और अनुचित होने के कारण याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं, क्योंकि ये विदेश में उसके स्वतंत्र आवागमन पर अनुचित प्रतिबंध लगाती हैं और उसकी आजीविका और रोज़गार पर बुरा असर डालती हैं।

बैंक के वकील ने दावा किया कि याचिकाकर्ता के पास रिकवरी ऑफिसर द्वारा पास किए गए विवादित आदेश के खिलाफ ट्रिब्यूनल के पीठासीन अधिकारी के सामने अपील करने का दूसरा रास्ता था। यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता को बैंक को एक बड़ी रकम चुकानी थी, इसलिए अगर उसके भाग जाने की संभावना थी तो उसे विदेश यात्रा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती थी।

बेंच ने सत्वंत सिंह साहनी बनाम डी. रामारत्नम AIR 1967 SC 1836 मामले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ट्रिब्यूनल के पास किसी नागरिक को विदेश यात्रा करने से रोकने की कोई शक्ति नहीं है, क्योंकि 1993 के एक्ट के प्रावधान ऐसा करने की शक्ति नहीं देते हैं।

इसके अलावा, बेंच ने दोहराया कि किसी व्यक्ति का विदेश यात्रा करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकार है और कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

बेंच ने आगे साफ किया कि कानून का मतलब बनाया गया कानून या राज्य का कानून होगा लेकिन इस मामले में रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी पेश नहीं किया गया, जिससे यह पता चले कि राज्य ने 1993 के एक्ट की धारा 19 के तहत कार्यवाही के मामले में किसी व्यक्ति को ऐसे अधिकार से वंचित करने के लिए कोई कानून बनाया।

इसके अलावा, बेंच ने देखा कि जब ट्रिब्यूनल के पास किसी व्यक्ति को विदेश यात्रा करने के अधिकार से वंचित करने की शक्ति नहीं है तो उसके पास विदेश यात्रा के लिए उस पर कोई शर्त लगाने की भी शक्ति नहीं होगी।

बेंच ने कहा,

"ट्रिब्यूनल ने अनुमति दी लेकिन ऐसी शर्तों पर जो याचिकाकर्ता को विदेश यात्रा करने से रोकने की शक्ति के अभाव में खुद ही कायम नहीं रह सकतीं।"

कोर्ट ने याचिका स्वीकार की और 22 अगस्त 2025 के विवादित आदेश में लगाई गई शर्त नंबर 2 रद्द कर दी।

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