संरक्षित वन्यजीवों के शिकार से पारिस्थितिक संतुलन पर गंभीर असर, सख्ती से निपटना ज़रूरी: एमपी हाईकोर्ट ने आरोपी की ज़मानत याचिका खारिज की
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शुक्रवार, 14 नवंबर को सोन चिड़िया अभयारण्य, घटियागांव में अवैध शिकार के आरोप में गिरफ्तार एक व्यक्ति की ज़मानत याचिका खारिज की। अदालत ने कहा कि संरक्षित वन्यजीवों का शिकार न केवल कानून का गंभीर उल्लंघन है बल्कि जैव विविधता और पर्यावरणीय संतुलन पर भी गहरा प्रभाव डालता है। इसलिए ऐसे अपराधों से कठोरता से निपटना आवश्यक है।
जस्टिस मिलिंद रमेश फडके की सिंगल बेंच ने टिप्पणी की कि आरोपित कृत्य संरक्षण कानूनों के तहत संरक्षित प्रजाति के अवैध शिकार से संबंधित हैं। इस तरह के अपराध व्यापक जनहित को प्रभावित करते हैं। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में नरमी बरती नहीं जा सकती।
अभियोजन के अनुसार वन विभाग को अभयारण्य में अवैध शिकार की सूचना मिली थी। तलाशी कार्रवाई के दौरान आरोपी मोटरसाइकिल पर भागते हुए मिला। वनकर्मियों ने उसके कब्जे से चित्तीदार हिरण के सिर और चार टांगें तथा चार बोरों में भरा मांस बरामद करने का दावा किया। इसके बाद 21 जून 2025 को उसे गिरफ़्तार किया गया और भारतीय वन अधिनियम, 1927 तथा वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया।
यह आरोपी की तीसरी ज़मानत याचिका थी। बचाव पक्ष ने कहा कि मुख्य गवाह के बयान में विरोधाभास हैं। गवाह ने स्वीकार किया कि उसके सामने कोई विशेषज्ञ रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि बरामद मांस किसी हिरण प्रजाति का था। यह भी कि केवल मांस देखकर जीव की प्रजाति पहचानना संभव नहीं है तथा इसके लिए डीएनए परीक्षण ही विश्वसनीय तरीका है।
राज्य की ओर से प्रस्तुत पक्ष ने इसका विरोध करते हुए कहा कि अभियोजन का मामला केवल गवाह की गवाही पर आधारित नहीं है, बल्कि बरामदगी, ज़ब्ती कार्रवाई और अन्य दस्तावेज़ी साक्ष्यों से समर्थित है।
अदालत ने कहा कि गवाह के बयान में बताए गए कथित विरोधाभास इतने महत्वपूर्ण नहीं हैं कि पहले से खारिज दो ज़मानत याचिकाओं के बाद परिस्थितियों में कोई महत्वपूर्ण बदलाव माना जाए। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि गवाही का मूल्यांकन मुकदमे की अंतिम सुनवाई के दौरान होगा और इस समय गवाह के एक बयान के आधार पर राहत नहीं दी जा सकती।
न्यायालय ने अंत में कहा कि आरोपी यह साबित नहीं कर पाया कि परिस्थितियों में कोई वास्तविक परिवर्तन हुआ है, जो ज़मानत का आधार बन सके। इसलिए तीसरी ज़मानत याचिका भी खारिज की जाती है।