मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बिना MBBS डिग्री के वेटरनरी डॉक्टर को हेल्थ ऑफिसर बनाने पर सवाल उठाया, पोस्टिंग प्रक्रिया पर जताई गंभीर चिंता

Update: 2025-03-24 06:50 GMT
मध्य प्रदेश  हाईकोर्ट ने बिना MBBS डिग्री के वेटरनरी डॉक्टर को हेल्थ ऑफिसर बनाने पर सवाल उठाया, पोस्टिंग प्रक्रिया पर जताई गंभीर चिंता

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ग्वालियर नगर निगम में पशु चिकित्सक को हेल्थ ऑफिसर के रूप में प्रतिनियुक्ति पर भेजे जाने के तरीके पर चिंता व्यक्त की। एक अस्तित्वहीन पद खासकर तब जब उसके पास MBBS की डिग्री नहीं है, जो न्यूनतम योग्यता है।

न्यायालय ने राज्य प्राधिकारियों को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि उन्होंने एक पशु चिकित्सक को उस पद पर कैसे नियुक्त किया, जिसके लिए न्यूनतम योग्यता MBBS है। इसने नगर निगम को प्रतिनियुक्ति पर काम कर रहे अधिकारियों का विवरण देते हुए जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया, जिसमें उनकी नियुक्ति की अवधि, नियमित नियुक्ति के लिए कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे हैं। प्रतिनियुक्ति पर कर्मचारियों को वापस क्यों नहीं भेजा जा रहा है, शामिल है।

जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया ने अपने आदेश में कहा,

एक बात स्पष्ट है कि प्रतिवादी नंबर 6 को एक ऐसे पद पर तैनात किया गया, जो अस्तित्व में ही नहीं है, वह भी तब जब उसके पास MBBS की डिग्री नहीं है। याचिकाकर्ता ने प्रतिनियुक्ति पर तैनात विभिन्न अधिकारियों को वापस भेजने के लिए प्रशासक नगर निगम ग्वालियर द्वारा लिखे गए दिनांक 14.05.2020 के पत्र की प्रति दाखिल की। इस पत्र से ऐसा प्रतीत होता है कि नगर निगम ग्वालियर में 62 अधिकारी/कर्मचारी प्रतिनियुक्ति पर तैनात किए गए। जिस तरह से प्रतिवादी नंबर 6 को अस्तित्व में ही नहीं रहे पद पर प्रतिनियुक्ति पर भेजा गया, खास तौर पर तब जब उसके पास न्यूनतम योग्यता नहीं थी। वह भी कुछ अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर तैनात करने के तरीके के बारे में बहुत कुछ बताता है। प्रतिवादी नंबर 1 से 5 को यह भी स्पष्ट करने का निर्देश दिया जाता है कि वे एक पशु चिकित्सक को उस पद पर कैसे तैनात कर सकते हैं, जिसके लिए न्यूनतम योग्यता MBBS है। यद्यपि एक पशु चिकित्सक को नगर निगम ग्वालियर में स्वास्थ्य अधिकारी/स्वच्छता अधिकारी के रूप में तैनात किया गया लेकिन फिर भी कुत्तों के काटने की संख्या चिंताजनक थी। यहां तक ​​कि छोटे बच्चों को भी कुत्तों के काटने के मामले सामने आए हैं। गंभीर रूप से कुत्तों के काटने से पीड़ित है।”

वर्तमान मामले में पांच प्रतिवादी हैं- प्रमुख सचिव प्रशासन नगरीय एवं विकास विभाग, प्रमुख सचिव पशु चिकित्सा सेवा एवं पशुपालन विभाग, आयुक्त प्रशासन नगरीय एवं विकास विभाग, संचालक पशु चिकित्सा सेवा एवं पशुपालन तथा नगर निगम ग्वालियर।

पृष्ठभूमि

न्यायालय प्रतिवादी नंबर 1/प्रमुख सचिव, प्रशासन नगरीय एवं विकास विभाग द्वारा पारित आदेश से व्यथित एक डॉक्टर की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसके तहत प्रतिवादी नंबर 6, एक पशु चिकित्सक को नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग में प्रतिनियुक्ति पर चिकित्सा अधिकारी के रूप में पदस्थ किया गया।

याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी नंबर 6 की नगर निगम ग्वालियर में स्वास्थ्य अधिकारी के रूप में पदस्थापना को चुनौती देते हुए क्वो-वारंटो की प्रकृति में रिट की मांग की थी, इस आधार पर कि प्रतिवादी संख्या 6 एक पशु चिकित्सक है और उसे नगर निगम ग्वालियर में स्वास्थ्य अधिकारी के रूप में काम करने के लिए कहा गया। याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि नगर निगम में स्वास्थ्य अधिकारी जैसा कोई पद नहीं है। पहले यह पद स्वास्थ्य अधिकारी के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब इसका नाम बदलकर मुख्य स्वच्छता अधिकारी कर दिया गया। उक्त पद स्वच्छता अधिकारी के पद से 100% पदोन्नति द्वारा भरा जाना है तथा स्वच्छता अधिकारी का पद सहायक स्वच्छता अधिकारी के पद से 100% पदोन्नति द्वारा भरा जाना है। सहायक स्वच्छता अधिकारी के पद के लिए न्यूनतम योग्यता MBBS है। चूंकि प्रतिवादी नंबर 6 MBBS नहीं है, इसलिए वह स्वास्थ्य अधिकारी के पद पर रहने का हकदार नहीं है।

13 मार्च के अपने आदेश में न्यायालय ने कहा कि निगम ने अपने जवाब में कहा है कि चूंकि पशु चिकित्सक की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की गई। इसलिए उसने एनओसी दी थी। न्यायालय ने तब कहा था कि अंतरिम आदेश जारी करने के लिए प्रथम दृष्टया मामला बनता है तथा प्रतिवादी नंबर 6 को निगम में स्वास्थ्य अधिकारी के रूप में कार्य करना तुरंत बंद करने का निर्देश दिया।

निष्कर्ष

अपने 19 मार्च के आदेश में न्यायालय ने प्रतिवादी नंबर 3/आयुक्त, नगरीय प्रशासन एवं आवास विभाग की दलीलों पर गौर किया कि प्रतिवादी नंबर 6 को 'स्वास्थ्य अधिकारी' के पद पर नियुक्त करने की पूरी कवायद नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के इशारे पर की गई। विभाग ने प्रतिवादी नंबर 6 को स्वास्थ्य अधिकारी के पद पर प्रतिनियुक्त करने के लिए रिक्ति, वेतनमान और आयुक्त की सहमति के बारे में जानकारी मांगी थी।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि प्रशासन शहरी एवं विकास विभाग के प्रमुख सचिव तथा पशु चिकित्सा सेवा एवं पशुपालन विभाग के प्रमुख सचिव ने किस हैसियत से तथा किस प्रतिवादी की ओर से हलफनामे पर हस्ताक्षर किए, किस प्रकार से जवाब दाखिल किया।

OIC ने प्रतिवादी नंबर 1/प्रमुख सचिव, प्रशासन शहरी एवं विकास विभाग तथा 2/प्रमुख सचिव, पशु चिकित्सा सेवा एवं पशुपालन विभाग के OIC के रूप में सामान्य सूचकांक पर हस्ताक्षर किए हैं, जबकि रिटर्न के कारण शीर्षक में कहा गया कि यह प्रतिवादी नंबर 2 तथा प्रतिवादी नंबर 4 अर्थात निदेशक पशु चिकित्सा सेवा एवं पशुपालन की ओर से संक्षिप्त रिटर्न है।

न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादी नंबर 2 तथा 4 ने पूरा भार राज्य पर डाल दिया। लेकिन न्यायालय ने कहा कि यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी नंबर 6 को एक ऐसे पद पर नियुक्त किया गया, जो अस्तित्व में ही नहीं है, वह भी तब जब उसके पास एमबीबीएस की डिग्री नहीं है।

न्यायालय ने प्रमुख सचिव-प्रशासन नगरीय एवं विकास विभाग तथा आयुक्त-नगरीय प्रशासन एवं आवास विभाग को विस्तृत विवरण दाखिल करने तथा यह स्पष्ट करने का अंतिम अवसर दिया कि किस कारण से उन्होंने प्रतिवादी नंबर 6 को नगर निगम ग्वालियर में प्रतिनियुक्ति पर भेजने की कार्यवाही शुरू की तथा सम्पूर्ण अभिलेख भी तलब किया।

मामले की अगली सुनवाई 3 अप्रैल को होगी।

केस टाइटल: डॉ. अनुराधा गुप्ता बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य, 2024 का डब्ल्यूपी क्रमांक 9096

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