एमपी हाईकोर्ट ने MPHJS (भर्ती और सेवा की शर्तें) नियम, 1994 के नियम 5(1) (सी) का प्रावधान रद्द किया; 2016, 2017 की सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की नियुक्तियां भी रद्द

Update: 2025-04-10 11:03 GMT
एमपी हाईकोर्ट ने MPHJS (भर्ती और सेवा की शर्तें) नियम, 1994 के नियम 5(1) (सी) का प्रावधान रद्द किया; 2016, 2017 की सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की नियुक्तियां भी रद्द

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह (चार अप्रैल, 2025) मध्य प्रदेश उच्च न्यायिक सेवा (एचजेएस) (भर्ती और सेवा की शर्तें) नियम 1994 के नियम 5(1) (सी) के प्रावधान को रद्द कर दिया। साथ ही इसके अनुसरण में 2016 और 2017 में सिविल जज (वरिष्ठ डिवीजन) की नियुक्तियों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने निर्णय में माना कि आक्षेपित प्रावधान कानून की नज़रों में टिकाऊ नहीं है।

चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ ने छिंदवाड़ा की एडवोकेट सपना झुनझुनाला की याचिका पर यह फैसला दिया।

यााचिका में 2016 के लिए अधिवक्ताओं के 25% कोटे के विरुद्ध जिला जज (प्रवेश स्तर) के पद पर नियुक्ति के लिए सही संख्या की गिनती नहीं करने के मुद्दे पर प्रतिवादी अधिकारियों की निष्क्रियता को चुनौती दी गई थी। साथ ही 1994 के नियम 5(1) (सी) की वैधता को भी चुनौती दी गई थी और मांग की गई थी कि 2016 एचजेएस परीक्षा (सिविल जज सीनियर डिवीजन) के लिए 24 मार्च, 2017 के विज्ञापन और उसके परिणाम को रद्द किया जाए।

चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत की ओर से लिखे गए निर्णय में कहा गया कि जिला जजों के पद पर नियुक्ति के लिए तीन चैनल हैं, जबकि इस मामले में प्रतिवादी संख्या 2 ने उक्त नियम में उक्त प्रावधान को शामिल करके जिला जज के पद पर नियुक्ति के लिए एक चौथा चैनल बनाया, जो स्पष्ट रूप से अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ मामले, 2002 और 2010 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णयों का उल्लंघन है।

पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने केवल तीन चैनलों से भरे जाने वाले कोटे को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया है। एक पदोन्नति के लिए है, दूसरा सीमित प्रतिस्पर्धी परीक्षा के लिए है और तीसरा बार से सीधी भर्ती के लिए है, जबकि इस मामले में प्रतिवादी संख्या 2 ने केवल बार से सीधी भर्ती के लिए निर्धारित कोटे को तोड़कर एक चौथा चैनल बनाया।

इसके अलावा, आरोपित नियम के प्रावधान के अवलोकन से यह प्रावधान होता है कि यदि बार के लिए निर्धारित कोटा लगातार दो चयन प्रक्रियाओं के बाद नहीं भरा जाता है तो उक्त पद पात्र सिविल जज (वरिष्ठ डिवीजन) में से पदोन्नति के जर‌िए भरे जाएंगे।

पीठ ने कहा,

"आश्चर्यजनक रूप से, लगातार दो चयन प्रक्रियाओं का इंतजार किए बिना, प्रतिवादी संख्या 2 ने 2016 और 2017 के विज्ञापन में ही उस कोटे को लागू कर दिया, जिससे बार से सीधी भर्ती के लिए निर्धारित पदों की संख्या कम हो गई।"

उपरोक्त तथ्य को ध्यान में रखते हुए, पीठ ने यह उचित माना कि 1994 के नियमों के आरोपित नियम 5 (1) (सी) का प्रावधान संवैधानिक मैंडेट और अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ मामले 2002 और 2010 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए निर्णयों का उल्लंघन है।

वर्ष 2016 और 2017 की नियुक्तियां याचिका के निर्णय के अधीन 

इसके अलावा पीठ ने वर्ष 2016 और 2017 के लिए आरोपित प्रावधान के तहत की गई नियुक्ति पर विचार किया।

पीठ ने माना,

"जिन न्यायिक अधिकारियों को आरोपित प्रावधान के तहत नियुक्त किया गया था, उन्होंने आवेदन पत्र भरने के समय गलती नहीं की थी। वे परीक्षा में उपस्थित हुए और सफलतापूर्वक उत्तीर्ण होने के बाद, उन्हें जिला न्यायाधीश (प्रवेश स्तर) के पद पर नियुक्त किया गया। वे लगभग 9 वर्षों से सेवा कर रहे हैं, हालांकि प्रतिवादी संख्या 2 की ओर से दिए गए अनंतिम चयन सूची में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था कि संशोधित प्रावधान के आधार पर परिणाम/सभी कदम इस याचिका के अंतिम परिणाम के अधीन होंगे। सभी उम्मीदवार इस बात से अवगत थे कि उनकी नियुक्तियां वर्तमान याचिका के परिणाम के अधीन हैं। इसलिए वे ऐसे उच्च पद पर नियुक्त होने के अधिकार का दावा नहीं कर सकते जिसके लिए वे विवादित प्रावधान की आड़ में नियुक्त होने के पात्र नहीं हैं, जो संवैधानिक जनादेश और अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ मामले, 2002 और 2010 में पारित निर्णय का उल्लंघन करता है।"

इसके अलावा पीठ ने प्रमोद कुमार बनाम यू.पी. माध्यमिक शिक्षा सेवा आयोग (2008) 7 एससीसी 153 पर भरोसा किया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि कानून पूरी तरह से स्थापित है कि वैधानिक/विधि नियम के विपरीत की गई नियुक्ति शून्य होगी। साथ ही अशोक कुमार सोनकर बनाम यूओआई (2007) 4 एससीसी 54 पर भरोसा करते हुए, जिसके तहत यह माना गया था कि यदि कोई नियुक्ति अवैध है, तो यह कानून की नज़र में गैर-कानूनी है, जो नियुक्ति को शून्य बनाता है।

इस प्रकार ‌हाईकोर्ट ने यह मानते हुए समानता पर विचार किया कि इन न्यायिक अधिकारियों को सिविल जज (वरिष्ठ डिवीजन) के उनके मूल पदों पर वापस करना उचित होगा। आगे यह देखते हुए कि ये याचिका 2016 से लंबित है, समानता के आधार पर यह उचित होगा कि इन न्यायिक अधिकारियों को 2007 और 2008 के अपने-अपने बैचों में रखा जाए और उनकी पारस्परिक वरिष्ठता जिला न्यायाधीश के पद पर पदोन्नति की तिथि को जारी उनकी ग्रेडेशन सूची के अनुसार तय की जाए।

पीठ ने आगे कहा कि जिला न्यायाधीश के पद के लिए न्यायिक अधिकारियों को उपयुक्तता परीक्षा उत्तीर्ण करना आवश्यक है, यह स्पष्ट किया गया है कि इन अधिकारियों को 2016 और 2017 में आयोजित परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद नियुक्त किया गया है और तब से वे वर्तमान में जिला न्यायाधीश के रूप में काम कर रहे हैं, इसलिए पीठ ने यह उचित माना कि उक्त अधिकारियों को उपयुक्तता परीक्षा उत्तीर्ण करने की आवश्यकता नहीं है।

इसलिए पीठ ने इन टिप्पण‌ियों के साथ कहा, 

"नियम 1994 के नियम 5(1)(सी) का विवादित प्रावधान कानून की नजर में टिकने योग्य नहीं है और इसे रद्द किया जाता है तथा इसके तहत वर्ष 2016 और 2017 के लिए सिविल जज (वरिष्ठ डिवीजन) की नियुक्तियां भी रद्द की जाती हैं और ऐसे न्यायिक अधिकारियों को उनके संबंधित बैचों में रखा जाता है तथा उनकी पारस्परिक वरिष्ठता तदनुसार तय की जाएगी। इसके अलावा मध्य प्रदेश ‌हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया जाता है कि वे निर्णय पारित होने की तारीख से दो सप्ताह के भीतर उक्त अभ्यास को अंजाम दें।"

इस प्रकार उक्त आदेश के अनुसरण में बार से सीधी भर्ती के लिए निर्धारित कोटे के अंतर्गत आने वाली रिक्त सीटों को भविष्य की भर्ती में भरा जाएगा।

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