लंबे समय तक अलग रहना, साथ रहना न होना, पति-पत्नी के बीच संबंधों का पूरी तरह टूट जाना, HMA की धारा 13(1)(ia) के तहत क्रूरता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि लंबे समय तक अलग रहना साथ रहना न होना, सभी सार्थक संबंधों का पूरी तरह टूट जाना और पति-पत्नी के बीच विद्यमान कड़वाहट को 1955 के अधिनियम की धारा 13(1)(a) के तहत क्रूरता के रूप में पढ़ा जाना चाहिए।
जस्टिस आनंद पाठक और जस्टिस हिरदेश की पीठ ने एक पति को तलाक देते हुए टिप्पणी की,
"जहां वैवाहिक संबंध पूरी तरह से टूट चुका है, जहां लंबे समय तक अलग रहना और साथ रहना न होना (जैसा कि पिछले 12 वर्षों से वर्तमान मामले में है), तो ऐसे विवाह को जारी रखने का मतलब केवल एक-दूसरे पर क्रूरता को मंजूरी देना होगा।"
इसके साथ ही न्यायालय ने पति द्वारा दायर अपील स्वीकार की, जिसमें फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई। इसके तहत हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत दायर उसके आवेदन को प्रतिवादी के अस्वस्थ दिमाग के तथ्य को क्रूरतापूर्वक दबाने और परित्याग' के आधार पर तलाक की डिक्री की मांग करते हुए खारिज कर दिया गया था।
संक्षेप में मामला
अपीलकर्ता-पति ने प्रतिवादी-पत्नी से तलाक की मांग करते हुए दावा किया कि फरवरी 2008 में संपन्न उनकी शादी, पत्नी के मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों से परेशान थी। यह दावा किया गया कि उसकी पत्नी तर्कहीन व्यवहार प्रदर्शित करती थी, जैसे कि आवाजें सुनना, मतिभ्रम देखना और तर्क करने की क्षमता खोना।
उसका मामला यह था कि अपने माता-पिता से मदद मांगने सहित उसकी स्थिति को संभालने के प्रयासों के बावजूद, कोई सुधार नहीं हुआ। दो बच्चों के होने के बाद पत्नी को जून 2012 में उसके माता-पिता के घर वापस ले जाया गया। अगले पांच वर्षों में उसकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ।
इस प्रकार अपीलकर्ता ने क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक की मांग करते हुए फैमिली कोर्ट में आवेदन किया, जिसमें दावा किया गया कि उसकी स्थिति के कारण उसे अपमान और मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ा।
प्रतिवादी के न्यायालय में उपस्थित न होने पर फैमिली कोर्ट ने उसके विरुद्ध एकपक्षीय कार्यवाही की। हालांकि इसने जनवरी 2018 में अपीलकर्ता की तलाक याचिका खारिज की।
उसकी अपील पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने पाया कि प्रतिवादी 2012 से अपीलकर्ता से अलग रह रहा है। प्रतिवादी ने उसके असामान्य व्यवहार के बारे में अपीलकर्ता के इस साक्ष्य का खंडन नहीं किया। इसलिए अपीलकर्ता-पति के साक्ष्य पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं था।
न्यायालय ने विशेष रूप से उल्लेख किया कि अपीलकर्ता के साक्ष्य के अनुसार, पत्नी-प्रतिवादी कहती थी कि कोई उसका पीछा कर रहा था, उसकी जासूसी कर रहा था, उसने चीखें सुनीं कोई उसे बुला रहा था। उसने एक महिला का शव देखा, जबकि वास्तव में उसके साथ कुछ भी नहीं हुआ।
अपीलकर्ता के अनुसार उसके अजीबोगरीब और पागलपन भरे व्यवहार के कारण वह रात को सो नहीं पाता था, इधर-उधर घूमता रहता था और बातें करता रहता था। कभी-कभी वह अपने कपड़ों के बारे में नहीं जानती थी और चीजों को उठाकर फेंक देती थी। वह सोचने, याद करने और तर्क करने की अपनी क्षमता भी खो चुकी थी।
कोर्ट ने आगे कहा कि वर्तमान मामले में दोनों पक्ष 2012 से अलग-अलग रह रहे हैं। उनका वैवाहिक बंधन पूरी तरह से टूट चुका है और उसे सुधारा नहीं जा सकता।
इसलिए कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस रिश्ते को खत्म कर देना चाहिए, क्योंकि इसके जारी रहने से दोनों पक्षों पर क्रूरता हो रही है।
कोर्ट ने कहा,
"लंबे समय तक अलग रहना, साथ रहने की अनुपस्थिति, सभी सार्थक संबंधों का पूरी तरह से टूट जाना और दोनों के बीच मौजूदा कड़वाहट को 1955 अधिनियम की धारा 13(1)(ia) के तहत क्रूरता माना जाना चाहिए।"
इन परिस्थितियों में कोर्ट ने पाया कि फैमिली कोर्ट ने अपीलकर्ता द्वारा दायर तलाक की याचिका को खारिज करके त्रुटि की, जिसमें बिना किसी सबूत के अपीलकर्ता द्वारा दायर तलाक की याचिका को खारिज कर दिया गया।
अतः फैमिली कोर्ट ग्वालियर द्वारा पारित विवादित निर्णय एवं डिक्री को निरस्त किया
तदनुसार अपील स्वीकार की गई, अपीलकर्ता द्वारा दायर तलाक की याचिका स्वीकार की गई तथा अपीलकर्ता एवं प्रतिवादी का विवाह विच्छेद कर दिया गया।
तथापि इस तथ्य पर विचार करते हुए कि अपीलकर्ता श्रमिक है तथा दोनों पक्षों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, न्यायालय ने पति को प्रतिवादी-पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में दो लाख रुपए देने का निर्देश देना उचित समझा।
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