सहदायिक हिंदू संयुक्त परिवार की संपत्ति से संबंधित भूमि के किसी भी विशिष्ट हिस्से को अपने हिस्से के अलावा किसी और को ट्रांसफर नहीं कर सकते: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हिंदू संयुक्त परिवार की संपत्ति से संबंधित भूमि के एक हिस्से की बिक्री के मुद्दे पर चर्चा की। न्यायालय ने इस सवाल पर फैसला सुनाया कि क्या सहदायिक के हिस्से के अलावा किसी खास भूमि के टुकड़े को ट्रांसफर किया जा सकता है।
इस सवाल का नकारात्मक जवाब देते हुए जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया ने कहा,
“हालांकि सहदायिक या सह-हिस्सेदार अपने हिस्से की सीमा तक हस्तांतरित कर सकता है लेकिन वह किसी खास भूमि के टुकड़े को हस्तांतरित नहीं कर सकता। इसलिए अधिक से अधिक यह कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ताओं ने सहदायिक/सह-हिस्सेदार का हिस्सा खरीदा है, फिर भी वे किसी विशिष्ट भूमि के हकदार नहीं हैं।
अदालत ने कहा कि सहदायिक में किसी व्यक्ति का हिस्सा अलग किया जा सकता है लेकिन हिंदू संयुक्त परिवार की संपत्ति से संबंधित किसी भी भूमि के टुकड़े को अलग नहीं किया जा सकता, सिवाय सहदायिक के अपने हिस्से को छोड़कर।
संपत्ति ट्रांसफर अधिनियम की धारा 52 पर चर्चा की गई और साथ ही इस बात पर भी चर्चा की गई कि क्या मुकदमे के लंबित रहने के दौरान संपत्ति का ट्रांसफर हो सकता है।
अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 52 में कहा गया कि मुकदमे में शामिल किसी भी संपत्ति को इस तरह से हस्तांतरित या अन्यथा निपटाया नहीं जा सकता, जो मुकदमे में पारित किसी भी डिक्री या आदेश के तहत किसी भी पक्ष के अधिकारों को प्रभावित करता हो।
अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि भले ही बिक्री विलेख तब निष्पादित किए गए हों, जब कोई अस्थायी निषेधाज्ञा लागू न हो फिर भी लेन-देन धारा 52 के प्रावधानों के अधीन होंगे। इसका तात्पर्य यह है कि खरीदारों (याचिकाकर्ताओं) के अधिकार चल रहे मुकदमे के अंतिम परिणाम से बंधे होंगे।
याचिकाकर्ता अहमद खान और अन्य ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें चौथे जिला जज रीवा और 9वें सिविल जज जूनियर डिवीजन रीवा के आदेशों को चुनौती दी गई थी। इन आदेशों ने याचिकाकर्ताओं को उनके द्वारा खरीदी गई भूमि पर निर्माण करने से रोक दिया था, ऐसा कदम, जिसके बारे में याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि इससे उन्हें अपूरणीय क्षति हुई है।
मूल मुकदमा प्रतिवादियों द्वारा 2012 में दायर किया गया, जिसमें संबंधित संपत्ति से संबंधित कुछ वसीयत और सेल डीड निरस्त करने सहित विभिन्न घोषणाओं की मांग की गई। उन्होंने दावा किया कि भूमि संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति का हिस्सा थी और प्रतिवादियों द्वारा निष्पादित बिक्री लेनदेन को चुनौती दी। भूमि कई बार हाथ बदल चुकी थी, जिसमें अंतिम खरीदार याचिकाकर्ता थे।
अदालत ने जांच की कि क्या संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति का हिस्सा बनने वाली भूमि का विशिष्ट टुकड़ा अलग किया जा सकता है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार संपत्ति विंदेश्वरी प्रसाद पांडे द्वारा स्वयं अर्जित की गई, जिन्होंने अपनी दूसरी पत्नी के पक्ष में वसीयत बनाई। इस पत्नी ने बदले में वंदना पांडे और सुधा पांडे के पक्ष में वसीयत बनाई जिन्होंने बाद में जमीन बेच दी।
प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि संपत्ति पैतृक थी और कोई विभाजन नहीं हुआ था, जिसका अर्थ है कि सभी कानूनी उत्तराधिकारियों के पास समान हिस्से थे। उन्होंने तर्क दिया कि वंदना पांडे और सुधा पांडे द्वारा निष्पादित कोई भी सेल डीड और उसके बाद की बिक्री अवैध थी।
न्यायालय ने कहा कि यदि संपत्ति वास्तव में संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति थी तो कोई भी सह-भागी या सह-हिस्सेदार उचित विभाजन के बिना भूमि के किसी विशिष्ट टुकड़े को अलग नहीं कर सकता।
जस्टिसअहलूवालिया ने निष्कर्ष निकाला कि निचली अदालतों ने याचिकाकर्ताओं को विवादित भूमि पर निर्माण करने से रोकने में सही किया। अदालत ने निचली अदालतों द्वारा पारित आदेशों में कोई अधिकार क्षेत्र संबंधी त्रुटि या भौतिक अवैधता नहीं पाई, क्योंकि वे संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति और मुकदमेबाजी के दौरान संपत्ति के हस्तांतरण को नियंत्रित करने वाले कानूनी सिद्धांतों के अनुरूप थे।
न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भले ही संपत्ति उस अवधि के दौरान बेची गई हो, जब कोई अस्थायी निषेधाज्ञा लागू नहीं थी। फिर भी बिक्री संपत्ति ट्रांसफर अधिनियम की धारा 52 के तहत लिस पेंडेंस के सिद्धांत के अधीन होगी। यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि संपत्ति न्यायालय के नियंत्रण में रहे और मुकदमेबाजी के दौरान कोई भी ट्रांसफर मुकदमे के परिणाम को प्रभावित नहीं करता।
केस टाइटल- अहमद खान और अन्य बनाम भास्कर दत्त पांडे और अन्य