बलात्कार की एफआईआर संदिग्ध: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने नाबालिग के 28 सप्ताह की टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी की अनुमति देने से किया इनकार
यह देखते हुए कि बलात्कार की घटना की तारीख के बारे में गलत जानकारी के कारण अभियोक्ता की दादी द्वारा दर्ज की गई एफआईआर संदिग्ध है, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अभियोक्ता के 28 सप्ताह के मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी करने की अनुमति देने से इनकार किया।
जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की एकल पीठ ने याचिका खारिज करते हुए तर्क दिया कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट 24 सप्ताह से अधिक समय से गर्भ की पुष्टि करती है। इस कारक के साथ-साथ नाबालिग की हल्की बौद्धिक अक्षमता के अस्तित्व ने मेडिकल बोर्ड को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की अनुमति देने से इनकार करने के लिए मजबूर किया।
जबलपुर में बैठी पीठ ने आदेश में तदनुसार नोट किया,
“बोर्ड द्वारा दी गई मेडिकल रिपोर्ट के मद्देनजर जिसमें गर्भपात से इनकार किया गया। साथ ही इस तथ्य के साथ कि याचिकाकर्ता की दादी द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर भी संदिग्ध है, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी का निर्देश देने का कोई मामला नहीं बनता।”
07.07.2024 को दर्ज की गई एफआईआर में नाबालिग के अभिभावक ने कहा कि अभियोक्ता ने लगभग तीन महीने पहले यानी लगभग 07.04.2024 और 01.05.2024 के बीच गर्भधारण किया। उसके बयान के अनुसार उसे गर्भावस्था के बारे में तभी पता चला, जब उसने नाबालिग के शरीर में असामान्य विकास देखा।
फिर उसे एफआईआर में दिए गए संस्करण के अनुसार उसकी पोती द्वारा बलात्कार की घटना के बारे में बताया गया।
19.07.2024 को गांधी मेडिकल कॉलेज भोपाल के डीन ने बोर्ड का गठन किया और अभियोक्ता की मेडिकल जांच की, जिसमें पता चला कि वह लगभग 6 महीने पहले से गर्भवती थी।
अदालत ने टिप्पणी की,
“07.07.2024 को दर्ज की गई एफआईआर के अनुसार, याचिकाकर्ता ने केवल तीन महीने पहले ही गर्भधारण किया। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता की दादी ने भी एफआईआर में उस अवधि के बारे में गलत जानकारी दी थी, जिसके दौरान याचिकाकर्ता ने गर्भधारण किया होगा।”
भ्रूण के वैज्ञानिक गर्भपात और परीक्षण के लिए DNA के संरक्षण की प्रार्थना के साथ याचिकाकर्ता ने राज्य की नीति के अनुसार पीड़िता को मुआवजा देने की भी मांग की थी।
केस टाइटल- ए माइनर बनाम एम.पी. राज्य और अन्य।