न्यायालय पुलिस जांच की निगरानी नहीं कर सकते, न ही गिरफ्तारी का आदेश दे सकते हैं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2024-07-29 07:02 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने आपराधिक मामले की जांच में हस्तक्षेप की मांग करने वाली याचिका खारिज की।

जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने इस बात पर जोर दिया कि न्यायालय पुलिस जांच की निगरानी नहीं कर सकते या आरोपी व्यक्तियों की गिरफ्तारी का निर्देश नहीं दे सकते। उन्होंने कहा कि ऐसे मामले जांच अधिकारियों के विशेष अधिकार क्षेत्र में आते हैं।

यह मामला ज्योत्सना मैती द्वारा दायर रिट याचिका से संबंधित है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने उनकी शिकायत पर पर्याप्त कार्रवाई नहीं की है। आरोपियों के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर में आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और जालसाजी के आरोप शामिल थे। हालांकि पुलिस ने न तो आरोपियों को गिरफ्तार किया और न ही जांच पूरी की। इसलिए उन्होंने अदालत से पुलिस केस डायरी/संपूर्ण रिकॉर्ड मंगाने और एजेंसी को जांच के साथ आगे बढ़ने का निर्देश देने का अनुरोध किया।

जस्टिस अहलूवालिया ने अपने फैसले में डी. वेंकटसुब्रमण्यम बनाम एम.के. मोहन कृष्णमाचारी के ऐतिहासिक सुप्रीम कोर्ट मामले का हवाला दिया, जिसमें स्थापित किया गया कि अदालतें गिरफ्तारी और आरोप पत्र पर निर्णय सहित जांच करने में पुलिस के विवेक में हस्तक्षेप नहीं कर सकती हैं।

कोर्ट ने कहा,

“अदालत जांच की निगरानी नहीं कर सकती और न ही आरोपी को गिरफ्तार करने और आरोप पत्र दाखिल करने का निर्देश दे सकती है। ऐसा करना निश्चित रूप से जांच की निगरानी करने के बराबर होगा।”

अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPc) की धारा 41 पुलिस अधिकारियों को विशिष्ट परिस्थितियों में बिना वारंट के गिरफ्तारी करने का अधिकार देती है। अदालत ने स्पष्ट किया कि गिरफ्तारी का निर्णय अपराध की प्रकृति, एकत्र किए गए साक्ष्य और जांच अधिकारी के विवेक पर निर्भर करता है।

जस्टिस अहलूवालिया ने इस बात पर जोर दिया कि अदालतें केवल असाधारण स्थितियों में हस्तक्षेप कर सकती हैं, जहां न्याय में बाधा डालने या पुलिस द्वारा शक्ति का दुरुपयोग करने के जानबूझकर प्रयास का सबूत हो।

अदालत ने याचिकाकर्ता के त्वरित जांच के अधिकार को स्वीकार किया। इसने पुलिस को CrPc की धारा 173(1) के तहत यथासंभव शीघ्र जांच पूरी करने का निर्देश दिया, जिसके तहत बिना किसी अनावश्यक देरी के जांच पूरी करने का आदेश दिया गया। अदालत ने आगे स्पष्ट किया कि यदि याचिकाकर्ता को लगता है कि जांच निष्पक्ष रूप से नहीं की जा रही है तो वह पुलिस अधीक्षक से संपर्क कर सकती है।

कोर्ट ने कहा,

“अनावश्यक देरी के बिना जांच पूरी करना कानून का आदेश है। जांच अधिकारी जांच को लंबित नहीं रख सकता और उसे इस निष्कर्ष पर पहुंचना होगा कि कोई अपराध बनता है या नहीं? जांच अधिकारी के लिए यह अनिवार्य है कि वह जितनी जल्दी हो सके जांच पूरी करे और बिना किसी देरी के अंतिम रिपोर्ट (क्लोजर रिपोर्ट या चार्जशीट) दाखिल करे।”

Tags:    

Similar News